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Assembly Elections results: ‘दादी की तरह नाक’ वाली के लिए कहीं चुनाव भी तो किसी ‘किटी पार्टी’ की तरह नहीं? 2022 नतीजों का एक विश्लेषण यह भी!

Assembly Elections results: “पब्लिक से कनेक्ट अच्छा है”, ऐसा कहकर खुश होने वाले रणनीतिकार ऐसा कहते रहें, लेकिन पब्लिक से कनेक्ट सेलिब्रिटी और फैन वाला है। और अब तो वो फैन भी नहीं रहे। लोग बेहतर आंकते हैं भाई की तुलना में बहन को। अब बताइए, भला ये भी कोई पैमाना हुआ किसी को चुनने का।

नई दिल्ली। एक वक्त था जब अंग्रेज भारत में गरीबी देखने आते थे। “हे लुक मैन देट्स पूअर। हे मैन, टुम इडर कैसे रहता है”। ऐसा ही एक वर्ग होता है जो वक्त काटने के लिए किटी पार्टी करता है। उनको मैं फिर भी गलत नहीं मानती। वो महिलाएं जो दोपहर को किटी के लिए खास तौर पर डिजाइन किए गए कपड़े पहन कर जाती हैं, वही थोड़ा और अपग्रेड होकर चैरिटी के लिए पूअर चिल्ड्रेन या गरीब वर्ग के लिए कुछ खिलौने कपड़े बांटने जाती हैं। लेकिन कहीं अंदर मन में अपने नेलपेंट की चिंता ज्यादा सताती रहती है। गरीब तबका भले ही इनके फन का शिकार होता रहे। उसकी मजबूरी होती है, लेकिन समझता सब है। आपका सब एलीट क्लास के हिसाब से चलता रहता है। लेकिन उसमें से जब आप छांटकर, “चलो कुछ दिन जनता की मौज ले लो” टाइप में रैली के कपड़े खरीदते हो, रैली के लिए साड़ियां डिजाइन करते हो, तो जनता भी अपनी ही उम्मीद को एक लेवल तक बर्दाश्त करती है।

priyanka

गंगा किनारे का ये संवाद देखिए-

“ये क्या हो रहा है”।

-मैडम आरती हो रही है।

“अच्छा, यहां रोज होती है”।

नेक्स्ट सीन।

एक कलाकार के घर जाकर बैठ गईं। सामने 10 लोग खड़े थे। किसी ने याद दिलाया तो सामने वाले को बैठने के लिए कहा “पब्लिक से कनेक्ट अच्छा है”, ऐसा कहकर खुश होने वाले रणनीतिकार ऐसा कहते रहें, लेकिन पब्लिक से कनेक्ट सेलिब्रिटी और फैन वाला है। और अब तो वो फैन भी नहीं रहे। लोग बेहतर आंकते हैं भाई की तुलना में बहन को। अब बताइए, भला ये भी कोई पैमाना हुआ किसी को चुनने का। लोग आपको देखते हैं तो अब ‘दादी की नाक’ वाले उदाहरण के लिए नहीं आते। ड्राई फ्रूट्स खाती होगी, महंगा वाला फेशियल कराती होगी, कितनी अच्छी स्किन है!.. यकीन मानिए, छोटे शहरों की लड़कियां आपको देखकर कौतूहलवश यही सोचती हैं।

rahul

‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं।’ इसके लिए बैकअप चाहिए होता है। बिना बैकअप लड़कियां बस लड़ने के लिए कूद नहीं सकतीं। बस वही बैकअप जहां मिलता दिख रहा है, वो उनको चुन रही हैं। जैसे कुछ लोगों के लिए आप एक लाइन में बात खत्म कर देते हैं ना..कि वो दिल का बहुत अच्छा इंसान है। भाई वो है, जो शायद ए आर रहमान बन सकते थे लेकिन जीवन भर आपने उन्हें रामानुजम बनने के लिए फोर्स किया। वो रोहित शेट्टी हो सकते थे लेकिन आप उन्हें नीरज चोपड़ा बनाने पर तुले रहे। जब भाला उठाना ही नहीं जानते तो फेकेंगे कहां से। इसलिए लक्ष्य तक ना पहले कभी पहुंच पाए और ना आगे की कोई संभावना है। वो बस अपनी क्यूटनेस और फन फैक्टर पर सर्वाइव करते रहे हैं।

गरीब हैं, मूर्ख नहीं।

गरीब के साथ समस्या है कि पहले तो वो गरीबी बर्दाश्त करे, फिर आप उसकी गरीबी की नुमाइश करके, सबके सामने रखकर, सबको दिखा दिखाकर उसकी बेइज्जती करा कराकर कमाते रहो। गरीब हैं, मूर्ख नहीं। ये जीत मोदी योगी की जीत मानकर उनसे मत कुढ़िए। जिस दिन आप बिना रैली वाला सूट सिलाए, “चलो आज लखनऊ की फ्लाइट पकड़ते हैं” वाला एटिट्यूड त्यागकर, ईश्वर को हमेशा ही हाजिर नाजिर जानकर, स्कूटी का प्रलोभन दिए बिना, एक लड़की का घर से बाहर निकलना और घर से कॉलेज तक का सफर समझ लेंगी तब फर्क समझ में आएगा।

 

खैर अभी भी आपके पास पार्टी अध्यक्ष बनने की असीम संभावनाएं हैं। सेम टू सेम टीपू भैया पर भी लागू है। जब नेता युवा हो तो लोग उससे शालीनता, संस्कार और सुरक्षा की उम्मीद करते हैं। जिस अकड़ में आप रहते हैं, लोगों के प्रति आपका जो रवैया है, आपकी रैलियों में जो दिखता है, अगर आपके पास अपने पिता की राजनीतिक विरासत की पूंजी ना हो तो यकीन मानिए आप किसी चौराहे पर खड़े हों, तो लड़कियां वहां से बच कर ही निकलेंगी। खैर अनुभव यही कहता है लड़कों से ग़लती हो जाती है। बहुएं समझदारी से समय को भांप लेती हैं।