
देश के इतिहास को नकार कर कथित वामपंथियों और कट्टरपंथियों के नक्शे कदम पर चलकर औरंगजेब की जिंदाबाद करने से देश के मुसलमानों का भला नहीं होगा। महज कुछ सौ बरसों में वह यह क्यों भूल गए कि भारत में जितने भी मुसलमान हैं वह सब जबरन धर्मांतरित कर मुसलमान बनाए गए हैं। हाल में रिलीज हुई फिल्म छावा को लेकर भी ऐसा ही नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। छावा में औरंगजेब की क्रूरता दिखाई गई है कि उसने किस तरह से छत्रपति संभाजी महाराज को छल से बंदी बनाने के बाद उनके साथ क्रूरता की हदें पार कर दी थीं। इस फिल्म के आने के बाद देश में मुगलों को लेकर एक विमर्श खड़ा होना शुरू हुआ कि मुगल आक्रांता थे, अत्याचारी थे। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस फिल्म की प्रशंसा की। इसके बाद से सारी वामपंथी लॉबी यह साबित करने में जुट गई कि शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज और उनके बाद मराठों ने जो भी युद्ध किए ये देश के लिए नहीं बल्कि एक क्षेत्र विशेष के लिए थे।
कथित लिबरल लॉबी और भारत के तमाम मुसलमान यह क्यों भूल जाते हैं कि बाबर का जन्म वर्तमान उज़्बेकिस्तान में हुआ था। वह तैमूर और चंगेज खान का वंशज था। ये दोनों ही इतिहास में अपनी क्रूरता के लिए प्रसिद्ध हैं। 1526 में मुगल साम्राज्य की नींव रखी गई थी। इसके बाद बड़े पैमाने पर भारतीय जनता पर अत्याचार किए गए। जबरन इस्लाम को फैलाने की कोशिश की गई। तलवार के जोर पर कन्वर्जन कराए गए। वही औरंगजेब, जिसे कथित लिबरल लॉबी ‘महान योद्धा’ कहने से नहीं चूकती, भारत के इतिहास में सबसे क्रूर और असहिष्णु शासकों में से एक था। उसने मंदिरों को ध्वस्त किया, गैर-मुस्लिमों पर जजिया कर लागू किया, और लाखों हिंदुओं का तलवार के बल पर कन्वर्जन कराया। यही कथित लिबरल लॉबी उसे टोपी सीकर गुजारा करने वाला मजहबी और पांचों वक्त का नमाजी बताती है।
भारत के लगभग शत प्रतिशत मुसलमान यदि अपनी वंशावली देखेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि वे भी कभी हिंदू ही थे। उनके बाप—दादाओं ने अपनी मर्जी से अपना धर्म नहीं बदला था, बल्कि उन्हें जबरन तलवार के दम पर ऐसा करने के लिए मजबूर किया गया था। इसका सबूत आज भी देश के विभिन्न राज्यों में रह रहे मुसलमानों के नाम के साथ लगाए जाने वाले गोत्र हैं। मुसलमान भी बड़े गर्व से कहते हैं, हम मुस्लिम राजपूत हैं, हम मूले जाट हैं, हम मुस्लिम गुर्जर हैं, मुस्लिम त्यागी हैं। यदि ऐसा है तो उन्हें अपने इतिहास पर इसलिए गर्व करना चाहिए कि उनके पुरखों ने कैसे आक्रांताओं से लड़ाई लड़ी, सिर कटा लिए पर झुके नहीं, न कि इसलिए कि औरंगजेब मुसलमान था और हम भी मुसलमान हैं।
एक फिल्म आई और कथित सेकुलर लॉबी फिर से भ्रमित करने के लिए मैदान में कूद पड़ी। कहीं पर औरंगजेब जैसे आततायी को महान शासक बताया जा रहा है तो कहीं यह लिखा जा रहा है कि उसके काल में जो युद्ध हुए वह क्षेत्र विशेष पर एकाधिकार के लिए हुए। कथित लिबरल लॉबी अक्सर मुगल शासन को एक ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ (हिंदू-मुस्लिम सांस्कृतिक मिश्रण) के रूप में प्रस्तुत करती है। वह यह नजरअंदाज कर देती है कि कैसे मुगलों ने अपने आक्रमण के दौरान अत्याचार किए? कैसे उन्होंने मजहब के नाम पर लोगों को मारा? उन्हें तलवार के बल पर मजबूर किया कि वे अपना धर्म छोड़कर इस्लाम कबूल कर लें। सोशल मीडिया पर मुगलों के लिए कसीदें पढ़े जा रहे हैं। उनकी तारीफ करते हुए वीडियो शेयर किए जा रहे हैं। यह लिखा जा रहा है कि महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज जैसे वीर हिंदू राजाओं के संघर्ष केवल उनके क्षेत्रों की रक्षा के लिए थे और कोई राष्ट्रीय भावना उनमें नहीं थी। हर बार की तरह एक बार फिर देश में झूठा नैरेटिव खड़ा करने की कोशिश की जा रही है।
छावा फिल्म मुगल इतिहास के सबसे क्रूर और आततायी शासक औरंगजेब के काले सच को बताती है। बावजूद इसके उसे महान बताने का प्रयास हो रहा है। क्या इस बात को झुठलाया जा सकता है कि औरंगजेब ने हिंदुओं के मंदिरों को नहीं तोड़ा? गुरु तेग बहादुर का सिर कलम नहीं करवाया? अपने ही परिवार के लोगों को सत्ता के लिए नहीं मार डाला? यह जानते हुए भी कि वह आक्रांता था, अत्याचारी था, यदि भारत के मुसलमान उसकी जिंदाबादी करते रहेंगे और कथित लिबरल लॉबी के बहकावे में आकर अपने इतिहास को नहीं जानेंगे तो उनका भला नहीं होगा। इस तरह की मानसिकता अत्यधिक खतरनाक है, क्योंकि यह उन विचारों को बढ़ावा देती है जो भारत की संस्कृति और सहिष्णुता के खिलाफ हैं।
भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों को छोड़ दें तो दुनिया के किसी भी मुस्लिम देश जैसे सऊदी अरब, नाइजीरिया, मिस्र, तुर्की, अल्जीरिया, सूडान, बहरीन, ब्रूनेई, ईरान, इंडोनेशिया, इराक, जॉर्डन कहीं पर भी मुसलमानों में जाति नहीं है। वहां मुस्लिम गुर्जर नहीं हैं, मुस्लिम राजपूत नहीं हैं, मुस्लिम त्यागी नहीं हैं। वहां कोई मुसलमान पंडित, भट्ट जैसे सरनेम नहीं लगाता। ऐसे में मुगल आक्रांताओं पर गर्व करना कम से कम भारत के मुसलमानों को तो शोभा नहीं देता।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।