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जिन्हें देश की जीत या उपलब्धियों से चिढ़ होती है उन्हें देश में रहने का अधिकार कैसे !

क्रिकेट में जीत का जश्न मनाते लोगों पर पथराव करना, आगजनी करना सीधे तौर पर देश की संप्रभुता को चुनौती देना है। यह देशद्रोह नहीं तो और क्या है?

खेल में भारतीय टीम की जीत का जश्न मना रहे लोगों ने मस्जिद के आगे पटाखे चला दिए तो कौन सा गुनाह कर दिया? पर इसी बात को आधार बनाकर आगजनी की गई। दुकानें क्षतिग्रस्त कर दी गईं। फिर यह झूठा विमर्श खड़ा करने का प्रयास किया कि भीड़ ने मस्जिद के आगे ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए थे। यदि नारा लगा भी दिया तो कौन सा अपराध हो गया। पिछले दिनों तो सुप्रीम कोर्ट ने भी यह सवाल उठाया था कि मस्जिद के अंदर ‘जय श्री राम’ का नारा लगाना कैसे अपराध हो सकता है? यह सवाल कर्नाटक हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान किया गया जिसमें दो लोगों के खिलाफ हुई कार्रवाई को रद्द कर दिया गया था।

यदि मुस्लिम बहुल इलाके से कोई धार्मिक जुलूस निकलता है तो उसका विरोध किया जाता था, उस पर पथराव किया जाता है, क्यों ? पथराव की ये मानसिकता देश विरोधी नहीं है तो और क्या है। यह सीधे तौर पर देश के खिलाफ द्रोह करना ही तो है। कट्टरपंथी सेना पर पथराव करते हैं, उन्हें समझाने गए पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों पर पथराव करते हैं। कार्रवाई होती है तो विक्टिम कार्ड खेलते हैं। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के सम्भल में यही हुआ।

सरदार पटेल ने 1948 में कोलकाता में दिए गए अपने भाषण में स्पष्ट कहा था, ”जो मुसलमान अभी भी भारत में हैं, उनमें से कइयों ने पाकिस्तान के निर्माण में मदद की। अब वे मुसलमान कहते हैं कि वे वफादार हैं और पूछते हैं कि उनकी वफादारी पर सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं तो मैं जवाब देता हूं कि आप हमसे क्यों सवाल कर रहे हैं, खुद से पूछिए। आपने पाकिस्तान बनाया, आपके लिए अच्छा है आप वहां चले जाएं तो आपके लिए बेहतर होगा। कुछ लोग कहते हैं, पाकिस्तान और भारत को एक साथ आना चाहिए। मैं कहता हूं कि ऐसी बातें कहने से बचना चाहिए। पाकिस्तान को स्वर्ग बनने दो, हम जहां हैं वहां ठीक हैं।”

इस देश में क्रिकेट को खेल नहीं, धर्म माना जाता है, जो सबका साझा होता है। शायद ही ऐसा कभी हुआ हो कि भारत की टीम में कोई मुस्लिम खिलाड़ी न रहा हो। भारत की क्रिकेट में हर पंथ, धर्म और मजहब को मानने वाले खिलाड़ी रहे हैं। कई मुस्लिम खिलाड़ी भारतीय टीम में कप्तान रहे हैं। देश के बहुसंख्यक समाज ने उन्हें सिर आंखों पर रखा। किसी को धार्मिक चश्मे से नहीं देखा, लेकिन क्रिकेट में जीत का जश्न मनाते लोगों पर देश में कई जगह हुए पथराव ने यह साबित कर दिया कि जिन लोगों ने पथराव किया वो खिलाड़ियों को तो छोड़ो, इस देश को भी अपना नहीं मानते हैं। गत रविवार को चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के बाद मध्यप्रदेश के महू में रविवार को जश्न मनाते लोगों पर पथराव किया गया। आगजनी की गई। कितने ही वाहन और दुकानें क्षतिग्रस्त कर दी गईं, जला दी गईं। इंदौर में जीत का जश्न मनाने पर एक युवक की हत्या कर दी गई। गुजरात के दहेगाम में हिंसा हुई, पथराव हुआ। महाराष्ट्र के पुणे में स्थित एफसी रोड पर भी जश्न के दौरान कट्टरपंथियों ने पथराव किया। ये तमाम घटनाएं इस तरफ इशारा करती हैं कि कट्टरपंथी सोच एक समुदाय के विशेष लोगों में किस तरह घर कर चुकी है।

जिस देश में सबको एक नजर से देखा जाता है। उस देश में कट्टरपंथियों के लिए कोई जगह क्यूं होनी चाहिए ? इस तरह की कट्टरपंथी सोच, देश की सहिष्णुता, देश की परंपरा और समाज के लिए खतरनाक है। जिन्हें भारतीय टीम की जीत का जश्न मनाए जाने, दूसरे धर्मों के लोगों के जुलूस निकालने, जय श्री राम का नारा लगाने से आपत्ति है उन्हें उस देश में चले जाना चाहिए, जहां ऐसा न होता हो। आप हिंदुओं के त्योहारों पर निकलने वाले जुलूस में पथराव करोगो, दुर्गा पंडालों में तोड़फोड़ करोगे, मस्जिद के आगे पटाखे छोड़े जाने पर आगजनी करोगे और फिर यदि कार्रवाई होगी तो ढिंढोरा पीटोगे कि हम पर सख्ती की जा रही है, हम इस देश में, इस सरकार में सुरक्षित नहीं हैं। यदि आप खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते, आपको किसी दूसरे धर्म और पंथ के लोगों के जश्न मनाने से परहेज है तो फिर आप इस देश में क्यों रहना चाहते हैं? जब देश का बंटवारा हुआ तो तमाम मुसलमान जो वहां जाना चाहते थे, वे वहां चले गए। पथराव और आगजनी करने वाले कट्टरपंथी मजहबी उन्मादियों को यदि सरकार से, देश के लोगों से इतनी ही आपत्ति है तो उन्हें यहां रहने की क्या जरूरत है ?

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।