
पूरे देश में कश्मीरी पंडित नरसंहार पर विवेक रंजन अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी ‘द कश्मीरी फाइल पिक्चर’ को न सिर्फ सराहा जा रहा है बल्कि यह पिक्चर उस समय के मुस्लिमो द्वारा चुन-चुन कर कश्मीरी पंडितों को बड़ी बेरहमी से मारे जाने की दास्तां को जीवंत भी करती है। युवा,बच्चे, बूढ़े हर उम्र के लोग इस पिक्चर को एंटरटेनमेंट के नजरिये से नहीं बल्कि स्वतंत्र भारत में हिन्दुओं के सबसे बड़े नरसंहर को किस तरह से अंजाम दिया गया और उसके पीछे किस तरह की सोच थी, को महसूस करने जा रहे है। चूंकि यह न तो बड़े बजट की फिल्म है न ही अनुपम खेर को छोड़कर कोई बड़ा सुपरस्टार इस फिल्म में है। इसके अलावा इस फिल्म को तो शुरुआत में पूरे थिएटर, स्क्रीन आदि भी नहीं दी गयी, कई जगह से इसके पोस्टर हटाने के आरोप लगे तो कई थिएटर में इसके साउंड को म्यूट करने के, लेकिन फिर भी कश्मीरी पंडितों के दर्द को महसूस करने की यह कहानी का जादू भारत के कोने-कोने में सर चढ़ बोल रहा है। किन्तु रह-रहकर एक ही गंभीर विचार दिल में आ रहा है कि “क्या हर भारतीय यह दर्द महसूस कर रहा है? वाकई में मुस्लिमों द्वारा दर्दनाक एवं भयंकर तरीके से कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर बनी इस कहानी को थिएटर में हर भारतीय देख रहा है, हर भारतीय का मतलब, भारतीय मुसलमान भी? क्या भारतीय मुस्लिम भी इस कहानी को देख कर उनके साथ इंसाफ की बात कर रहा है या यहां भी इसे राजनीति का एक हथियार मानकर कर इतिश्री कर ली जा रही है।”
गंगा-जमुना तहजीब की बात करने वाले भारतीय मुस्लिम और तमाम बुद्धिजीवी लोग क्या जनवरी 1990 में कश्मीर में हुए नरसंहार पर बनी इस दर्दनाक कहानी को देख कश्मीरी पंडितो के साथ हुए अन्याय के लिए अब आवाज उठाएंगे? क्या भारतीय मुस्लिम भी इस दर्दनाक कहानी को पर्दे पर अन्य भारतीय के साथ जाकर महसूस करेंगे? अभी तक मुझे ऐसा कोई भारतीय मुस्लिम नहीं मिला जिसने खुले दिल से इस पिक्चर को सराहा और कहा हो कि” उस समय कश्मीरी पंडितों के साथ जो हुआ उसे लेकर मेरे मन में उन मुस्लिमो के प्रति गुस्सा भी है और नफरत भी जिन्होंने इस नरसंहार में भाग लिया। भले वो चाहे मूक दर्शक बनकर खड़े थे या अत्याचारी बनकर। आज कश्मीरी पंडितों को न्याय मिलना चाहिए।” किसी भी भारतीय मुस्लिम की तरफ से यह सांत्वना नहीं देखी मैंने अब तक।
हां उनकी तरफ से “उस समय केंद्र में बीजेपी के सहयोग से वीपी सिंह की सरकार थी और जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था तो इसके लिए बीजेपी जिम्मेदार हुई” कह कर पुनः मुस्लिमों के द्वारा कश्मीरी पंडितों के ऊपर हुए अत्याचार पर मिट्टी डालते हुए देखा है। वो अभी भी स्वीकार नहीं कर रहे है की मुस्लिमों ने ही यह अत्याचार सिर्फ धर्म के आधार पर किया था और इसमें बलि सिर्फ हिन्दुओं की छड़ी थी। मैं उन तमाम मुस्लिम एवं अन्य लोगों से पूछना चाहता हूं जो इसे केंद्र में बीजेपी समर्थक सरकार एवं राज्य में गवर्नर शासन का हवाला देकर पंडितों के ऊपर हुए अत्याचार को बीजेपी-आरएसएस की साजिश बताकर अपनी पीठ थपथपा रहे है, वो सभी बताये कि “क्या उस समय के कश्मीरी मुस्लिम बीजेपी आरएसएस के एजेंट थे? क्या उस समय कश्मीरी मस्जिदों पर जहां से कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने, मरने या धर्म परिवर्तन करने की धमकी एवं हिंसा भड़काने वाले उद्घोष दिए गए थे, बीजेपी आरएसएस की तूती बोलती थी? क्या कश्मीरी मुस्लिम के अलावा पूरे भारत के मुस्लिम बीजेपी आरएसएस के गुलाम हो गए थे, जिन्होंने बीजेपी समर्थक सरकार का विरोध नहीं किया?” खेर छोड़िये, इस सवालों का जवाब आप लोगों के पास नहीं होगा। आप कश्मीरी पंडित नरसंहार की बात करते ही 2002 में गोधरा कांड की बात करेंगे लेकिन गुजरात दंगे की सूत्रधार घटना जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा ट्रेन रोककर जलाने से 59 हिन्दू कार-सेवकों की मौत हो गई थी जो अयोध्या से लौट रहे थे पर फिर मौन धारण कर लेंगे।
हर समय आजाद-आजादी मांगने वाली बुद्धिजीवी गैंग भी कहीं नजर नहीं आ रही और तो और अब तो इस फिल्म को देखकर जो, इमोशनल हो रहे है,दुखी हो रहे है, गुस्से में है के वीडियो जो वायरल हो रहे है तो यह बुद्धिजीवी उनको आईटी सेल का कारनामा बताकर कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अत्याचार को छुपाने का प्रयास कर रहे है। कई लोग तो इसे बीजेपी-आरएसएस की मूवी बता रहे है। अभियक्ति की आजादी का ढोल पीटने वाले तथाकथित धर्मनिरपेक्ष, बुद्धिजीवी, राजनेता, बूढ़े हो चुके विद्यार्थी, बॉलीवुड गैंग आदि मुस्लिमों के ऊपर हुए अत्यचारा पर हिन्दुओं को खलनायक बताकर सैकड़ो बार कठघरे में खड़े करने वाले, द कश्मीर फाइल्स की सच्चाई पर मुंह फुलाए घूम रहे है और इसे समाज में द्वेषता फैलाने का करनामा करार दे रहे है,क्योंकि इस मूवी में इस बार खलनायक अपर कास्ट हिन्दू नहीं बल्कि चुनिंदा मुस्लिम है।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि वाकई यह मूवी लाजवाब है और आगे भी ऐसी मूवी बननी चाहिए ताकि भारतीयों को कम से कम सच्चे इतिहास को जानने का मौका तो मिले। इस मूवी को जिस तरह से देश के कोने कोने में प्यार मिल रहा है यह बॉलीवुड के लिए भी खतरे की घंटी है की अब देश का नागरिक सच जानना चाहता है भले आपकी मूवी में कोई बड़ा सितारा न हो, आइटम सांग न हो, शानदार एक्शन सीन न हो लेकिन यदि आप इतिहास को जो का त्यों भी दिखा डोज तो आपको सर आंखों पर बैठाया जायेगा।