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क्या राहुल गांधी को हरियाणा में कांग्रेस की हार का डर सता रहा है !

भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के डरकर राहुल गांधी आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ना चाह रहे हैं। उन्हें डर है कि तमाम दावों के बाद कहीं हरियाणा में भी कांग्रेस का हाल राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसा न हो जाए।

हरियाणा विधानसभा चुनावों को लेकर हुई कांग्रेस की बैठक में राहुल गांधी ने मल्लिकार्जुन खड़गे, भूपेंद्र हुड्डा, हरियाणा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष उदय भान व कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं के सामने कहा कि हरियाणा में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहिए। राहुल गांधी का आप के साथ गठबंधन करने को कहना कहीं न कहीं इस बात का सबूत है कि राहुल गांधी को हरियाणा में कांग्रेस की जीत का भरोसा नहीं है।

हालांकि कांग्रेस पार्टी द्वारा कराए गए तमाम इंटरनल सर्वे में यह दावा किया गया है कि कांग्रेस हरियाणा में जीत हासिल करने जा रही है, लेकिन संभवत: राहुल गांधी को इस बात का आभास है कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ की तरह वह हरियाणा भी हार जाएंगे। जबकि इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार थी। पिछले साल इन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की तरफ से छाती ठोककर दावे किए गए थे कि कांग्रेस यहां पर वापसी करेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दोनों ही राज्यों में कांग्रेस की सरकार होने और जीत के बड़े-बड़े दावों के उलट कांग्रेस को यहां पर हार का सामना करना पड़ा था। मध्यप्रदेश को लेकर भी कांग्रेस ने भाजपा के लिए ‘एंटी इंकम्बेंसी’ होने की बात कहकर बड़े—बड़े दावे किए थे लेकिन यहां कांग्रेस की क्या स्थिति हुई यह किसी से छिपा नहीं है।

ऐसा ही कुछ हरियाणा में भी हो सकता है। हरियाणा में पिछले दस सालों से भाजपा की सरकार होने के चलते वहां एंटी इंकम्बेंसी की बात कही जा रही है लेकिन इसका कोई बड़ा नुकसान भाजपा को होगा ऐसा नजर नहीं आ रहा है। जानकारों का कहना है कि भले ही यहां पर एंटी इंकम्बेंसी होने की बात कही जा रही हो लेकिन भाजपा का पलड़ा यहां पर भारी है। दरअसल यदि आम आदमी पार्टी यहां पर अच्छे से चुनाव लड़ती है तो उसका खामियाजा कांग्रेस को ही भुगतना पड़ेगा। आम आदमी पार्टी के उदय से अभी तक का इतिहास देखें तो आम आदमी पार्टी ने हमेशा कांग्रेस को ही सत्ता से बाहर करने काम किया है। फिर चाहे वह दिल्ली हो या फिर पंजाब दोनों ही जगह पर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस का ही नुकसान किया। भाजपा का कैडर वोट हमेशा स्थिर रहता है। इसलिए भाजपा सत्ता में रहे या न रहे उसके वोट बैंक पर कोई खास असर नहीं पड़ता है।

दिल्ली में भी ऐसा ही हुआ था जहां भाजपा का कैडर वोट उसके साथ ही रहा था। उदाहरण के तौर पर 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनावों की बात करें तो भाजपा का वोट प्रतिशत 38.7 रहा था और कांग्रेस का महज 0.7 प्रतिशत था। आम आदमी पार्टी को 53.8 प्रतिशत वोट मिले थे। इसी तरह 2015 में भाजपा का वोट प्रतिशत 32.3 रहा था। आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत 54.5 था। जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत 0.6 था। आम आदमी पार्टी को जो भी वोट पड़े वह कांग्रेस के पाले से छिटककर गए वोट थे। भाजपा के वोट प्रतिशत में बहुत ज्यादा फर्क कभी नहीं रहा। हरियाणा की बात करें तो 2014 में भाजपा का वोट प्रतिशत 33.3 और कांग्रेस का 20.7 था। वहीं 2019 में भाजपा का वोट प्रतिशत 36.3 कांग्रेस का 28.2 था। भाजपा के वोट प्रतिशत में 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।

दरअसल हरियाणा जाट राजनीति का गढ़ कहा जाता है लेकिन भाजपा ने इस मिथक को यहां तोड़ा है। हरियाणा में जाट लगभग 22 प्रतिशत हैं बावजूद इसके भाजपा ने पंजाबी समुदाय से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया। 9 साल से ज्यादा वह वहां मुख्यमंत्री रहे फिलहाल वह केंद्र में मंत्री हैं। जाटों के अलावा हरियाणा में दलित समुदाय की आबादी 21 प्रतिशत, ओबीसी की 30 प्रतिशत, ब्राह्मणों की 08 आठ प्रतिशत, वैश्य 5 प्रतिशत, पंजाबी 10 प्रतिशत, राजपूत 3.5 प्रतिशत, मुसलमान 3 प्रतिशत व बाकी अन्य आबादी है।

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी हैं वह ओबीसी समुदाय से आते हैं। प्रतिशत के लिहाज से देखा जाए तो ओबीसी वोट बैंक हरियाणा में सबसे बड़ा वोट बैंक हैं जो हमेशा जाट वोटों के विपक्ष में वोट करता है। भाजपा विधानसभा के चुनावी समीकरणों के हिसाब से पहले ही नवाब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर अपनी बाजी खेल दी है। राजपूत और पंजाबी वोट हमेशा से भाजपा का कैडर वोट रहा है। भाजपा का सोशल इंजीनियरिंग का यह फॉर्मूला कांग्रेस पर भारी पड़ रहा है जिसकी फिलहाल कोई काट कांग्रेस के पास नजर नहीं आ रही है। संभवत: इसलिए ही कांग्रेस के युवराज आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर गठबंधन में हरियाणा विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।