रूस के कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पांच साल बाद मुलाकात हुई और फिर जो हुआ वह पूरे विश्व को पता है। चीन लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी ) पर दोनों देशों के बीच बनी हुई तनातनी को खत्म करने के लिए बिना किसी शर्त के सहमत हो गया है। चीन के तेवर ढीले पड़े जाहिर बात है पीएम मोदी का बढ़ता वैश्विक कद और भारत की विदेश नीति और बेहतर कूटनीति के चलते ही ऐसा हो पाना संभव हुआ। चीन के मुद्दे पर 2018 के बाद लगातार भारत को घेरने की कोशिश कर रहे कांग्रेस के तेवर ढीले पड़ चुके हैं। अब राहुल गांधी बोले भी तो क्या बोलें? कांग्रेस की बोलती बंद हो गई है।
अब बात करते हैं राहुल गांधी के कुछ बयानों की जो उन्होंने चीन के मसले को लेकर पीएम मोदी के खिलाफ दिए। 2018 में राहुल गांधी ने ट्ववीट किया था कि मोदी चीन से डरते हैं। 2022 में अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि भारत इस समय कमजोर स्थिति में हैं, क्योंकि चीन और पाकिस्तान एक हो गए हैं। युद्ध होगा तो बहुत बड़ा नुकसान होगा। इस साल पिछले महीने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने 10 सितंबर को वाशिंगटन डीसी में नेशनल प्रेस क्लब में कहा था कि मोदी चीन से नहीं निपट सकते। इस तरह के अनर्गल और बेतुके बयान देने से पहले राहुल गांधी को कांग्रेस के इतिहास को खंगालना चाहिए।
जब राहुल गांधी के परनाना पंडित नेहरू प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने 1947 में आजादी के महज दो साल बाद 1949 में हुई चीन की साम्यवादी क्रांति को मान्यता दे दी थी। जबकि वह चीन की विस्तारवादी नीति को अच्छी तरह से जानते थे, लेकिन उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली थी। सरदार पटेल समेत कई नेताओं ने उन्हें समझाया था लेकिन वह चुप्पी साधे रहे। यही नहीं पंडित नेहरू ने चीन के साथ अच्छे संबंध रखने के लिए 29 अप्रैल 1954 को चीन के साथ पंचशील समझौता किया था और हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे भी लगाए थे।
पहले भारत का पड़ोसी चीन नहीं था तिब्बत था। जब चीन ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया तो चीन के अधिकार को पंडित नेहरू ने क्यों स्वीकार कर लिया था? आज जो चीन हरकतें करता है दरअसल नेहरू के चीन के प्रति अति-विश्वास के कारण ही यह स्थिति उत्पन्न हुई है। यदि शुरुआत में चीन को ढंग से जवाब दिया जाता तो आज स्थिति कुछ और ही होती।
ऐतिहासिक तथ्यों के हिसाब से बात करें तो 1962 के युद्ध से पहले ही तिब्बत पर अधिकार करने के बाद चीनी सैनिक भारतीय सीमा में अतिक्रमण करने लगे थे। 1957 तक चीन एक तरह से लद्दाख के हिस्से अक्साई चिन पर काफी हद तक कब्जा कर चुका था। यही नहीं चीन ने भारत पर विस्तारवादी होने का आरोप लगाते हुए 29 दिसंबर, 1959 में भारत के विदेश मंत्रालय को एक नक्शा भेजा था, इस नक्शे में लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के 50,000 वर्ग मील क्षेत्र को अपने कब्जे में दिखाया था। तब पंडित नेहरू को कड़ा विरोध दर्ज कराना चाहिए था लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। चीन पर पीएम मोदी को घेरने से पहले राहुल गांधी को इतिहास में झांक लेना चाहिए कि कांग्रेस के राज में भारत की चीन के सामने क्या स्थिति थी और अब क्या स्थिति है।
चीन को मोदी राज में ही मिला है सख्त जवाब
विस्तारवादी चीन को सख्त जवाब तब मिला जब मोदी देश के प्रधानमंत्री बनें। फिर चाहे वह सीमा पर दोनों देशों के बीच हुई तनातनी का मामला हो, चीन के साथ व्यापारिक संबंध सीमित करने का मामला हो, चीन के ऐप बैन करने का मामला हो या गलवान में भारतीय सेना और चीन के सैनिकों के बीच हुई झड़प हो। हर बार चीन को माकूल जवाब दिया गया। पांच साल तक चीन सीमा पर अड़ा रहा लेकिन भारतीय सेना ने एक कदम भी चीन को आगे नहीं बढ़ने दिया। वहीं कांग्रेस के राज में चीन की सारी कारगुजारियां जानने के बाद भी नेहरू सरकार ने न तो सुरक्षा नीति को लेकर कोई ठोस कदम उठाया और न ही विदेश नीति के स्तर पर कुछ किया, नतीजा सबके सामने है, 1962 में चीन और भारत के बीच हुए युद्ध में क्या हुआ यह सबको मालूम है। आज भी चीन ने भारत के एक बड़े क्षेत्र पर कब्जा जमाया हुआ है।
वहीं मोदी के शासनकाल में पिछले दस सालों में भारत—चीन सीमा पर भारत की स्थिति मजबूत हुई है। भारत ने सीमा पर बुनियादी ढांचे में निवेश किया है। पिछले पांच सालों में बीआरओ ने 450 बुनियादी ढांचा परियोजनाएं इस क्षेत्र में पूरी की हैं। बॉर्डर तक आसानी से सैन्य सामग्री पहुंचाई जा सके इसके लिए सड़कें, पुल, टनल, हवाई क्षेत्र, और हेलीपैड बनाए गए हैं। सीमा पर चीनी गतिविधियों की निगरानी सैटेलाइट के जरिए करने की व्यवस्था की गई है। चीन ने कभी नक्शे में भारत के किसी क्षेत्र को अपना बताया तो भारत की तरफ से तत्काल कड़ा प्रतिरोध जताया गया। नतीजतन आज चीन के तेवर नरम पड़ गए।
चीन की प्रकृति सभी जानते हैं। चीन के साथ जितने भी देशों की सीमाएं लगती हैं हर एक से उसका विवाद है, लेकिन वहां के विपक्षी दल अपनी सरकार को अपने प्रधानमंत्री को कमजोर नहीं बताते। डरपोक नहीं बताते। वहीं राहुल गांधी लगातार ऐसा करते हैं। इसका सबसे ताजा उदाहरण पिछले महीने का है। गत् 9 सितंबर को अमेरिका के डल्लास में राहुल गांधी कहा था कि चीन में बेरोजगारी की समस्या नहीं है। जबकि भारत में बेरोजगारी है। इससे क्या यह जाहिर नहीं होता कि कांग्रेस का चीन से कोई समझौता है जिसके तहत वह अपने देश को नीचा दिखाने और सरकार को असहज करने का काम करते हैं।
अब जबकि सीमा पर तनातनी खत्म हो चुकी है और चीन के सैनिकों के सैनिकों ने सीमा पर से अपनी अस्थायी टेंट उखाड़कर पीछे हट रहे हैं तो इसे वैश्विक कूटनीति और विदेश नीति का एक बड़ा उदाहरण कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जाहिर है चीन के मुद्दे पर अब राहुल गांधी और तमाम विपक्षी नेताओं की बोलती बंद हो गई है। आगे भी यदि चीन के मामले पर राहुल गांधी कोई बयान दें तो पहले इतिहास में जाकर झांक जरूर लें।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।