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नेहरू से मोदी की तुलना कैसे हो सकती है,मोदी जीतकर पीएम बने हैं जबकि नेहरू चुनकर बने थे

नेहरू के साथ मोदी की तुलना कैसे की जा सकती है ? नेहरू के सामने न चुनौती थी, न ही कोई बड़े राजनैतिक दल थे, न ही देश की परिस्थितियां ऐसी थीं। ऐसे में नेहरू से मोदी की तुलना बेमानी है

विपक्ष कई मौकों पर पंडित नेहरू से मोदी की तुलना करने की बात कहता है, जी यह सही है कि नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे, लेकिन क्या वह देश की और कांग्रेस पार्टी की पसंद थे ? इसका जवाब है नहीं, पहली बात तो यह जब नेहरू पीएम बने तो देश आजाद हुआ ही था, चुनाव हुए ही नहीं थे। उन्हें पीएम बनाया गया था गांधी जी की पसंद से, क्योंकि वह महात्मा गांधी के चहेते थे। वह संभ्रांत परिवार में चांदी की चम्मच मुँह में लेकर पैदा हुए और बिना चुनाव के देश के पहले प्रधानमंत्री बने, वहीं मोदी का जन्म पिछड़ी जाति के परिवार में हुआ। मोदी संघर्ष कर देश के प्रधानमंत्री बने। उन्होंने देश की सबसे पुरानी पार्टी को चुनाव में मात दी, जबकि नेहरू के सामने विपक्ष जैसी कोई चीज ही नहीं थी।

ऐतिहासिक साक्ष्यों को देखें तो 26 अप्रैल 1946 को कांग्रेस के नए अध्यक्ष का चुनाव होना था तो। उससे पहले ही मौलाना आजाद से नामांकन वापस लेने को कहा गया था, इसके लिए गांधी जी ने उन्हें पत्र लिखा था। इस चुनाव में सरदार पटेल जीते थे, बावजूद इसके नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया और आजादी के बाद वह देश के पहले ऐसे पीएम बनें जिनको जनता तो दूर उनके संगठन के लोग ही प्रधानमंत्री नहीं बनने देना चाहते थे। ऐसे में कैसे पंडित नेहरू और मोदी की तुलना की जा सकती है? मोदी जब 2014 में पीएम बने तो भारी मतों से जीतकर एनडीए ने सरकार बनाई थी।

1952 में देश में पहले लोकसभा चुनाव हुए तब नेहरू के सामने कोरा मैदान था, उन्हें चुनौती देने वाला कोई नहीं था। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी। उनके विरोध के लिए कोई सामने नहीं था। वहीं भाजपा के सामने तमाम विरोधी दल हैं। बावजूद इसके मोदी तीसरी बार भी अपने गठबंधन को निर्णायक बहुमत से जीत दिलाकर फिर से देश के प्रधानमंत्री बने। ऐसे में मोदी से नेहरू की तुलना कैसे की जा सकती है? मोदी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के साथ ही भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के तहत काम कर रहा है। इसका नतीजा है आज हम विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुके हैं।

jawahar lal and motilal nehru
जवाहरलाल नेहरू और मोतीलाल नेहरू (सबसे दाएं)

वहीं पंडित नेहरू की अदूरदर्शिता का खामियाजा हम आज तक भुगत रहे हैं। पहली अदूरदर्शिता उन्होंने कश्मीर के मामले में दिखाई 22 अक्टूबर 1947 को क़रीब 200-300 ट्रक कश्मीर में पाकिस्तान की तरह से दाखिल हुए। ये ट्रक पाकिस्तान के फ्रंटियर प्रोविंस के कबायलियों से भरे हुए थे। करीब 5000 कबायलियों ने पाकिस्तानी सेना की मदद से कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। महाराजा हरि सिंह के भारत में शामिल होने के लिए विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद जब भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ दिया और बाकी कश्मीर पर कब्जा करने जा रही थी तो नेहरू जी ने एक तरफा युद्ध विराम की घोषणा कर दी, नतीजतन कश्मीर के एक बड़े हिस्से का कब्जा आज भी पाकिस्तान के कब्जे में है, इसका खामियाजा हम आज तक भुगत रहे हैं। इसके बाद नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को कश्मीर सौंप दिया। आर्टिकल 370 लगाकर उसे विशेष राज्य का दर्जा दे दिया। इसका खामियाजा हमने अभी तक भुगता। जब भाजपा सत्ता में आई तो इसे खारिज किया गया। आज भारत सीमा पार कर आतंकवादियों को ठिकाने लगा रहा है और किसी की हिम्मत नहीं हो रही भारत को पलट कर जवाब दे। ऐसे में मोदी से नेहरू की तुलना कैसे की जा सकती है ?

अब चीन को लेकर ही नेहरू की अदूरदर्शिता की बात करते हैं। 1950 में ही तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने नेहरू को चीन के प्रति आगाह कर कहा था कि हम दो मोर्चों (पाकिस्तान और चीन) के साथ कठिनाई का सामना कर रहे हैं, इस तरफ ध्यान देने की जरूरत है। इस पर नेहरू ने पटेल को कहा कि हिमालय की तरफ से हम पर हमला करना किसी के लिए भी असंभव है। उन्होंने चीन के खतरे को पूरी तरह खारिज कर दिया। इससे पहले ही उन्होंने 1949 में हुई चीन की साम्यवादी क्रांति को मान्यता दे दी थी। नेहरू ने 29 अप्रैल 1954 को चीन के साथ पंचशील समझौता किया था। यहां तक कि तिब्बत पर किए गये चीन के अधिकार को भी स्वीकार कर लिया था। इसके बाद चीनी सैनिक भारतीय सीमा में अतिक्रमण करने लगे तो उन्हें अनदेखा किया गया।

चीन ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए भारत पर विस्तारवादी होने का आरोप लगाया और 29 दिसंबर, 1959 को भारत के विदेश मंत्रालय को एक नक्शा भेजा जिसमें कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र और अरुणाचल प्रदेश के 50,000 वर्ग मील क्षेत्र को अपने कब्जे में दिखाया। बावजूद इसके नेहरू आंखें मूंदे रहे। उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। चीन ने भारत पर हमला कर दिया और 20 अक्टूबर से 21 नवंबर, 1962 तक चले इस युद्ध में भारत को पराजय मिली। आज भी अक्साई चीन के इस हिस्से पर चीन कब्जा जमाए बैठा है। अब जबकि देश का नेतृत्व मोदी के हाथों में है चीन अभी भी ऐसा प्रयास करता है लेकिन अब भारतीय सेना उसे जवाब देती है। कई मौकों पर भारत से हुई छोटी—छोटी मुठभेड़ में चीन को भारत से मुंह की खानी पड़ी है। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जवाहरलाल नेहरू की तुलना कैसे की जा सकती है?

पाकिस्तान के कब्जे वाला ग्वादर, जो सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। चीन ने वहां भारी निवेश किया है, ग्वादर पोर्ट पाकिस्तान का तीसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है। 1950 के दशक तक ग्वादर पर ओमान का शासन रहा। तब ओमान ने इसे भारत को बेचने की कोशिश की थी लेकिन नेहरू जी ने इसके लिए मना कर दिया, जबकि पाकिस्तानी सेना ने 1958 में इसे तीन मिनियल पाउंड में खरीद लिया। आज चीन के कर्ज के मकड़जाल में पाकिस्तान बुरी तरह से फंसा हुआ है, चीन ने यहां एयरपोर्ट बनाया जो भारत के लिए भी खतरा है। सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण इस इलाके को भारत में न मिलाकर पंडित नेहरू ने अपनी एक और अदूरदर्शिता का परिचय दिया था।

अब आते हैं पंडित नेहरू के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की बात पर तो तब तक भी कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी थी और उसे देश में बड़ी चुनौती देने में कोई दल सक्षम नहीं था। इस चुनाव तक आते—आते नेहरू जी की लोकप्रियता काफी घट गई थी। पिछले दो चुनावों के मुकाबले इस चुनाव में उन्हें कम वोट मिले। पंडित नेहरू चुनाव तो जीत गए थे, लेकिन 1964 में उनका निधन हो गया। इसके बाद 1967 में तो कई राज्यों में कांग्रेस को कड़ी चुनौती मिलने लगी और कई क्षेत्रीय दल भी तब तक ताकतवर हो चले थे। वहीं मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो चुनाव लड़कर बने, उनके सामने चुनाव लड़ रही देश की सबसे पुरानी पार्टी के साथ कई मजबूत क्षेत्रीय दल उन्हें हराने के लिए चुनाव लड़े। बावजूद इसके भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी रही। ऐसे में नेहरू के साथ मोदी की तुलना कैसे की जा सकती है? नेहरू के सामने न चुनौती थी, न ही कोई बड़े राजनैतिक दल थे, न ही देश की परिस्थितियां ऐसी थीं। ऐसे में नेहरू से मोदी की तुलना बेमानी है।

आज जब देश में विदेशी राष्ट्राध्यक्ष या विदेशी मेहमान आते हैं तो मोदी उन्हें देश का विकास दिखाते हैं। देश में हुए निर्माण दिखाते हैं, वहीं जब पहले देश में विदेशी राष्ट्राध्यक्ष और मेहमान आते थे तो नेहरू जी सपेरे बुलाकर उन्हें स्वांग दिखाते थे। ऐसे में कैसे नेहरू की तुलना मोदी से की जा सकती है? एक तरह नेहरू जो विदेश में पढ़े लिखे थे उनके कपड़े पेरिस से धुलकर आते थे, एक तरफ मोदी हैं जिन्होंने सदैव अपने कपड़े स्वयं धोये। संगठन में काम किया, अपने को तपाया, कुंदन बनें। पहले तीन बार लगातार गुजरात के सीएम बनें और फिर तीसरी बार लगातार देश के पीएम बनें। कोई चुनाव आज तक नहीं हारे। विदेशों में भारत का डंका बजवाया। अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के तहत काम करते हैं। अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश के मना करने के बाद भी रशिया से तेल खरीदकर वैश्विक तौर मजबूत संदेश देते हैं कि भारत अब अपनी शर्तों पर चलेगा। उसकी अपनी स्वतंत्र विदेश नीति है। ऐसे में कैसे पंडित नेहरू से मोदी की तुलना की जा सकती है?

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।