कांग्रेस की स्थापना ए.ओ. ह्यूम नाम के एक अंग्रेज अफसर ने की थी यह तो अधिकतर लोग जानते ही हैं, लेकिन कांग्रेस का संस्थापक था कौन? उसके कर्म क्या थे? इस बारे में लोग कम ही जानते हैं। कांग्रेस की स्थापना करने वाला ए.ओ. ह्यूम वही अंग्रेजी अफसर था जिसने 1857 की क्रांति में 215 सिपाहियों को मारा था। उत्तर प्रदेश के इटावा का वह जिलाधिकारी रह चुका था। कांग्रेस जैसा संगठन बनाने का उसका एकमात्र उद्देश्य अंग्रेजों के प्रति भारतीय जनमानस में यह धारणा बनाने के लिए था कि अंग्रेज भारत के हित में सोचते और फैसले लेते हैं और ऐसा कांग्रेस ने किया भी।
ब्रिटिश सरकार के वफादार ह्यूम की आत्मकथा लिखने वाले विलियम वेडरबर्न ने उसकी आत्मकथा में यह सब लिखा है जो स्वयं ह्यूम ने बताया था, विलियम वेडरबर्न भी बाद में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। कांग्रेस के पहले अध्यक्ष बने ब्योमेश चंद्र बनर्जी ब्रिटेन में रहे थे और पूरी तरह से अंग्रेजियत के शिकार थे। यहां तक कि वह अपने बेटे कमल को शैली और बेटी सुशीला को सुशी तक कहते थे। वह 1901 में लंदन में परिवार सहित बस गए थे। 1906 में वहीं उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी अस्थियां विसर्जित नहीं की गई बल्कि उसी इलाके के क्रोयडॉन की सीमेट्री में बिना किसी क्रिया विधि के दफन की गई थीं। बनर्जी का नाम उस सूची में शामिल था जो अंग्रेजों के भरोसेमंद कांग्रेस नेताओं की सूची थी।
विलियम वेडरबर्न कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष बने एक बार 1889 में और दूसरी बार 1910 में, कांग्रेस के 1895 में अधिवेशन में उन्होंने कहा, ”यह आंदोलन उन शिक्षित लोगों का है जिनको हमने प्रशिक्षित किया है। उस वक्त वह अंग्रेजी सरकार के प्रतिनिधि की तरह बोल रहे थे और वहां बैठे सभी लोग उनकी हां में हां मिला रहे थे। ये सब खुलासे वरिष्ठ पत्रकार विष्णु शर्मा द्वारा लिखित ‘कांग्रेस प्रेसिडेंट्स फाइल्स’ नाम की पुस्तक में किए गए हैं।
कांग्रेस को इसलिए तैयार किया गया था कि ताकि 1857 जैसी क्रांति देश में फिर से न होने पाए और अंग्रेजी राज चलता रहे। कांग्रेस के अध्यक्ष रहे फिरोजशाह मेहता अंग्रेजों के वफादार थे और मैकाले के समर्थक थे। उन्होंने कांग्रेस के अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में मैकाले की प्रशंसा करते हुए स्पष्ट कहा था ”मैकाले ने कहा था कि जब भारतीय हमारे यूरोपीय तौर—तरीकों और रंग में ढल जाएंगे तो वह अंग्रेजी इतिहास के लिए सबसे बड़ा गर्व का विषय होगा। लॉर्ड मैकाले ने जिस दिन का सपना देखा था आज वो क्षितिज पर दिखाई दे रहा है।”
आप समझ सकते हैं कांग्रेस के अधिवेशन में भारत की शिक्षा पद्धति को बर्बाद करने वाले मैकाले की प्रशंसा में कसीदे पढ़े जाते थे। कांग्रेसी मैकाले के अंग्रेजी शासन के सपने को पूरा होते देख कितने खुश होते थे। मेहता ने अपने अध्यक्षीय भाषण में जिसका शीर्षक था ‘Faith in England’ में अंग्रेजी शासन, अंग्रेजी संस्कृति और अंग्रेजों की सभ्यता के प्रति घोर आस्था दिखाई थी। कांग्रेस के 1891 के सातवें अधिवेशन की अध्यक्षता उस समय मद्रास प्रांत के जाने माने अधिवक्ता पी. आनंद चार्लू ने की थी। ह्यूम को खुश करने के लिए उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा था,” हम ही नहीं हमारे बच्चे भी आपके कृतज्ञ रहेंगे, केवल बच्चे ही नहीं बल्कि उनके बच्चे भी आपके कृतज्ञ रहेंगे।”
1896 में कोलकाता के अधिवेशन में सभापति रहीमतुल्ला सयानी ने अपने भाषण में कहा था ”सूरज के नीचे अंग्रेजी राष्ट्र से ज्यादा और ईमानदार और मजबूत राष्ट्र अस्तित्व में ही नहीं है। हमारा आंदोलन अंग्रेजों के खिलाफ नहीं है, हम तो कानूनी और संवैधानिक दायरे में रहकर केवल अपनी शिकायतें और मांगे रख रहे हैं ताकि सरकार से उनके वादों को पूरा करने के लिए कह सकें और खुद को सरकार के सच्चे दोस्त कह सकें”। जाहिर है कांग्रेस जो आजादी के आंदोलन में उसके योगदान की दुहाई देती है वह कोरा झूठ है।
दरअसल कांग्रेस हमेशा से अंग्रेजी पढ़े-लिखे ऐसे लोगों का संगठन रही जो भारतीयों की तरफ होने का केवल दिखावा करते थे। असल में वह अंग्रेजी सरकार के एक संस्थान की तरह ही देश में काम करती थी ताकि अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय जनमानस के मन में जो रोष था उसे शांत करके यह समझाया जा सके कि अंग्रेज जो कर रहे हैं वह भारत और भारतीयों के भले के लिए ही है। एक तरफ अंग्रेजों की मुखालफत करने का दिखावा और दूसरी तरफ ये लोग अंग्रेजी सरकार का बचाव करते थे।
वीर सावरकर को दो आजीवन कारावास की सजा देने वाले एन.जी. चंदावरकर भी कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। सावरकर पर चलाए जाने वाले मुकदमे में वह बॉम्बे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बेसिल स्कॉट के नेतृत्व में बने स्पेशल ट्रिब्यूनल में वह जस्टिस हीटन के अलावा इकलौते भारतीय थे। तीनों ने एक मत से सावरकर को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कांग्रेस का इतिहास ऐसे बहुत से किस्सों से भरा पड़ा है। ऐसे में कांग्रेस के नेता जब आजादी की लड़ाई में सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस के योगदान के कसीदे पढ़ते हैं तो ऐसा करने से पहले उन्हें अपने इतिहास में भी एक बार झांक लेना चाहिए।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।