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क्या पश्चिम बंगाल का हिन्दू ममता बनर्जी को लोकसभा चुनावों में बड़ी जीत पलायन करने के लिए दिया था !

आखिर क्यों ममता बनर्जी को हिंदुओं का दमन दिखाई नहीं देता। पश्चिम बंगाल में इतना सब हो रहा है। फिर भी वह मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं और वहां के हिन्दू पलायन को मजबूर हैं।

ममता बनर्जी को बहुसंख्यक समाज ने इसलिए तो सत्ता नहीं सौंपी थी कि उन पर अत्याचार होते रहें, हिंसक और उन्मादी भीड़ उन्हें निशाना बनाती रहे और वे वहां से पलायन करने को मजबूर हो जाएं। पश्चिम बंगाल एक बार फिर सुर्खियों में है। कारण वही पुराना है – मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदुओं का सुनियोजित दमन। लेकिन इस बार मामला और भी गंभीर है, क्योंकि यह सब एक संवैधानिक कानून के विरोध की आड़ में हो रहा है। वक्फ संशोधन विधेयक 2025 के दोनों सदनों से पारित होने और राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी दिए जाने के बाद वक्फ कानून बनने के बाद इसके विरोध में उन्मादी भीड़ द्वारा सुनियोजित तरीके से हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। पश्चिम बंगाल में जिन हिंदुओं के खिलाफ हिंसा हुई उनका तो इस कानून से प्रत्यक्ष कोई लेना-देना भी नहीं है, फिर भी उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।

मुर्शिदाबाद में उन्मादियों द्वारा हिंसा किए जाने के बाद सैकड़ों की संख्या में हिंदू परिवारों को अपने घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के विरोध में 8 अप्रैल को हिंसा शुरू हुई थी। अब भी लगातार वहां पर हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। इस हिंसा में एक पिता—पुत्र सहित तीन निर्दोष लोगों की जान जा चुकी है। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली ममता सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है। स्थिति बिगड़ती देख कलकत्ता हाईकोर्ट ने केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया है। पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना में भी हिंसा की कई घटनाएं हुई हैं। ममता राज में हिंदू बेबस नजर आ रहे हैं।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का बयान देती हैं कि यह विधेयक मुस्लिमों के अधिकारों को छीनने वाला है। यही नहीं उन्होंने यह बयान भी दिया कि वक्फ ने अपनी संपत्ति को हिंदुओं को सोशल वेलफेयर के लिए दान दिया है। कई जगहों पर वक्फ संपत्तियों पर हिंदू परिवार रहते हैं। उनका यह बयान साफ तौर पर इशारा करता है कि ममता का मुसलमानों के प्रति खास झुकाव है, क्योंकि वह उनका वोट बैंक हैं, लेकिन ममता बनर्जी यह क्यों भूल जाती हैं कि वह केवल मुस्लिम वोटों के चलते ही राज्य की सत्ता में नहीं हैं। पश्चिम बंगाल के हिंदुओं ने भी उन्हें वोट दिया है।

ममता बनर्जी तीन बार से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। वह 20 मई 2011 से इस पद पर हैं। 2021 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने 294 में से 212 सीटें जीती थीं। जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 77 सीटें मिलीं, और अन्य दलों को 2 सीटें मिली थीं। जाहिर ममता को पश्चिम बंगाल के बहुसंख्यक समाज ने भी वोट दिया होगा। तभी वह इतनी बड़ी संख्या में विधानसभा सीटें जीतने में कामयाब रहीं। फिर हिंदुओं पर इतने अत्याचार होने के बाद भी वह एकतरफा कैसे मुस्लिमों का पक्ष ले सकती हैं। यह वही पश्चिम बंगाल है जिसकी भूमि पर विवेकानंद, रवींद्रनाथ ठाकुर और नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे राष्ट्रनायक पैदा हुए हैं। आज वहां का भद्रलोक – बंगाल का वह बौद्धिक वर्ग जिसने राज्य की सांस्कृतिक चेतना को दशकों तक दिशा दी— खुद को असहाय महसूस कर रहा है।

लोकसभा चुनाव 2014 में 34 सीटें जीतने वाली टीएमसी को 2019 में करारा झटका लगा था और वह 22 सीटों पर सिमट गई थी। उस समय भाजपा ने 18 सीटें जीती थीं। 2024 में तृणमूल ने फिर वापसी की और 42 में से 29 सीटें जीत लीं, जबकि भाजपा 12 सीटों पर सिमट गई। बंगाल का आम हिंदू मतदाता अब खुद को असुरक्षित और ठगा हुआ महसूस कर रहा है। वक्फ कानून का विरोध करने वाली उन्मादी भीड़ ने जिस तरह की बर्बरता दिखाई गई, वह किसी लोकतांत्रिक राज्य में स्वीकार्य नहीं हो सकती। राष्ट्रीय राजमार्ग घंटों तब जाम किया गया, पुलिस की गाड़ियों को आग के हवाले किया गया, ट्रेनों पर पथराव किया गया। बावजूद इसके मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं और इमामों से मिल रही हैं।

जब एक समुदाय विशेष को कानून के खिलाफ हिंसक होने का छूट मिले और दूसरे समुदाय – विशेषकर बहुसंख्यकों – को सहने की नसीहत, तो यह लोकतंत्र तो नहीं हो सकता। यहां दुर्गा विसर्जन पर रोक लगा दी जाती है ताकि मुहर्रम के ताजिये निकल सकें। रामनवमी के जुलूस पर पथराव किए जाते हैं। जय श्रीराम कहने पर ममता भड़क जाती हैं। आखिर क्यों ममता बनर्जी को हिंदुओं का दमन दिखाई नहीं दे रहा है। आखिर क्यों उसकी आवाज प्रशासन और सत्ता तक नहीं पहुंच रही है।
पश्चिम बंगाल की धरती आज तुष्टीकरण की शिकार है। यहां हिंदू भय में जी रहे हैं। यह समय है जब राष्ट्रवादी ताकतों को बंगाल के इस बदलते सामाजिक समीकरण को समझते हुए अपनी लड़ाई लड़नी होगी। यहां पर सत्ता बदलनी होगी।
यह एक सामाजिक संघर्ष है – अपनी पहचान, अपने अधिकार और अपने अस्तित्व की लड़ाई का। जब भद्रलोक चीख उठे, तो समझ लीजिए कि समाज अब चुप नहीं बैठेगा। आने वाले चुनावों में ममता बनर्जी को इसका जवाब मिलेगा।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।