दिवंगत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए जगह मांगने और दिल्ली में स्मारक बनाए जाने की मांग कर रही कांग्रेस पार्टी ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव का स्मारक बनाए जाना तो दूर की बात उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय में भी नहीं जाने दिया गया था, यहां तक कि उनका अंतिम संस्कार भी दिल्ली में नहीं होने दिया गया था। सिर्फ इसलिए क्योंकि सोनिया गांधी ऐसा नहीं चाहती थीं। मनमोहन सिंह स्वयं इस बात से बेहद दुखी थे, क्योंकि उन्हें विदेश से बुलाकर वित्त मंत्री बनाने वाले नरसिंह राव ही थे। मनमोहन सिंह स्वयं उनका बड़ा सम्मान करते थे।
कांग्रेसियों की धुरी सिर्फ एक ही परिवार के इर्द—गिर्द घूमती है। वह परिवार है गांधी परिवार। गांधी परिवार की जो परिक्रमा करेगा उसके लिए सब कुछ किया जाएगा। पीवी नरसिंह राव ऐसे प्रधानमंत्री नहीं थे। उन्होंने न तो कभी गांधी परिवार की आँख मूँद कर परिक्रमा की न ही प्रधानमंत्री रहते हुए किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त किया। एक तरह से उन्होंने गांधी परिवार को अपने प्रधानमंत्रित्व काल में हाशिए पर रखा। जिसका बदला उनकी मृत्यु के बाद उनके परिवार से लिया गया।
विनय सेनापति की पीवी नरसिंह राव पर लिखी एक किताब है ‘आधा शेर’ इसका हिंदी अनुवाद नीलम भट्ट ने किया है। सेनापति अपनी किबात में लिखते हैं कि 23 दिसंबर 2004 को जब उनका निधन हुआ तो तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने सुझाव दिया कि उनका अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाए, लेकिन परिवार की प्राथमिकता दिल्ली थी। परिवार चाहता था कि उनका स्मारक दिल्ली में बनाया जाए। उसी रात साढ़े नौ बजे उनका परिवार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के रेसकोर्स रोड पर स्थित उनके आधिकारिक आवास पर उनसे मिलने पहुंचा। पाटिल ने परिवार की दिल्ली में स्मारक बनाए जाने की मांग उन्हें बताई तो मनमोहन सिंह ने कहा, हम ऐसा करेंगे। मनमोहन सिंह उनके प्रधानमंत्रित्व काल में वित्त मंत्री रहे थे। मनमोहन सिंह अंतिम समय तक उनके साथ खड़े थे। बकौल प्रभाकर (पीवी नरसिंह राव के पुत्र), ”हमें तभी एहसास हो गया था कि सोनिया गांधी नहीं चाहती थीं कि पिताजी का अंतिम संस्कार दिल्ली में हो। वह दिल्ली में स्मारक भी नहीं बनने देना चाहती थीं। वह नहीं चाहती थीं कि उन्हें अखिल भारतीय नेता के रूप में देखा जाए”।
कांग्रेस पार्टी की परंपरा रही थी कि कांग्रेस के अध्यक्ष रहे नेताओं के पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय के अंदर ले जाया जाता था। ताकि आम कार्यकर्ता उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें, राव के एक मित्र ने कांग्रेस की एक वरिष्ठ नेता से कहा कि पार्थिव शरीर को अंदर ले जाने दिया जाए तो उसका जवाब था कि यह गेट खुलता नहीं है। आदेश एक ही व्यक्ति दे सकता था वह थी सोनिया गांधी। आदेश नहीं आया और गेट नहीं खुला। 30 मिनट तक लोग बाहर रहे लेकिन कोई आदेश नहीं आया और शव यात्रा हवाई अड्डे की तरफ बढ़ी। 24 दिसंबर शाम 4 बजकर 55 मिनट पर उनका उनका पार्थिव शरीर हैदराबाद पहुंचा। अगले दिन उनका राजकीय सम्मान के साथ वहां अंतिम संस्कार हुआ। मनमोहन सिंह वहां पहुंचे। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और मंत्रिमंडल के अन्य मंत्री भी वहां मौजूद थे लेकिन सोनिया गांधी ने उनके अंतिम संस्कार में भाग नहीं लिया।
उनकी मृत्यु के बाद कांग्रेस दस सालों तक केंद्र में और आंध्र प्रदेश में सत्ता में रहीं लेकिन उनके लिए कोई स्मारक नहीं बनाया गया। उनके लिए स्मारक दिल्ली में तब बना जब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। 2024 में उन्हें भारत रत्न भी नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व काल में ही मिला। झूठा विमर्श खड़ा करने की कोशिश कर रही कांग्रेस को अपने अतीत में झांक लेना चाहिए। देश के प्रधानमंत्री रहे शख्स के अंतिम संस्कार को विवादस्पद बनाकर उस पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने की कोशिश कर रही कांग्रेस के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।