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नरेंद्र मोदी सरकार 2.0: सरकार गठन के बाद से ही दिखा अमित शाह का दम, कई अहम फैसलों पर लगाई मुहर

नरेंद्र मोदी सरकार 1.0 में सियासी ताज सजने तक पार्टी की कमान भले राजनाथ सिंह के हाथ हो लेकिन सरकार गठन के बाद से पार्टी की कमान अमित शाह के मजबूत हाथों में आ गई।

नरेंद्र मोदी सरकार 1.0 में सियासी ताज सजने तक पार्टी की कमान भले राजनाथ सिंह के हाथ हो लेकिन सरकार गठन के बाद से पार्टी की कमान अमित शाह के मजबूत हाथों में आ गई। देखते ही देखते देश के लगभग 70 प्रतिशत से ज्यादा हिस्से पर या तो भाजपा का या फिर भाजपा गठबंधन का शासन था। हालांकि 2019 के आते-आते इनमें से कई राज्यों से भाजपा की सत्ता चली गई लेकिन फिर भी 2019 में अमित शाह के नेतृत्व में ही पार्टी ने नरेंद्र मोदी की अगुवाई में दूसरी बार चुनाव में अपना दमखम दिखाया और अकेले भाजपा की झोली में 300 से ज्यादा सीटें आई। इस चुनाव में अमित शाह ने भी अपनी किस्मत आजमाई और गुजरात के गांधीनगर से चुनाव लड़ा। इस सीट से इससे पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी चुनाव लड़ते थे। अमित शाह ने इस सीट पर जीत दर्ज की और फिर सरकार गठन के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजनाथ सिंह के बाद तीसरे नंबर पर अमित शाह ने मंत्रीमंडल के सदस्य के रूप में शपथ ग्रहण किया।

अमुमन यह देखा जाता है कि प्रधानमंत्री के बाद जो व्यक्ति शपथ ग्रहण करता है उसे गृहमंत्री के तौर पर जाना जाता है। लेकिन मोदी सरकार के मंत्रीमंडल गठन के समय भी एक चौंकाने वाला फैसला सामने आया जब मंत्रियों के विभागों का बंटवारा किया गया तो अमित शाह को गृह मंत्रालय का प्रबार सौंपा गया। पार्टी की कमान तब भी अमित शाह के हाथों में थी और साल 2019 के अंत तक उनके ही हाथों में पार्टी और संगठन की जिम्मेदारी रही। उसके बाद यह जिम्मेदारी जेपी नड्डा के हाथों में सौंपी गई।

सरकार गठन के तुरंत बाद से ही अमित शाह जिस तरह से फैसले लेने लगे उसने सबको चौंका दिया। कई ऐसे फैसले इस बीच लिए गए जो सालों से राजनीति करने की वजह बने हुए थे। जम्मू-कश्मीर से 35A और धारा 370 का हटाना हो या फिर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एनआईए जैसी एजेंसी के हाथ को मजबूत करने का फैसला, तीन तलाक पर कानून बनाना हो या फिर नागरिकता संशोधन कानून को संसद के दोनों सदनों से पास कराकर कानून का रूप दिलवाना। इसके साथ ही राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम अदालत के फैसले के बाद ट्रस्ट का गठन करना हो। इन सारे फैसलों में एक तरफ उनकी कुशल प्रशासनिक क्षमता नजर आई तो वहीं दूसरी तरफ वह कुशलता पूर्वक गृह मंत्रालय के काम को भी संभाल रहे हैं।

राजनीति के जानकारों का मानना है कि अमित शाह की सरकार में यह एंट्री एक बड़ी प्लानिंग का हिस्सा थी। सरकार ने अपनी शुरुआत में ही बता दिया था कि इन पांच सालों में तमाम बड़े और अहम निर्णय लिए जाने हैं। इसलिए गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी भी बहुत खास थी। यही वजह है कि इसके लिए अमित शाह का चुनाव किया गया। पिछले एक साल में उन्होंने अपने फैसलों से यह साबित भी कर दिया है मोदी सरकार में सबसे अहम चेहरे वे ही हैं। यह भी सही है कि जिस तरह उन्होंने धारा 370, तीन तलाक, सीएए और एसपीजी अमेंडमेंट एक्ट को लेकर संसद में और संसद के बाहर सरकार का पक्ष रखा वैसा कोई और दूसरा नहीं कर सकता था।

अब इसको कोई माने या ना माने मोदी-शाह की जोड़ी ‘संघ इतिहास की सबसे प्रभावशाली साझीदारी’ है। कोई इससे भले ही सहमत हो या नहीं, इसमें कोई दो राय नहीं कि शीर्ष मुद्दों पर शाह का नाम मोदी के साथ हमेशा-हमेशा के लिए जुड़ गया है।

अमित शाह की राजनीति समझ, नेतृत्व करने की शक्ति और कुशल प्रशासनिक क्षमता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने और दो केंद्र शासित राज्य बनाने का पूरा खाका आम चुनाव से ठीक पहले तैयार कर लिय गया था ऐसा राजनीति के जानकार बताते हैं और इसको लाने से पहले जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और भाजपा गठबंधन की सरकार से पार्टी अपना समर्थन कब वापस लेगी इस पर भी विचार किया जा चुका था उस समय भाजपा के संकटमोचक माने जानेवाले अरुण जेटली जिंदा थे और अमित शाह और मोदी के साथ मिलकर उन्होंने सारी तैयारी कर ली थी। लेकिन तभी पुलवामा में आतंकी हमला हो गया और सरकार को बालाकोट एयरस्ट्राइक का निर्णय लेना पड़ा ऐसे में यह पूरा कार्यक्रम टाल दिया गया। लेकिन सत्ता में दोबारा बड़े बहुमत के साथ जीतकर जैसे ही पार्टी पहुंची और अमित शाह को गृहमंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई इस काम में तेजी आ गई। इस बिल को संसद में पेश करने और फिर जिस तरह से विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए अमित शाह नजर आए उससे तो कई विरोधियों की बोलती बंद हो गई। संसद से यह बिल पास हो गया और फिर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेश बन गए।

इसके बाद बारी आई सीएए की। प्रधानमंत्री ने नागरिकता संशोधन विधेयक की कमान अमित शाह को सौंप दी और खुद नेपथ्य में रहे। नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में पेश हुआ और पास हुआ तो प्रधानमंत्री संसद में ही नहीं आए। अमित शाह परोक्ष रूप से सदन में पार्टी के नेता की भूमिका में थे। दोनों अवसरों पर अमित शाह ने पार्टी और देश के लोगों को अपने संसदीय कौशल से चौंकाया। संसद के दोनों सदनों में उनके प्रदर्शन से देश का पहली बार परिचय हुआ।

अब एक बार नजर डालते हैं अमित शाह के अब तक के राजनीतिक सफर पर

अमित शाह का 22 अक्टूबर 1964 को महाराष्ट्र के मुंबई में एक व्यापारी परिवार में जन्म हुआ। उनका ताल्लुक गुजरात के एक रईस परिवार से है। अहमदाबाद से बॉयोकेमिस्ट्री में बीएससी करने के बाद शाह अपने पिता का बिजनेस संभालने में जुट गए। शाह बहुत कम उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। 1982 में उनके अपने कॉलेज के दिनों में शाह की मुलाक़ात नरेंद्र मोदी से हुई। 1983 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और इस तरह उनका छात्र जीवन में राजनीतिक रुझान बना।

शाह 1986 में भाजपा में शामिल हुए। शाह को पहला बड़ा राजनीतिक मौका मिला 1991 में, जब आडवाणी के लिए गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। दूसरा मौका 1996 में मिला, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ना तय किया। इस चुनाव में भी उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला।

पेशे से स्टॉक ब्रोकर अमित शाह ने 1997 में गुजरात की सरखेज विधानसभा सीट से उप चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। 2014 में नरेंद्र मोदी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। 2003 से 2010 तक उन्होंने गुजरात सरकार की कैबिनेट में गृहमंत्रालय का जिम्मा संभाला।

16वीं लोकसभा चुनाव के लगभग 10 माह पूर्व शाह दिनांक 12 जून 2013 को भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया, तब प्रदेश में भाजपा की मात्र 10 लोक सभा सीटें ही थी। उनके संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व क्षमता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि जब 16 मई 2014 को सोलहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आए, जब भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 71 सीटें हासिल की। प्रदेश में भाजपा की ये अब तक की सबसे बड़ी जीत ‌थी। इस जीत के बाद पार्टी और संगठन में अमित शाह का कद और बड़ा हो गया।

17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में सपा, बसपा और रालोद के महागठबंधन के बावजूद बीजेपी यूपी में 64 सीटें जीत लीं। चुनाव से पहले माना जा रहा था कि बीजेपी के लिए 40 का आंकड़ा छुना मुश्किल होगा, लेकिन तमाम अटकलों को खारिज कर बीजेपी दोबारा 60 से अधिक सीट जीत कर आई। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल में बीजेपी की अबतक की सबसे बड़ी जीत हुई। बंगाल में बीजेपी 18 सीटें जीतने में कामयाब रही। यह एक अप्रत्याशित कामयाबी रही। 17वीं लोकसभा के लिए खुद शाह गांधीनगर से भारी मतों से चुनाव जीत कर आए हैं।

2019 चुनाव में बीजेपी की जीत ने अमित शाह का कद बहुत बड़ा कर दिया। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अमित शाह को सरकार का हिस्सा बनाया गया और उन्हें गृहमंत्रालय का प्रभार दिया गया।

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