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सिर्फ विरोध करना ही विपक्ष का एकमात्र ध्येय रह जाना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं !

राजनीति में आरोप लगाना नई बात नहीं है, लेकिन अनर्गल आरोप लगाना और बिना किसी बात के निरर्थक मुद्दा बनाकर हर काम में रोड़ा अटकाना आजकल विपक्ष का यही काम रह गया है

हाल ही में विपक्ष ने वक्फ बोर्ड में सुधार के लिए लिए वक्फ बिल पर बनी जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) की बैठक का बहिष्कार कर दिया। स्पीकर को चिट्ठी लिखकर कमेटी की अध्यक्षता कर रहे जगदंबिका पाल को हटाने की मांग भी कर डाली। विपक्ष ने मुद्दा बनाया कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पर वक्फ संपत्ति कब्जाने का आरोप जानबूझकर लगाया गया, इसलिए बैठक का बहिष्कार किया गया। असल में बात यह थी ही नहीं। दरअसल विपक्ष हमेशा की तरह से वक्फ के मुद्दे को भी राजनीतिक मुद्दा बनाना चाहता है, ताकि इस मुद्दे के जरिए सरकार को घेरा जा सके। यह कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की चाल भी है जो कांग्रेस हमेशा से करती आई है।

लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार ही विदेश नीति तय करती है, राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर किसी देश से कैसे संबंध रखे जाएं इस विषय पर अमूमन विपक्ष राजनीति नहीं करता है, लेकिन कनाडा द्वारा भारत पर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में सीधे तौर पर भारत का हाथ होने आरोप लगाए जाने के बाद विपक्ष को जहां सरकार के साथ खड़ा होना चाहिए था, वहां खड़ा न होकर भी विपक्ष ने तत्काल इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दे डाली। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने ने कहा, ”उम्मीद है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत-कनाडा संबंधों के इस बेहद संवेदनशील और महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के नेताओं और अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं को विश्वास में लेंगे”।

आपके देश पर एक देश आरोप लगाता है, उसे देश में मौजूद आपके राजनयिकों से पूछताछ करने की नौबत आ जाती है। ऐसे में होना तो यह चाहिए था कि विपक्ष एकजुट होकर सरकार के साथ खड़ा होता और कनाडा के आरोपों पर मुंह तोड़ जवाब देता, लेकिन ऐसा करने की बजाए विपक्ष ने यहां पर भी राजनीतिक बयान दिया। इसे सीधे तौर पर खालिस्तानी कट्टरपंथियों का समर्थन न कहा जाए तो क्या कहा जाए। दरअसल कनाडाई पीएम जस्टिन टूडो की मजबूरी है कि उन्हें कनाडा में बैठे कट्टरपंथी खालिस्तानियों के वोट लेने होते हैं, वहां पर बड़ी संख्या में ये अलगाववादी रह रहे हैं। इसी के चलते कनाडा इस तरह के निराधार आरोप लगा रहा है। कम से कम इस मुद्दे पर तो विपक्ष को राजनीति नहीं करनी चाहिए।

देश की सैन्य ताकत को मजबूत करने के लिए फ्रांस से खरीदे गए राफेल विमानों को लेकर भी कांग्रेस ने खूब राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश की थी। राफेल विमानों में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर सुप्रीम कोर्ट तक याचिकाएं दायर की गई थीं लेकिन विपक्ष को मुंह की खानी पड़ी। किसान आंदोलन के समय जब दिल्ली को चारों तरफ से बंधक बना लिया गया था, यहां तक कि खालिस्तानी झंडा लेकर किसानों के भेष में अलगाववादी तलवारें लेकर लालकिले तक में घुस गए थे, तब भी विपक्ष इस मुद्दे को लेकर राजनीति करता रहा। दरअसल कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों का यह भी कोरा राजनीतिक पैंतरा था, ताकि कांग्रेस और विपक्षी दलों को चुनावों में जीत मिल सके।

हालांकि हरियाणा में हुए चुनावों में कांग्रेस की स्थिति तमाम हथकंडे अपनाने के बाद भी सरकार नही बना सकी। जैसे ही नतीजे आए फिर से कांग्रेस ने ईवीएम पर सवाल उठाते हुए विधवा विलाप शुरू कर दिया। इस संबंध में चुनाव आयोग में लिखित शिकायत की गई। कांग्रेस के कम्युनिकेशन इंचार्ज और महासचिव जयराम रमेश ने इस संबंध में एक्स पर किए पोस्ट में लिखा,” हमने हरियाणा में 20 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव प्रक्रिया में गंभीर और स्पष्ट अनियमितताओं को उजागर करते हुए एक ज्ञापन सौंपा है। हमें उम्मीद है कि चुनाव आयोग इस पर ध्यान देगा और उचित निर्देश जारी करेगा।”

दरअसल पिछले दस वर्षों से सत्ता से बेदखल हुई कांग्रेस बौखलाई हुई है। इसलिए बिना बात के मुद्दों को वह तूल देने में जुटी रहती है। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों ने सोचे समझे राजनीतिक एजेंडे के तहत संविधान बदल दिए जाने का शिगूफा छोड़कर जनता को खूब बरगलाया भी। इसका कुछ फायदा भी उसे मिला लेकिन फिर भी सरकार बनाने लायक समर्थन नहीं मिला।

जहां बात राष्ट्रहित और देश की गरिमा से जुड़ी हो वहां पर तो इस तरह की राजनीति कम से कम विपक्ष को नहीं करनी चाहिए, लेकिन कांग्रेस ऐसा भी कर चुकी है। राहुल गांधी विदेशों में भारत में लोकतंत्र को खतरा होने की बात बोलकर खुले मंच से विदेशी ताकतों को भारत में हस्तक्षेप करने का न्योता तक दे चुके हैं। संसद न चलने देना, भारत बंद का आह्वान करना। यही आजकल विपक्ष करने में जुटा हुआ है। अडानी ग्रुप को लेकर आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद भी विपक्ष ने कई दिनों तक हंगामा काटा था और संसद को ठप रखा था। इस तरह सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसी—एसटी को लेकर कोटे में कोटे के लिए जो बात कही गई थी उसको लेकर भी विपक्ष ने कोरी राजनीति की और देश में जातिगत जातिगत वैमनस्य पैदा करने की पूरी कोशिश की थी।

दरअसल कांग्रेस और तमाम विपक्षी दल जिन मुद्दों को लेकर चलते हैं वह निष्प्रभावी हैं। सरकार को घेरने के लिए झूठा विमर्श खड़ा करने के लिए जिस तरह का वितंडा खड़ा करने का प्रयास विपक्ष कर रहा है, उससे कोई कामयाबी उसे हासिल नहीं होने वाली है। क्योंकि जनता इस बात को अच्छे समझती भी है और अपना मत भी देती है। बेहतर यही होगा कि कांग्रेस और उसके साथी तमाम विपक्षी दल आत्मंथन करें और सही मुद्दों के साथ जनता के सामने आए। बिना बात की बातों को तूल देकर उन्हें कुछ हासिल हो पाएगा ऐसा संभव दिखाई नहीं देता है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।