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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी: आस्था और आध्यात्मिकता के साक्षी

Prime Minister Narendra Modi: पीएम मोदी के पहले ये कल्पना करना भी असंभव था कि भारत के प्रधानमंत्री, अपनी आस्था और अध्यात्मिक यात्रा के लिए मंदिरों के दर्शन के लिए जा सकते हैं। देश के प्रधानमंत्री केदारनाथ की रुद्र गुफा में ध्यान लगा सकते हैं।

कितना बदल गया है देश…आज़ादी के बाद से, अब तक एक राष्ट्र के तौर पर, भारत की अध्यात्मिक यात्रा को, इस बात से समझा जा सकता है कि पंडित नेहरू, मंदिरों के दर्शन और पुनर्निर्माण को, हिंदू जागरण से जोड़कर देखते थे।जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मंदिरों की यात्रा और उसके पुनर्निर्माण को आधुनिक और आत्मनिर्भर भारत की संजीवनी के तौर पर देखते हैं। 5 नवंबर को प्रधानमंत्री मोदी, पांचवीं बार केदारनाथ धाम के दर्शन के मौक़े पर आए तो उन्होंने कहा कि-“एक समय था जब आध्यात्म को, धर्म को केवल रूढ़ियों से जोड़कर देखा जाने लगा था।लेकिन, भारतीय दर्शन तो मानव कल्याण की बात करता है, जीवन को पूर्णता के साथ, holistic way में देखता है। आदि शंकराचार्य जी ने समाज को इस सत्य से परिचित कराने का काम किया।”

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पीएम मोदी के पहले ये कल्पना करना भी असंभव था कि भारत के प्रधानमंत्री, अपनी आस्था और अध्यात्मिक यात्रा के लिए मंदिरों के दर्शन के लिए जा सकते हैं। देश के प्रधानमंत्री केदारनाथ की रुद्र गुफा में ध्यान लगा सकते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर में रुद्राभिषेक कर सकते हैं और गंगा में डुबकी लगा सकते हैं।आस्था के प्रति समर्पित प्रधानमंत्री मोदी ने धर्म की राजनीतिक दुकान चलाने वालों को ये संदेश भी दिया है कि धर्म राजनीति के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के लिए आधारशिला बन सकता है। उन्होंने मंदिरों के दर्शन और भगवान के प्रति अपनी अटूट आस्था से ये भी बताया है कि सत्ता और आध्यात्मिकता की यात्रा साथ-साथ संभव है।

प्रधानमंत्री मोदी ने मंदिरों के पुनर्निर्माण, धार्मिक पर्यटन पर भी विशेष ज़ोर दिया है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर भूमिपूजन और मंदिर निर्माण, अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निर्माण और केदारनाथ धाम का पुनर्निर्माण इसके कुछ उदाहरण हैं।ये इस बात का भी प्रतीक है की आस्था, आध्यात्मिकता और अर्थव्यवस्था की त्रिवेणी से नए भारत का निर्माण संभव है। केदारनाथ दर्शन के मौक़े पर पीएम मोदी ने कहा कि “अब हमारी सांस्कृतिक विरासतों को, आस्था के केन्द्रों को उसी गौरवभाव से देखा जा रहा है, जैसा देखा जाना चाहिए।आज अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर पूरे गौरव के साथ बन रहा है, अयोध्या को उसका गौरव वापस मिल रहा है।”

PM Modi

आस्था, अध्यात्म और राष्ट्र…

प्राचीनकाल से भारत की इस बात में अटूट आस्था रही है कि आगे-आगे धर्मध्वजा पीछे-पीछे राष्ट्र और समाज। धर्म के अनुसार शासन व्यवस्था, सनातन संस्कृति का मूल आधार रहा है।प्राचीन काल से राजा और शासक समय-समय पर मंदिरों में जाकर, ईश्वर से आशीर्वाद और संतों का मार्गदर्शन लेते रहते थे।
जब भी राष्ट्र या समाज किसी चुनौती का सामना करता था, हमारे संत-महर्षि धर्म और अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार शासकों को रणनीति बनाने में मदद करते थे। लेकिन भारत पर लगातार हुए आक्रमण ने मंदिरों से मार्गदर्शन की परंपरा को छिन्न भिन्न कर दिया।

आदि शंकराचार्य और विवेकानन्द जैसे आध्यात्मिक गुरुओं ने इस बात को अनुभव किया कि अगर भारत को जगद्गुरु की ज़िम्मेदारी निभानी है तो समूचे राष्ट्र को अध्यात्मिकता के सूत्र में पिरो कर एक करना होगा। केदारनाथ धाम में पीएम मोदी ने आदि शंकराचार्य के राष्ट्र निर्माण में योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि “आदि शंकराचार्य ने भारत के भूगोल को चैतन्य कर दिया।”

इसका अर्थ ये है कि अध्यात्मिक एकता की शक्ति से ही भारत एक महान राष्ट्र के पथ पर आगे बढ़ सकता है और दुनिया का नेतृत्व करने का सामर्थ्य हासिल कर सकता है।पर अफ़सोस की आज़ादी के बरसों बाद भी अध्यात्मिकता के इस मॉडल पर काम नहीं हुआ। प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की इस आध्यात्मिक शक्ति को बखूबी समझा बल्कि इसके ज़रिए राष्ट्र नवनिर्माण का शानदार मॉडल भी पेश किया है।केदारनाथ धाम में उन्होंने बताया कि “देश के आज कई संत आध्यात्मिक चेतना जगा रहे हैं।”

धर्म, धर्मनिरपेक्षता और राज्य…

आज़ादी के बाद से ही ये आवश्यकता थी कि भारत के इस आध्यात्मिक चेतना को जीवंत किया जाए। आदि शंकराचार्य के आध्यात्मिक एकता मॉडल पर राष्ट्र के नवजागरण का प्रयास किया जाए। इसके लिए ये आवश्यक था कि मंदिरों के पुनर्निर्माण के साथ-साथ उनकी गरिमा और गौरव को फिर से स्थापित करने की योजना पर चरणबद्ध तरीक़े से काम किया जाए।लेकिन अल्पसंख्यक में वोट देख कर शासन करने वाले नेताओं को मंदिरों के पुनर्निर्माण का मॉडल मंज़ूर नहीं था। धर्म के आधार पर राजनीति और शासन के बजाए उन्हें धर्म का राजनीति में इस्तेमाल कर सत्ता में बने रहना ज़्यादा फ़ायदेमंद लगा। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भारत की आध्यात्मिक आत्मा पर चोट करने की साज़िश हुई।

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स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र इस बात की प्रतीक्षा कर रहा था कि मुग़लों के आक्रमण में ध्वस्त हुए मंदिरों का पुनर्निर्माण और पुनरुत्थान किया जाएगा लेकिन मुग़लिया और मैकाले माइंडसेट से प्रभावित नेताओं को सनातन संस्कृति और आस्था को स्वीकार करने में परेशानी हो रही थी।फिर चाहे वो राममंदिर का मुद्दा हो या फिर सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का मसला।

आइडिया ऑफ़ इंडिया के नाम पर ये तर्क भी दिया गया कि राज्य और धर्म को हमेशा एक दूसरे से अलग रहना चाहिए। इसी आधार पर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का विरोध किया। नेहरू के विरोध के बावजूद लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण शुरु कराया। नेहरू ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के हाथों सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन का भी विरोध किया था। नेहरू के विरोध के बाद भी, वर्ष 1955 में 1 दिसम्बर को डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सोमनाथ मंदिर को राष्ट्र को समर्पित किया। नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण को हिंदुओं के पुनर्जागरण से जोड़कर देखने की कोशिश की।

धर्म और सनातन की संकुचित राजनीति व्याख्या को बदलने में बरसों लग गए। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद, अपनी आस्था को प्रदर्शित करने में संकोच नहीं किया। देश-विदेश में मंदिरों के दर्शन और भक्ति के ज़रिए उन्होंने विश्व को भारत की आध्यात्मिक शक्ति से परिचय कराया। प्रधानमंत्री मोदी आध्यात्मिक चेतना और आस्था के ऐसे ब्रांड एंबेसडर हैं, जिनके ज़रिए विश्व को भारत की आध्यात्मिक चेतना की शक्ति का अहसास हो रहा है।

आध्यात्मिक चेतना का शंकराचार्य मॉडल…

चार धामों और केदारनाथ मंदिर की स्थापना करने वाले आदि गुरु शंकराचार्य ने समूचे भारतवर्ष को अध्यात्म से जोड़कर एक महान राष्ट्र बनाने की नींव रखी थीं।प्रधानमंत्री मोदी इसी आध्यात्मिक चेतना को मुखर और प्रखर बना रहे हैं। 5 नवंबर को केदारनाथ धाम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सनातन धर्म का संरक्षण एवं भारतीय संस्कृति के ज्ञान को वैश्विक पटल पर प्रवाहित करने वाले जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी की समाधि का उद्घाटन एवं प्रतिमा का अनावरण किया।

प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की केदारनाथ धाम की यह पांचवीं यात्रा रही। यह साबित करता है कि उनकी बाबा केदार और चारधाम में गहरी आस्था है। प्रधानमंत्री के रूप में वे सबसे पहले तीन मई, 2017 को केदारनाथ के दर्शन को पहुंचे थे। इसके बाद वे इसी वर्ष 20 अक्टूबर को फिर धाम में पहुंचे। वर्ष 2018 में सात नवंबर और 2019 में 18 मई को मोदी ने धाम पहुंचकर पुनर्निर्माण कार्यों का जायजा लिया। इस दौरान वे गुफा में ध्यान भी कर चुके हैं और रात भी उन्होंने उसी गुफा में गुजारी।

Narendra Modi Kedarnath

वर्ष 2013 में केदारनाथ धाम और उसके आसपास के इलाक़े ने बाढ़ और भूस्खलन की जैसी त्रासदी झेली, वो अकल्पनीय था। मंदिर के आसपास कि मकानों को काफ़ी नुक़सान हुआ।ऐतिहासिक मन्दिर का मुख्य हिस्सा और सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित रहे लेकिन मन्दिर का प्रवेश द्वार और उसके आस-पास का इलाका पूरी तरह तबाह हो गए। केदारनाथ धाम का पुनर्निर्माण और शिव के धाम का सौंदर्यीकरण एक बड़ी चुनौती थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ना सिर्फ़ इस चुनौती को स्वीकार किया बल्कि उत्तराखंड को विश्व में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र के तौर पर स्थापित करने का बीड़ा उठाया।केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण की चर्चा करते हुए मोदी ने कहा कि वो ड्रोन की मदद से पुनर्निर्माण के कामों जायज़ा लेते रहते हैं। आधुनिक इतिहास में ये पहला मौक़ा है जब चरणबद्ध तरीक़े से केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण और सौंदर्यीकरण का काम किया जा रहा है।

‘अब भारत भयभीत नहीं’

प्रधानमंत्री मोदी ने ये बताने की कोशिश की है कि धर्म और आस्था के आधार पर भारत के नवनिर्माण की नींव रखी जा सकती है। जिसमें धर्म, आस्था और अर्थव्यवस्था सभी एक दूसरे की पूरक हैं। केदारनाथ पुनर्निर्माण की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी खुद बताते हैं कि उनका विजन प्रकृति, पर्यावरण और पर्यटन है। प्रधानमंत्री मोदी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि राष्ट्र की आध्यात्मिक चेतना को जीवंत रखने के लिए “पवित्र स्थानों से नई पीढ़ी को अवगत कराना ज़रूरी है।”

मंदिरों के पुनर्निर्माण और वैभव की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि “अब देश अपने लिए बड़े लक्ष्य तय करता है, कठिन समय सीमाएं निर्धारित करता है, तो कुछ लोग कहते हैं कि -इतने कम समय में ये सब कैसे होगा! होगा भी या नहीं होगा! तब मैं कहता हूँ कि – समय के दायरे में बंधकर भयभीत होना अब भारत को मंजूर नहीं है।”

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना को जीवंत बनाने में प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका अपने आप में एक मिसाल है। पीएम मोदी ने शिव, शक्ति और सत्ता के संतुलन ऐसा मॉडल पेश किया है, जो राष्ट्र निर्माण के लिए मील का पत्थर साबित होगा। साथ ही ये राजनीतिक लाभ के लिए धर्म का इस्तेमाल करने वालों के लिए एक सबक़ भी है।