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हरियाणा सरकार का कोटे में कोटा का फैसला एक बड़ा मास्टर स्ट्रोक, समाज के अंतिम पायदान तक के वंचित वर्ग को मिलेगा इसका लाभ

मजबूत इच्छाशक्ति रखकर एससी और एसटी समुदाय में आने वाली आरक्षण से वंचित रही जातियों के हित में एक बहुत ही असरदार और दूरगामी प्रभाव वाला फैसला है

हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार ने पहली कैबिनेट बैठक में ही आरक्षण में कोटे के अंदर कोटा तय करने का सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल कर मास्टर स्ट्रोक चल दिया है। बड़ा सवाल यह है कि क्या दूसरे राज्यों की सरकारें और केंद्र सरकार भी सुप्रीम कोर्ट के इस बड़े फैसले को लागू कर वंचित समुदाय का भला करने की सोचेंगी? असल में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आरक्षण की मूल भावना को पोषित करता है। भाजपा शासित और राज्य सरकारों को भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का फायदा उठा कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास की रोशनी पहुंचाने का काम करना चाहिए।

आरक्षण पर वक्त-वक्त पर चलने वाली कुछ बहसें समाज को बांटने वाली भी साबित होती हैं। हालांकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर तबके को भी 10 फीसदी आरक्षण दे कर ऐसी खाइयों को पाटने का काम कुछ हद तक कर दिया है, लेकिन यह बात सौ फीसदी सही है कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण दे कर एससी, एसटी समुदाय के साथ अतीत में हुए भेदभाव को दूर कर समाज में उन्हें शक्तिशाली बनाने का मूल विचार पूरी तरह परवान नहीं चढ़ पाया। इसके लिए आजादी के बाद करीब 5.5 दशक तक केंद्र और राज्यों में रही कांग्रेस सरकारें ही जिम्मेदार कही जाएंगी। एससी और एसएटी समुदाय में आने वाली ऐसी बहुत सी जातियां हैं जिन्हें आज तक आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया है। केवल कुछ जातियां ही आरक्षण का लाभ ले रही हैं।

दरअसल कांग्रेस सरकारों ने शिक्षा का ऐसा सहज सुलभ तंत्र खड़ा नहीं किया, जिसमें अति वंचित समाज के बच्चे सिर ऊंचा कर पढ़-लिख सकें। इस वजह से एससी, एसटी समुदायों में शामिल कई जातियां विकास की मुख्यधारा के मुहाने तक भी नहीं पहुंच पाईं। देश को आजादी मिले 75 साल से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन एससी, एसटी की उन अति वंचित जातियों की हालत जस की तस ही है। दलित, वंचित समुदाय के अंदर भी छुआछूत जैसी बुराई पनपी है, तो साफ है कि आरक्षण लागू किए जाने की संवैधानिक व्यवस्था तो सही है, लेकिन इसका फायदा उन एससी, एसटी जातियों को ही मिलता रहा है, जो अपेक्षाकृत सबल थीं। कांग्रेस सरकारों ने इस पहलू को पूरी तरह नजरअंदाज किया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने रास्ता खोल दिया है। अब आरक्षण की साफ हवा उन तक पहुंचने में आसानी होगी, जो उसके वाकई हकदार हैं।

जहां तक हरियाणा का मामला है, तो अब वहां सरकारी नौकरियों में शेड्यूल कास्ट के लिए रिजर्व 20 प्रतिशत कोटे का आधा हिस्सा अभी तक अपेक्षाकृत ज्यादा वंचित रहे समुदाय को दिया जाएगा। मतलब यह हुआ कि राज्य में सरकारी नौकरियों में अब 10 फीसदी रिजर्वेशन वंचित अनुसूचित जातियों यानी डीएससी के उम्मीदवारों के लिए अलग रखा जाएगा। साफ है कि हरियाणा में डीएससी में शामिल 36 जातियों को इसका सीधा फायदा मिलेगा। नायाब सरकार के इस बड़े फैसले से राज्य के करीब 64 लाख एससी समुदाय के लोगों की किस्मत बदलने में मदद मिल सकती है। कोटे में कोटा लागू करने के ऐलान के साथ ही राज्य सरकार ने यह साफ किया है कि इस सिलसिले में शेड्यूल कास्ट की लिस्ट को केंद्र सरकार की ओर से जारी अधिसूचनाओं के हिसाब से वक्त-वक्त पर संशोधित किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की खंडपीठ ने अगस्त में छह-एक के बहुमत से दिए फैसले में राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में ज्यादा वंचित समूहों या जातियों को चिन्हित कर तय आरक्षण कोटे 20 फीसदी में से अलग-अलग कोटा लागू करने का अधिकार दिया था। अगर डिप्राइव्ड शेड्यूल कास्ट के योग्य उम्मीदवार नहीं मिलते हैं, तो दूसरी अनुसूचित जातियों के योग्य उम्मीदवारों को वे पद दिए जा सकते हैं। इसी तरह दूसरी अनुसूचित जातियों के उम्मीदवारों के लिए तय 10 फीसदी आरक्षण कोटा भरने के लिए अगर योग्य उम्मीदवार नहीं मिलते हैं, तो वे पद वंचित अनुसूचित जातियों के उम्मीदवारों से भरे जा सकते हैं।

एक अगस्त, 2024 को आए सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण फैसले के मुताबिक अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) कैटेगरी के लिए सब-कैटेगरी बनाई जा सकती हैं। इससे एससी, एसटी में भी जो जातियां ज्यादा पिछड़ी हुई हैं, उन्हें उभरने का ज्यादा मौका मिलेगा। कोर्ट ने साफ माना है कि एससी-एसटी कैटेगरी में शामिल सभी जातियों का विकास एक जैसा नहीं हुआ है लिहाजा आरक्षण का फायदा भी एक जैसा नहीं मिल पाता है। जो अति-पिछड़े हैं, वे सरकारी नौकरियों में आरक्षण का पूरा फायदा नहीं ले पाते हैं।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के तुरंत बाद ही राजनीति भी शुरू हुई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सभी पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर सबके मुंह बंद कर दिए। लेकिन कोर्ट के फैसले ने यह रास्ता तो खोल ही दिया है कि मजबूत इच्छाशक्ति रखकर एससी और एसटी समुदाय में आने वाली आरक्षण से वंचित रही जातियों के हित में काम किया जा सकता है। हो सकता है इसके लिए कुछ नेताओं की नाराजगी भी झेलनी पड़े लेकिन समाज के अंतिम पायदान तक विकास को पहुंचाने और उन को सुदृढ़ करने के लिए ऐसा किया जाना बेहद जरूरी है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।