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विश्व भर में बढ़ रही राष्ट्रवादी मानसिकता, वामपंथियों के कुचक्र को पहचान रहे लोग

अमेरिका में चुनावों में भी वहां के कम्युनिस्ट मीडिया ने यह दुष्प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी कि कमला हैरिस जीत रही हैं। कमला के पक्ष में महिला, ब्लैक और अफ्रीकी तीनों के ही विशेषाधिकार की बात की जा रही थी और यह कहा जा रहा था कि प्रगतिशील लोग कमला को ही अपना राष्ट्रपति चुनेंगे।

हाल ही में अमेरिका में संपन्न हुए चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प की जीत से कम्युनिस्ट धड़ा सदमे में है। वह समझ नहीं पा रहा है कि करे क्या? वह भौंचक्का है। वहां पर कम्युनिस्ट मीडिया की वही स्थिति इस समय है जो अभी हाल ही में भारत के हरियाणा प्रांत के चुनावों के बाद भारत में कम्युनिस्ट मीडिया की हुई थी। अमेरिका में चुनावों में भी वहां के कम्युनिस्ट मीडिया ने यह दुष्प्रचार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी कि कमला हैरिस जीत रही हैं। कमला के पक्ष में महिला, ब्लैक और अफ्रीकी तीनों के ही विशेषाधिकार की बात की जा रही थी और यह कहा जा रहा था कि प्रगतिशील लोग कमला को ही अपना राष्ट्रपति चुनेंगे।

मीडिया जमीनी हकीकत नहीं दिखा रही थी। कम्युनिस्ट मीडिया केवल और केवल वह दिखा रहा था, जो वह दिखाना चाहता था। वह ट्रंप की जीत से स्तब्ध है। वह उतना ही स्तब्ध है, जितना स्तब्ध वह उस समय रह गया था, जब फ्रांस में भी राष्ट्रवादी दल नेशनल रैली की जीत पहले दौर में हो गयी थी। फ्रांस में मरीन ले पेन की पार्टी की विचारधारा फ्रांस प्रथम और अवैध शरणार्थियों के विरोध की है। कम्युनिस्ट खेमा मरीन की पार्टी के सबसे बड़े दल के रूप में उभरने की आहट से ही इस सीमा तक स्तब्ध रह गया था कि उसने राष्ट्रवादी दल की सरकार आने की संभावना भर से ही दंगे करने आरम्भ कर दिए थे।

बाद में फिर मैक्रोन की पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टियों के गठबंधन के पक्ष में इस प्रकार गोलबंदी की गई कि दूसरे चरण में नेशनल रैली पिछड़ गयी। मगर बहुमत किसी भी दल को नहीं मिला। मगर फ्रांस की नई सरकार की प्रवासन नीति काफी कठोर होने वाली है। वर्ष 2023 में दिसंबर में प्रवासन बिल पारित हुआ था, जिसे राष्ट्रवादी मरीन की पार्टी की वैचारिक विजय बताया गया था। चुनावों में हालांकि मरीन की पार्टी बहुमत पाने में विफल हुई, मगर प्रधानमंत्री मिशेल बर्नीयर के नेतृत्व में नई सरकार अवैध प्रवासन को लेकर और कठोर कानून ला रही है।

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी को भी नहीं भूला जा सकता है। इटली में इटली को बेहतर बनाने का नारा देकर वे सत्ता में आई हैं। मेलोनी का रवैया अवैध शरणार्थियों को लेकर वही है जो अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का और जो फ्रांस में मरीन ले पेन का है। इसके साथ ही जर्मनी में भी राष्ट्रवादी दल का उदय बहुत स्पष्टता से देखा जा सकता है। एक सितम्बर को पूर्वी जर्मनी के दो राज्यों में हुए स्थानीय चुनावों के परिणामों से यह पूरी तरह से स्पष्ट होता है कि वहां पर भी अब राष्ट्रवादी दल ही उभर रहा है। इन राज्यों में धुर-राष्ट्रवादी दल एएफडी ने काफी बड़ी जीत दर्ज की है।

जर्मनी में सितंबर 2024 में देश में प्रवेश करने वाले अनियमित प्रवासियों और शरणार्थियों की संख्या को कम करने के लिए सीमाओं पर पहरे बढ़ा दिए और कई और उपाय किए जैसे अस्थाई संरचना बनाई, पुलिस की जांच कड़ी कर दी गई। और ऐसी जांच और उपाय 6 महीनों के लिए किए गए हैं। हालांकि कथित मानवाधिकार की बात करने वालों ने इस नियंत्रण की आलोचना की। मगर ये नियंत्रण हाल ही में कई आतंकी घटनाओं के कारण उठाए गए हैं। अभी हाल ही में ये हमले और भी बढ़ गए हैं और लोग सोलिंगन में खंजर हमले को याद करके सिहर उठते हैं, जिसमें तीन लोग मारे गए थे। इसीके साथ जर्मनी ने अफगानिस्तान से आए अवैध प्रवासियों को उनके देश वापस भेजना फिर से शुरू कर दिया है।

क्या ये कदम एएफडी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी के उभार के कारण हो रहा है जो अपनी प्रवासन विरोधी नीति को लेकर भी चर्चा में है? एएफडी देश को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों को वापस भेजने की लगातार बात करती रही है। थुरिंजिया राज्य में जहां एएफडी वोट पाने वाला सबसे बड़ा दल था तो वहीं दूसरी ओर सैक्सोनी राज्य में वह दूसरे स्थान पर रहा। यूरोप में कई देश ऐसे हैं, जहां पर राष्ट्रवादी दलों का प्रभाव बढ़ रहा है। ऐसा क्या कारण है कि जिन लोगों ने कभी शरणार्थियों का स्वागत किया था, वे अब उन दलों का स्वागत कर रहे हैं, जो इस अवैध प्रवासन का विरोध कर रहे हैं।

वर्ष 2023 में स्पेन में भी दक्षिणपंथी झुकाव वाली पॉपुलर पार्टी ने चुनाव जीता था, मगर उनके पास बहुमत नहीं था। इन सभी दलों का उभार क्या संकेत करता है? क्या यह उभार यह बताता है कि कम्युनिस्ट विचारधारा का जाल कमजोर हो रहा है? या फिर लोगों के दिलों में कम्युनिस्ट एजेंडे की हकीकत स्पष्ट होती जा रही है। जैसे जैसे यूरोप और पश्चिम के देश राष्ट्रवाद की राह पर जा रहे हैं, वैसे-वैसे वहां के उन नागरिकों का चरित्र हनन भी आरंभ हो रहा है, जिन्होनें इन दलों को वोट देकर जिताया।

इटली में जॉर्जिया मेलोनी के समर्थकों को फासीवादी कहा गया। फ्रांस में मरीन के समर्थकों को अल्पसंख्यक विरोधी की संज्ञा दी गयी और फ्रांस के बहुलतावादी समाज का विभाजन करने वालों के रूप में देखा गया। या कहें कि कम्युनिस्ट खेमे ने इस प्रकार की ब्रांडिंग की। मगर यह भी सत्य है कि इस ब्रांडिंग का कोई भी गंभीर परिणाम आम जनमानस पर नहीं पड़ रहा है। वह कम्युनिस्ट एजेंडे के जाल में फंसने से इंकार कर रहा है। वह जान रहा है कि अवैध प्रवासन के चलते उसके यहां ग्रूमिंग गैंग विकसित हो रहे हैं और उसकी बेटियों पर हमले हो रहे हैं।

फ्रांस में अभी तक पैगम्बर पर बने कथित कार्टून के कारण एक शिक्षक का कटा हुआ सिर लोग भूले नहीं हैं और न ही शार्ली ह्ब्दो के ऑफिस पर हमला ही भूले हैं। इसलिए वे जानते हैं कि कथित मानवता की आड़ में वे किसी की तश्तरी में परोसा हुआ गोश्त बन रहे हैं और यही कारण है कि अमेरिका से लेकर जर्मनी, फ्रांस और स्पेन तक लोग राष्ट्रवादी स्वरों को सुन रहे हैं और अपने वोटों की ताकत से राष्ट्रवादी विचारधारा वाली पार्टियों को मजबूत कर रहे हैं।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।