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क्या आसन्न हार को देख अभी से बहाने गढ़ने लगे राहुल गाँधी !

मतलब यदि आप जीते तो सब सही, आप हार गए तो सब बेईमान। असल बात यह है कि

कहावत है, शतुरमुर्ग के गर्दन रेत में घुसा लेने से खतरा टल नहीं जाता। खतरा तो खतरा है। राहुल गांधी को भी संभवत: हर बार की तरह, इस बार भी आने वाले बिहार चुनावों में हार का खतरा नजर आ रहा है, इसलिए वह पहले से ही ‘पानी से पुआल बांध’ रहे हैं, ताकि यदि हार जाएं तो उन्हें कोई कुछ न कहे। एक अंग्रेजी अखबार में प्रकाशित अपने लेख में जिस तरह से उन्होंने पिछले साल हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों को फिक्स करार देकर आने वाले बिहार चुनावों में भी ऐसा ही होने की आशंका जताई है, वह सिर्फ और सिर्फ इसलिए क्योंकि राहुल गांधी जानते हैं कि कांग्रेस एक बार फिर से बिहार में चुनाव हारने वाली है।

यह कोई पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने ऐसी पलायनवादी राजनीतिक भाषा का सहारा लिया हो। जब भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ता है तो राहुल गांधी और अन्य कांग्रेसी नेता लोकतांत्रिक संस्थाओं को ही कटघरे में खड़ा करने में जुट जाते हैं। कभी चुनाव आयोग को पक्षपाती बताया दिया जाता है, कभी ईवीएम के मत्थे पर दोष मढ़ दिए जाते हैं। कहा जाने लगता है कि चुनाव बैलेट पेपर से कराकर देखें, तब असलियत का पता चलेगा, लेकिन जब किसी राज्य में कांग्रेस जीत जाती है तो कोई बयान नहीं आता, क्यूं ? तब चुनाव आयोग निष्पक्ष होता है, ईवीएम भी ठीक होती है। चुनाव में धांधली हुई, ऐसा भी कोई नहीं कहता।

महाराष्ट्र चुनावों को लेकर अपने लेख में राहुल गांधी कह रहे हैं शाम पांच बजे तक मतदान प्रतिशत 58.22 प्रतिशत था तो बाद में जब फाइनल आंकड़ा आया तो प्रतिशत 66.05 कैसे पहुंच गया। उनके अनुसार चुनाव में गड़बड़ हुई, यानी फर्जी वोटिंग हुई। राहुल गांधी महाराष्ट्र के विषय में तो ऐसा कर रहे हैं, लेकिन 2023 में तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनावों के बारे में नहीं लिख रहे, क्योंकि वहां पर कांग्रेस जीत गई, क्योंकि यदि राहुल के महाराष्ट्र के दावे को आधार बनाया जाए तो 2023 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों में शाम पांच बजे तक मतदान प्रतिशत 52.24 प्रतिशत था। जब फाइनल आंकड़ा आया तो मतदान प्रतिशत 67.74 था। इस तरह से हिमाचल में शाम पांच बजे 52.14 प्रतिशत था, जब फाइनल आंकड़ा जारी हुआ तो मत प्रतिशत 75.6 प्रतिशत पहुंच गया। कर्नाटक में भी ऐसा ही हुआ, लेकिन राहुल गांधी इस बारे में नहीं बोलेंगे, क्योंकि इन राज्यों में कांग्रेस को जीत मिलीं।

मतलब यदि आप जीते तो सब सही, आप हार गए तो सब बेईमान। असल बात यह है कि राहुल गांधी और उनके खेमे में तमाम नेता सिर्फ इसलिए अर्नगल प्रलाप करते हैं, क्योंकि उनके पास न तो कोई ठोस एजेंडा है, न चुनावी अभियान को लेकर कोई स्पष्टता। महाराष्ट्र चुनावों को फिक्स बताने वाले राहुल गांधी यह भी जानते हैं कि बिहार में उनकी स्थिति कैसी है ? महागठबंधन में कांग्रेस को 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में 70 सीट दी गई थीं। इसमें कांग्रेस बस 19 सीट ही जीत पाई। क्या यह साबित करने के लिए काफी नहीं है कि बिहार में कांग्रेस की कितनी स्वीकार्यता है।

पता नहीं क्यूं राहुल गांधी इस सत्य को स्वीकार नहीं कर पाते कि वह एक ऐसे सेनापति हैं जिनके नेतृत्व में अधिकतर चुनावी युद्ध उन्होंने हारे ही हैं। उनके चेहरे पर जनता को विश्वास नहीं हैं। इसलिए हर बार हार को साजिश बताकर न तो जनता को मूर्ख बनाया जा सकता है, न ही अपनी राजनीतिक अक्षमता को ढंका जा सकता है। जनता सजग है, समझदार है उसे पता है कि उसे कब किसको वोट देना है। अब वह दिन जा चुके हैं जब गांधी परिवार के नाम पर लोग कांग्रेस को वोट दे दिया करते थे। अब जनता विकास के आधार पर मतदान करती है, वंशवाद के नाम पर नहीं।

यही कारण है कि राहुल गांधी को अभी से हार का बहाना गढ़ना पड़ रहा है। वह जानते हैं कि महागठबंधन का कोई स्पष्ट चेहरा नहीं है, विचारधारा का कोई तालमेल नहीं है और कांग्रेस की बिहार में अपनी कोई जमीन नहीं है। इसलिए पहले से ही ऐसा माहौल बनाकर रखो कि हार के बाद कह सको कि हमने तो पहले ही कहा था, महाराष्ट्र की तरह यहां पर भी चुनाव फिक्स हैं। राहुल गांधी को तंत्र को दोष देने की बजाए आत्मचिंतन करने की जरूरत है, कांग्रेस को संगठनात्मक स्तर पर खड़ा करने की जरूरत है। जिम्मेदारी से भागना, जीत का श्रेय खुद लेना और हार का ठीकरा दूसरों पर फोड़ने जैसी आदतों के कारण ही राहुल गांधी आज तक एक विश्वसनीय चेहरा नहीं बन पाए हैं।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।