
सुप्रीम कोर्ट में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए स्कूल और अस्पतालों की सुविधा के लाभ लेने के लिए याचिका दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि इन शरणार्थियों के पास कोई पहचान पत्र नहीं है जिससे वह किसी स्कूल में दाखिला ले सकें। इस पर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बच्चों की पढ़ाई को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। याचिका पर अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी।
इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता आशीष राय कहते हैं, ”माननीय सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्याओं के बच्चों को लेकर जो कहा वह मानवीय आधार पर तो ठीक हो सकता है, लेकिन इससे घुसपैठ को भी बढ़ावा मिलेगा। एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट सरकार द्वारा दी जा रही मुफ्त सुविधाओं पर सवाल उठा रहा है। वहीं दूसरी तरफ इस तरह की याचिकाओं को सुनवाई योग्य मानकर जब इस तरह के फैसले दिए जाएंगे तो इसका भार किस पर पड़ेगा? जाहिर सी बात है सरकार पर ही। हमारे देश की इतनी बड़ी आबादी पहले से ही है। अभी पूरी आबादी तक भी सही से संसाधन और सुविधाएं नहीं पहुंच पाती हैं, ऐसे में देश में अवैध तरीके से घुस आए रोहिंग्याओं को सुविधाएं प्रदान करने से जो खर्च बढ़ेगा उसको कौन उठाएगा?”
राय कहते हैं, ”जब भी इस तरह का कोई मामला सामने आता है कथित लिबरल मानवाधिकार के नाम पर इस तरह की याचिकाएं दायर करते हैं। मानवाधिकारों की बात करना गलत नहीं है लेकिन इसकी आड़ में जो राजनीति होती है उसका क्या? मानवाधिकारों की बात करने वाले ये तमाम गैर राजनीतिक संगठन (एनजीओ) बड़े नाम वाले अधिवक्ताओं की सेवा लेते हैं। मैं पूछना चाहता हूं उसके लिए पैसा कहां से लाते हैं? कोई भी अधिवक्ता बिना फीस के तो खड़ा नहीं होगा। चलो यदि मानवता के नाते अधिवक्ता ने फीस नहीं भी ली तो भी बात तो वही है न, अवैध घुसपैठ को तो फिर भी बढ़ावा मिला।
हम शरणागत की रक्षा करते हैं। यही भारतीय सनातन परंपरा भी है, लेकिन अगर सामने वाला शरणार्थी हो तो! जो रोहिंग्या अवैध तरीके से भारत में घुस आए हैं उन्हें हमारी सरकार ने अभी शरणार्थी तो माना नहीं है वह तो अवैध घुसपैठिए ही कहे जाएंगे। जो वास्तव में शरणार्थी हैं, जैसे चीन के कब्जे के बाद तिब्बत से निर्वासित हुए लोग, पाकिस्तान से किसी तरह बच निकलकर भारत पहुंचने वाले हिंदू। उन सभी को सरकार ने शरणार्थी का दर्जा दिया है। उन्हें सुविधाएं भी मुहैया कराई जा रही हैं। उनके बच्चों को स्कूलों में दाखिला भी मिलता है। यहां सवाल उठता है कि जो अवैध तरीके से घुसे हैं उन्हें हम सुविधाएं क्यों दें? अपने संसाधनों का प्रयोग उन्हें क्यों करने दें? आप हमसे पूछकर शरण मांगकर तो आए नहीं हैं, आप बिना अनुमति के हमारे देश में दाखिल हुए हैं ऐसे में सुविधाएं दिए जाना तो दूर आप किसी भी चीज के पात्र नहीं रह जाते हैं।
राय आगे कहते हैं ”एक तरफ तो दुनिया के सबसे धनी और ताकतवर देश अपने यहां से घुसपैठियों को निकाल रहे हैं। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप को फिर से चुने जाने में उनके अवैध घुसपैठ पर रोक लगाने के वादे की महत्वपूर्ण भूमिका है। स्थानीय अमेरिकी अवैध घुसपैठ से आजिज आ चुके थे। ट्रंप के वादे पर उन्होंने विश्वास किया और उन्हें राष्ट्रपति बनाया। इसके बाद से आप देखिए, अमेरिका किस तरह घुसपैठियों पर कार्रवाई कर रहा है। ब्रिटेन भी इसी राह पर है, वहां के स्थानीय लोग भी अवैध घुसपैठ से बड़े परेशान हैं वे लगातार घुसपैठियों को बाहर निकालने की मांग करते रहते हैं। इसके उलट हमारे यहां पर अवैध घुसपैठ करने वालों के साथ कथित लिबरल लॉबी खड़ी हो जाती है। आनन—फानन में लिबरलों द्वारा चलाए जाने वाले एनजीओ उनके लिए खड़े हो जाते हैं। सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया जाता है। सरकार न माने तो न्यायालय का सहारा लेते हैं। मानवता के आधार पर उन्हें वहां से छूट भी मिल जाती है। इसका खामियाजा किसे भुगतना पड़ता है? हमें ही न! हम अपने संसाधनों का इस्तेमाल किसी भी घुसपैठिए को क्यों करने दें?”
वह कहते हैं, ”इस तरह के कथित लिबरल लोगों द्वारा चलाए जा रहे एनजीओ सोची—समझी साजिश के तहत ऐसा करते हैं। इसके लिए देश विरोधी ताकतों से उन्हें फंडिंग मिलती है। जिसका इस्तेमाल वे भारत की डेमोग्राफी बिगाड़ने के लिए करते हैं। आज घुसपैठियों के बच्चों को पढ़ने का अधिकार मिलेगा। अस्पताल का अधिकार मिलेगा। कल उनके अभिभावक यहां बसने के लिए जगह मांगेंगे,फिर रोजगार, इसके बाद नागरिकता। हमारे देश की परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा कैसे होने दिया जा सकता है। भारत की आबादी तकरीबन 150 करोड़ है। यह आबादी लगातार बढ़ रही है। जल्द ही हम दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश चीन को पीछे छोड़कर पहले नंबर पर पहुंच जाएंगे। चीन का क्षेत्रफल भारत से कई गुणा बड़ा है। वह आर्थिक तौर पर भी हमसे ज्यादा संपन्न है। उसके पास जमीन ज्यादा। हमारे पास तो सीमित जमीन है, सीमित संसाधन हैं। यदि हम हर घुसपैठिए के लिए ऐसे ही करते रहे तो हमारे लोगों का क्या होगा?”
राय अंत में कहते हैं “अवैध घुसपैठियों को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है न कि मानवाधिकार के नाम पर उन पर दया दिखाने की। यदि ऐसा नहीं किया तो देश की डेमोग्राफी बदलने में देर नहीं लगेगी। जिस तरह की स्थिति ब्रिटेन में हो चुकी है यहां पर भी हो जाएगी। ब्रिटेन में इस समय स्वयंभू 85 सक्रिय शरीयत अदालत काम कर रही हैं। वहां के कट्टरपंथी अपने विवादों को सुलझाने के लिए ब्रिटेन के कानून को नहीं मानते। उनका फैसला शरिया कानूनों के हिसाब से ये अदालत करती हैं। जबकि इन अदालतों को कोई भी कानूनी दर्जा वहां की ब्रिटिश अदालतों की तरह प्राप्त नहीं है। एक देश के कानून के समानांतर कट्टरपंथी वहां अपना कानून चला रहे हैं। क्या हम भारत में ऐसा ही होने देना चाहते हैं? ऐसा यहां पर न हो इसलिए इस विषय पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है।”
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।