newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

क्या ममता बनर्जी के राज में बंगाल में लोकतंत्र की जगह सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण रह गया है !

ममता सरकार में मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है। उदाहरण के तौर पर यदि दुर्गा पूजा और मुहर्रम एक ही दिन पड़ जाएं तो, तब ममता सरकार मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा देती है, ताकि…

कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक बार फिर ममता बनर्जी सरकार की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीतियों पर करारा प्रहार करते हुए पश्चिम बंगाल की नई ओबीसी सूची के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है। ये वही सूची है, जिसे राज्य सरकार ने हाल ही में जारी किया था। इस ओबीसी सूची में 140 जातीय समूहों को शामिल किया गया था, इनमें से 80 समूह मुस्लिम समुदाय से संबंधित थे। ऐसा इसलिए ताकि ओबीसी के आरक्षण का लाभ देकर ममता बनर्जी अपने परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक को और मजबूत कर सके।

अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर ममता सरकार ने इसे लागू किया था। ममता बनर्जी का सीधा सा ध्येय चुनावों से पूर्व मुसलमानों को राजनीतिक लाभ पहुंचाना था। न्यायमूर्ति तपोब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने मंगलवार को इस सूची पर अंतरिम रोक लगाते हुए ममता सरकार को स्पष्ट संकेत दे दिया है कि कानून के शासन से ऊपर कोई नहीं है। अब ममता बनर्जी कह रही हैं कि इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी।

ऐसा पहली बार नहीं है जब कलकत्ता हाईकोर्ट ने ममता बनर्नी की मनमानी पर रोक लगाई। पिछले महीने कोर्ट ने 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाण पत्रों को रद्द कर दिया था। तब भी हाईकोर्ट ने सरकार की नीयत और ओबीसी में शामिल किए जाने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे। ममता सरकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी गई थी लेकिन वहां से भी उसे निराशा ही हाथ लगी थी। ओबीसी सूची को लेकर दिया गया उच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल बेहद महत्वपूर्ण है बल्कि यह निर्णय ममता सरकार के उस मंसूबे पर पानी फेरने वाला है, जिसका प्रयोग कर ममता बनर्जी आरक्षण को तुष्टिकरण का हथियार बनाने का प्रयास कर रही थीं।

ममता सरकार जानबूझकर 140 समूहों को ओबीसी आरक्षण की सूची में लाई थी ताकि इसकी आड़ में 80 अन्य मुस्लिम समूहों को आरक्षण का लाभ दिया जा सके। जबकि वास्तविकता यह है कि सामाजिक पिछड़ापन इन समुदायों के चयन का आधार नहीं था, यह चुनावी राजनीति की एक चाल थी? कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस पूरे तंत्र की वैधानिकता पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने 31 जुलाई तक किसी भी प्रकार की आगे की कार्रवाई पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही उस पोर्टल और विभागीय प्रक्रिया को भी बंद कर दिया है, जिसके माध्यम से जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन मांगे जा रहे थे।

हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 और उसके बाद 2012 में लाए गए संशोधित स्वरूप के तहत सरकार की कार्यप्रणाली में गंभीर खामियां होने की बात कही। वैसे भी ममता सरकार संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण के प्रावधानों को मजहब के चश्मे से देखती है। भारत का संविधान मजहब आधारित आरक्षण की इजाजत नहीं देता। लेकिन ममता सरकार बार-बार ऐसे कदम उठा रही है, जिनका एकमात्र उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को विशेष लाभ देकर अपने वोट बैंक को मजबूत करना है।

पश्चिम बंगाल की राजनीति में जो हो रहा है वह कोई नई बात नहीं है। वामपंथियों के शासन में भी ऐसे ही मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति होती थी, लेकिन ममता बनर्जी ने उसे और बढ़ा दिया है। वह ओबीसी आरक्षण जैसे संवेदनशील विषय को भी तुष्टिकरण की नजरिए से देख रही हैं। पश्चिम बंगाल में सरकार जो कर रही है कि वह सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों को विकृत करने जैसा है। असल में तो आरक्षण का उद्देश्य उन वर्गों को आगे लाना है जो वास्तव में सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से वंचित रहे हैं लेकिन ममता सरकार ने ओबीसी आरक्षण को एक राजनीतिक सौदेबाजी में बदल दिया है, जिसमें तुष्टिकरण की गंध साफ झलकती है।

पश्चिम बंगाल में पिछले एक दशक से यही प्रयोग चल रहा है। पहले वक्फ बोर्ड को राजनीतिक हथियार बनाया गया, फिर मदरसों को सरकारी अनुदान देकर मजहबी संस्थाओं को बढ़ावा दिया गया। अब आरक्षण को भी इसी तुष्टिकरण की श्रृंखला में खड़ा कर दिया गया है। वह भी तब जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि मजहब के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक सहित कई राज्यों में भी ऐसी कोशिशों पर भी न्यायालय द्वारा कई बार सख्त टिप्पणी की जा चुकी है, बावजूद इसके ममता सरकार ने ऐसा किया। ऐसा करके ममता केवल और केवल उस समुदाय को खुश रखना चाहती हैं, जो उनकी राजनीति का स्थायी आधार बन चुका है।

ममता सरकार में मुस्लिम तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है। उदाहरण के तौर पर यदि दुर्गा पूजा और मुहर्रम एक ही दिन पड़ जाएं तो, तब ममता सरकार मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा देती है, ताकि मोहर्रम का जुलूस निकल सके। ममता सरकार हजारों सरकारी मदरसों को अनुदान देती है। बांग्लादेशी घुसपैठियों को पश्चिम बंगाल में तृणमूल के नेता राजनीतिक संरक्षण देते हैं। आज पश्चिम बंगाल में मुस्लिम बहुल इलाकों में परिस्थिति ऐसी है कि पुलिस भी बिना स्थानीय मजहबी नेताओं की अनुमति के वहां पर कार्रवाई नहीं कर सकती। मुस्लिम वोट बैंक को साधे रखने के लिए ममता सरकार खुलकर मुस्लिम तुष्टीकरण करती है, जिसका खामियाजा वहां अन्य लोगों को भुगतना पड़ता है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।