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लोकतांत्रिक व्यवस्था में काजी को निकाह का रजिस्ट्रेशन करने का अधिकार कैसे मिल सकता है !

जब बाकी धर्मों में शादी के बाद सरकारी नियमों के हिसाब से रजिस्ट्रेशन होता है तो फिर मुस्लिमों में काजी को रजिस्ट्रेशन करने का अधिकार क्यों है। असम में जो नियम सरकार ने बनाया है वैसा हर राज्य को बनाने की जरूरत है ताकि मुस्लिम लड़कियों की स्थिति मजबूत हो सके।

निकाह और तलाक मुस्लिम समाज के दो विषय ऐसे हैं जिनको लेकर जहां कट्टरपंथी शरीयत के नियमों की बात करते हैं वहीं प्रोग्रेसिव मुसलमान तरक्की की बात करते हुए इसके लिए नियम बनाने की बात करते हैं ताकि इस्लाम में महिलाओं की स्थिति अच्छी हो सके। असम सरकार ने मुस्लिम विवाह और तलाक रजिस्ट्रेशन एक्ट 1935 को रद्द कर दिया है। साथ ही कैबिनेट ने मुस्लिम विवाह और तलाक रजिस्ट्रेशन एक्ट 2024 को अपनी मंजूरी भी दे दी है। इससे दो चीजों में सबसे बड़ा बदलाव होगा। पहला, मुसलमानों में होने वाली शादियों का रजिस्ट्रेशन अब सरकार द्वारा होगा, काजी रजिस्ट्रेशन नहीं कर पाएंगे। दूसरा, यहां पर मुस्लिमों में होने वाली नाबालिगों की शादी को अवैध माना जाएगा।

दरअसल असम में बढ़ते जनसांख्यिकी असंतुलन को लेकर मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पहले भी बयान दे चुके हैं कि यहां पर हिंदू आबादी 13 जिलों में अल्पसंख्यक हो चुकी है। इसका एक बड़ा कारण वहां मुस्लिम लड़कियों की कम उम्र में शादी करना रहा है। शरीयत के प्रोफेसर रहे और वरिष्ठ अधिवक्ता शीराज कुरैशी कहते हैं” काजी को वैसे भी निकाह का रजिस्ट्रेशन करने का कोई अधिकार नहीं है, यदि विदेश जाना हो तो सरकारी नियमों के हिसाब से रजिस्ट्रेशन होता है। काजी का किया रजिस्ट्रेशन वहां पर मान्य नहीं होता। असम में इस तरह के नियम बनाए जाने का स्वागत किया जाना चाहिए। इससे यहां पर मुस्लिम महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार आएगा।”

राष्ट्रीय परिवाऱ स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार असम में 31.8 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 की उम्र से पहले ही हो जाती है, इसमें सबसे बड़ी संख्या मुस्लिम लड़कियों की होती है। पिछले दिनों असम सरकार ने बाल विवाह के खिलाफ राज्य में अभियान चलाया था। इस दौरान 3000 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे। इसमें 80 प्रतिशत से ज्यादा मामले मुसलमानों पर दर्ज हुए थे, क्योंकि नाबालिगों की शादी की सबसे ज्यादा दर असम में मुस्लिम समुदाय में ही थी।

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मुसलमानों के अलावा बात करें तो बाकी धर्मों में शादी के बाद आसानी से तलाक नहीं होता है, इसके लिए बाकायदा अदालत में जाना पड़ता है और जटिल कानूनी प्रक्रिया के बाद ही तलाक हो पाता है। वहीं मुस्लिमों में ऐसा नहीं है, काजी ही निकाह पढ़ाता है और काजी के सामने ही तलाक हो जाता है। यदि मामला न्यायालय में जाता है तो शरीयत का हवाला देकर न्यायालय में भी दलीलें दी जाती हैं और वहां मुस्लिम पर्सलन लॉ बोर्ड का हवाला दिया जाता है।

पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने का आदेश पारित किया था। इसके बाद असम सरकार का मुसलमानों के निकाह के लिए नियम बनाना एक अच्छा कदम है। असम के अलावा दूसरे राज्यों में भी इसी तरह का नियम बनाए जाने की जरूरत है, ताकि मुस्लिम समाज में होने वाले नाबालिगों के निकाह रोके जा सकें और शरीयत के नाम पर काजी जो नियम थोपते हैं उनसे उन्हें छुटकारा मिल सके।

असम में मुस्लिम विवाह के रजिस्ट्र्रेशन का एक बड़ा फायदा यह भी रहेगा कि सरकार के पास मुस्लिम समाज में होने वाले शादियों का पूरा रिकॉर्ड रहेगा। चूंकि निकाह के बाद रजिस्ट्रेशन होगा तो तलाक जैसे मामले भी कम आएंगे, सिर्फ बोल देने भर से तलाक नहीं होगा। जैसे निकाह के रजिस्ट्रेशन सरकार द्वारा किए जाएंगे वैसे तलाक के लिए भी वहीं जाना होगा। जाहिर बात ऐसा होने से मुस्लिम लड़कियों की स्थिति समाज में मजबूत होगी।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।