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झूठ की बुनियाद पर किले नहीं बनाए जाते, पर राहुल गांधी हैं कि सुधरते ही नहीं

वह इंग्लैंड, अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में जाकर भारत की संसद, न्यायपालिका और प्रेस की स्वायत्तता पर प्रश्न उठाते हैं। राहुल गांधी बार-बार कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र नहीं बचा। विदेशी मंचों पर जाकर भारत में लोकतंत्र बचाए जाने की गुहार लगाते हैं।

राहुल गांधी फिर से अपने ‘संविधान बचाओ’ के झूठे दावे के साथ ओडिशा में रैली करने पहुंचे थे। वहां फिर से उन्होंने झूठे आरोपों की झड़ी लगाई, जैसे ओडिशा की सरकार अडानी चला रहे हैं, राज्य से 40000 महिलाएं गायब हो गईं, सरकार कुछ नहीं कर रही है, और तीसरा झूठ फिर से दोहराया कि भाजपा चुनाव आयोग के जरिए बिहार का चुनाव चोरी करने की कोशिश कर रही है।

राहुल गांधी ने राफेल पर झूठ बोला, उन्होंने बार-बार यह आरोप लगाया कि राफेल डील में भ्रष्टाचार हुआ। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी राफेल सौदे को पारदर्शी और वैध बताया, बावजूद इसके राहुल गांधी का यह प्रलाप जारी रहा। उन्होंने दावा किया कि भारत चीन के सामने झुक गया, चीन भारत में अंदर तक घुस आया है, मोदी सरकार कुछ नहीं कर रही। बाद में विदेश मंत्रालय और सेटेलाइट रिपोर्ट्स ने यह बात स्पष्ट की कि भारत ने कोई जमीन नहीं छोड़ी है। यह आरोप देश की सेना और विदेश नीति का अपमान करना नहीं तो और क्या है?

असल में राहुल गांधी का संकट यह है कि वे जन विश्वास खो चुके हैं और अब इसे फिर से पाने के लिए वे झूठ की बुनियाद पर एक राजनीतिक इमारत खड़ी करना चाहते हैं। लेकिन झूठ की बुनियाद पर न तो राजनीतिक विश्वसनीयता कायम होती है और न ही दीर्घकालिक नेतृत्व संभव है। जनता अब राजनीतिक प्रचारों से आगे बढ़ चुकी है। वह यह देखती है कि किसने क्या काम किया, किसने देश को आगे बढ़ाया और किसने केवल भाषण देने में और झूठे आरोप लगाने में समय बिताया।

वह इंग्लैंड, अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों में जाकर भारत की संसद, न्यायपालिका और प्रेस की स्वायत्तता पर प्रश्न उठाते हैं। राहुल गांधी बार-बार कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र नहीं बचा। विदेशी मंचों पर जाकर भारत में लोकतंत्र बचाए जाने की गुहार लगाते हैं। यह सबसे शर्मनाक है, लेकिन ऐसा उन्हें लगता नहीं। उन्हें न राजनीतिक शुचिता की कोई परवाह है, न ही भाषा की मर्यादा की। जब पूरा विश्व कोविड महामारी से जूझ रहा था, तब भारत में निर्मित कोविड वैक्सीन पर भी राहुल गांधी ने भ्रम फैलाया कहा कि यह भाजपा की वैक्सीन है इसे मत लगवाएं। कभी रोजगार के मुद्दे पर वह झूठ बोलते हैं तो कभी झूठमूठ में भारत की विदेश नीति को कटघरे में खड़ा करते हैं।

असल में राहुल गांधी का संकट यह है कि वे जनता की नब्ज नहीं समझते। उन्हें यह बात समझ नहीं आती कि अब भारत का मतदाता जागरूक है, वह वादों में नहीं, कार्यों में विश्वास करता है। जनता बार-बार उन्हें खारिज कर चुकी है, लेकिन वे यह मानने को तैयार नहीं हैं। वे हार के कारणों पर आत्ममंथन करने के बजाय उसे ईवीएम, चुनाव आयोग, न्यायपालिका और मीडिया पर मढ़ देते हैं। एक के बाद एक झूठ बोलना निराधार आरोप लगाना, तथ्यहीन वक्तव्य देना, संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल खड़े करना, यही राहुल गांधी की राजनीतिक शैली बन गया है।

राहुल गांधी को यह समझना चाहिए कि झूठ की बुनियाद पर किले नहीं बनते, यदि बना भी दिए जाएं तो वे गिर जाते हैं। राहुल गांधी बार-बार ऐसा करते हैं। जब एक प्रमुख विपक्षी दल का नेता राजनीतिक विमर्श को इस स्तर तक गिरा दे कि वह सिर्फ झूठ ही बोले तो यह केवल विपक्ष का नहीं बल्कि लोकतंत्र का भी अपमान है। राहुल गांधी को यह मान लेना चाहिए कि जनता उन्हें और कांग्रेस पार्टी को नकार चुकी है। अच्छा होगा कि वे आत्ममंथन करें, अपनी भाषा को संयमित करें, स्वयं को बदलें, तभी उनकी स्थिति कुछ ठीक हो सकती है। राहुल गांधी के पास दिखाने को न अतीत में कोई उपलब्धि है, न वर्तमान में कोई दिशा। ऐसे में झूठ की राजनीति से न तो वे स्वयं को बचा पाएंगे और न ही कांग्रेस को। वैसे भी देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की स्थिति बेहद खराब है, यदि यही स्थिति रही तो कहीं ऐसा न हो भाजपा का कांग्रेस मुक्त देश का दावा पूरी तरह सच हो जाए।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।