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नार्थ ईस्ट में कांग्रेस के लगातार पतन और भाजपा के उत्थान की यह रही वजह

विधानसभा चुनावों में लगातार हार और लोकसभा चुनावों में घटती सीटों से तय है कि कांग्रेस के हाथ से नार्थ ईस्ट का वोटर अब छिटक चुका है। कभी भाजपा के लिए अछूत जैसा रहा नार्थ ईस्ट आज भाजपा का किला बनता जा रहा है।

नई दिल्ली। कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा नार्थ ईस्ट आज कांग्रेस मुक्त होने की तरफ है। विधानसभा चुनावों में लगातार हार और लोकसभा चुनावों में घटती सीटों से तय है कि कांग्रेस के हाथ से नार्थ ईस्ट का वोटर अब छिटक चुका है। कभी भाजपा के लिए अछूत जैसा रहा नार्थ ईस्ट आज भाजपा का किला बनता जा रहा है। एक्ट ईस्ट जैसी पालिसी और स्थानीय नेताओं पर लगे दांव ने भाजपा को यहां मजबूत किया है। आश्चर्य की बात ये है कि लगातार हार के बाद भी नार्थ ईस्ट को लेकर कांग्रेस गंभीर नहीं दिखाई देती। नार्थ ईस्ट के वोटरों में बड़ी संख्या ईसाई वोटरों की है और यहां उत्तर भारत जैसा ध्रुवीकरण भी नहीं है। इसके बावजूद यहां भाजपा का उत्थान और कांग्रेस का पतन राजनीति के पंडितों को भी आश्चर्य में डालता है। लोकसभा चुनावों में भाजपा का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है और कांग्रेस का वोट शेयर लगातार कम हो रहा है।

बड़े नेताओं ने की नार्थ ईस्ट की अनदेखी

कांग्रेस के बड़े नेताओं ने नार्थ ईस्ट की अनदेखी की।यूपीए सरकार के 2004 से 2014 के कालखंड में नार्थ ईस्ट के विकास को लेकर काम नहीं किया गया। यूपीए सरकार ने नार्थ ईस्ट को लेकर लुक ईस्ट जैसी पालिसी का ऐलान किया, लेकिन यह घोषणा केवल कागजों तक सीमित रही। धरातल पर कोई काम नहीं किया गया। नार्थ ईस्ट को लेकर कांग्रेस की अनदेखी का आलम ये है कि अभी बीते वर्ष तीन राज्यों में हुए चुनावों के दौरान बड़े नेता उत्तर पूर्व के चुनावी दौरे से दूर रहे। 2023 में त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में हुए विधानसभा चुनावों से कांग्रेस के बड़े नेता गायब रहे। राहुल गांधी ने इस दौरान केरल का दौरा किया और कश्मीर की स्कीइंग की, लेकिन नार्थ ईस्ट का दौरा नहीं किया। दूसरे दिग्गज भी चुनावी मैदान से दूर रहे और कांग्रेस को चुनावी हार का सामना करना बड़ा। पिछले चुनाव में बीजेपी को त्रिपुरा में 36 और लेफ्ट फ्रंट को 16 सीटें मिली थी। इस बार लेफ्ट फ्रंट ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन इस बार पिछले चुनाव से भी कम सीटें आईं। त्रिपुरा में कांग्रेस को सिर्फ 3 और लेफ्ट फ्रंट को सिर्फ 11 सीटें मिलीं। नगालैंड में तो कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी है। जिस नगालैंड में शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने 7, जेडीयू ने 1 और लोक जनशक्ति पार्टी ने भी एक सीट जीती है वहां कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला। उधर भाजपा ने नार्थ ईस्ट पर फोकस बढ़ा दिया। प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी पचास से अधिक बार उत्तर पूर्वी राज्यों के दौरे कर चुके हैं। भाजपा सरकार जमीन पर काम किया। इसका असर नार्थ ईस्ट में आज दिखाई दे रहा है। उत्तर पूर्व में बेहतर तालमेल के लिए भाजपा ने नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलाइंस बनाया। इस अलाइंस में दस से ज्यादा दल हैं। हेमंत बिश्व शर्मा इसके संयोजक हैं। कांग्रेस से छोटे दल और सहयोगी छिटक रहे हैं तो भाजपा नार्थ ईस्ट में अपना कुनबा लगातार बढ़ा रही है।

स्थानीय मुद्दे और नेताओं को समझने में चूक

दिल्ली में बैठा कांग्रेस आलाकमान उत्तर पूर्व के मुद्दे और स्थानीय नेतृत्व को समझ नहीं सका। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हेमंत विश्व शर्मा हैं। कभी कांग्रेस के नेता रहे हेमंत अब नार्थ ईस्ट में भाजपा का सबसे बड़ा चेहरा हैं। हेमंत ने कई बार खुले मंचों से कहा है कि कांग्रेस आलाकमान को राजनीतिक समझ नहीं है। राजनीतिक नासमझी में कांग्रेस ने अपना एक बड़ा नेता खोया और भाजपा को एक चेहरा दिया। इसी तरह कभी त्रिपुरा में कांग्रेस अध्यक्ष रहे प्रद्योत देव बर्मन ने एनआरसी के मुद्दे पर पार्टी को छोड़ दिया।वे एनआरसी के पक्ष में थे । उनका कहना था कि बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण त्रिपुरा के मूल निवास अल्पसंख्यक हो रहे हैं, लेकिन कांग्रेस आलाकमान को वहां की स्थानीय समस्या नजर नहीं आई। प्रद्योत ने 2020 में कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बना ली और 42 सीटों पर चुनाव लड़ा। वे 13 सीटें जीत गए और कांग्रेस के हाथ मात्र तीन सीटें लगी। चुनाव के बाद बर्मन ने कहा कि गांधी परिवार ऐसे नेताओं से घिरा है जिन्हें राजनीतिक समझ नहीं है। जब तक वह खुद जमीन पर नहीं उतरेंगे भाजपा को हराना मुश्किल है।

लेफ्ट से तालमेल भी पड़ा भारी

नार्थ ईस्ट के राज्यों में लेफ्ट को लेकर भी नाराजगी थी, लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकार इसे भांप नहीं पाए। अपना जनाधार खो रही कांग्रेस ने साधारण तरीके से चुनाव लड़ा। उनकी तैयारी पूरी नहीं थी। त्रिपुरा में विधानसभा चुनावों के दौरान पर्दे के पीछे से लेफ्ट के साथ तालमेल बनाया। लेफ्ट की एंटीइनकंबेंसी का खामियाजा उसे भी भुगतना पड़ा। स्थानीय स्तर पर पार्टी में गुटबाजी है और बड़े नेताओं के पास उन्हें समझने का समय नहीं है। इसका असर कांग्रेस के जनाधार पर लगातार पड़ रहा है।

भाजपा के बढ़ते ग्राफ से सिमटी कांग्रेस

2016 से पहले भाजपा नार्थ ईस्ट के किसी भी राज्य में सत्ता में नहीं थी। 2009 के आम चुनाव में भाजपा के पास मात्र चार सीटें थी, लेकिन 2019 में स्थिति उलट गई। बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने दम पर 14 सीटें और सहयोगियों के साथ 18 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस के हिस्से में मात्र चार सीटें आई। उसका मत प्रतिशत भी चार फीसदी गिर गया। भाजपा ने यहां इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी पर काम किया। दस वर्षों के भाजपा शासनकाल में में उत्तर पूर्व के लिए बड़ा बजट दिया गया। 2014 में नार्थ ईस्ट में मात्र 9 एयरपोर्ट थे, जबकि आज नार्थ ईस्ट के पास 17 एयरपोर्ट हैं। दोगुनी उड़ानों के चलते पर्यटन बढ़ा है। पर्यटन बढ़ने के साथ आई खुशहाली वहां दिखाई देती है और लोगों को कांग्रेस और भाजपा के शासन के बीच का फर्क समझ आ रहा है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।