नई दिल्ली। कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सदस्य वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को पत्र लिखा है। पत्र में में उन्होंने राहुल गांधी के जाति जनगणना वाले बयान पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कांग्रेस के समावेशी दृष्टिकोण की बात कहते हुए लिखा है कि पार्टी का वर्तमान रुख पिछली कांग्रेस सरकारों के विचारों के साथ मेल नहीं खाता।
राहुल गांधी जातिगत जनगणना को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साध रहे हैं। वह कहते हैं कि 2011 की जनगणना के आंकड़े जारी किए जाएं और बताया जाए कि देश में कितने ओबीसी हैं। इसी के साथ 50 प्रतिशत आरक्षण का कैप भी हटाया जाए।
राहुल के इस कदम से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ही सहमत नहीं है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने इसे लोकतंत्र के लिए सही नहीं बताया है। आनंद शर्मा ने राहुल गांधी द्वारा जातिगत गणना को मुद्दा बनाने की हवा निकाल दी है। उन्होंने खड़गे को लिखे पत्र में जातिगत जनगणना कराए जाने को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की विरासत के खिलाफ बताया है।
2014 से पहले कांग्रेस और पूरे विपक्ष ने कहा था कि जाति और धर्म के आधार पर बंटे हुए इस देश में किसी को बहुमत नहीं मिलेगा, लेकिन इसके बाद 2014 और इसके बाद 2019 के चुनावों के नतीजे ने विपक्ष की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। अब राहुल गांधी खुद जातिगत जनगणना को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं।
बता दें कि नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी तक सभी जातिगत जनगणना के खिलाफ रहे हैं। राहुल गांधी इस आधार पर राजनीति करना चाह रहे हैं जबकि उनकी अपनी पार्टी के लोग ही उनकी हवा निकाल रहे हैं। राहुल गांधी को लगता है कि बीजेपी के खिलाफ जातिगत जनगणना का दांव अचूक हथियार साबित हो सकता है, क्योंकि मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने से इनकार कर दिया है। बहरहाल यदि कांग्रेस की बात करें तो जातिगत जनगणना पर सबसे पहले 1951 में चर्चा हुई थी। तब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस मांग को खारिज कर दिया था। तब उन्होंने कहा था कि लोगों का सशक्तिकरण शिक्षा के माध्यम से होना चाहिए न की आरक्षण के माध्यम से।
इंदिरा गांधी ने 1980 में नारा दिया था कि ” ना जात पर, न पात पर, मोहर लगेगी हाथ पर। जाहिर सी बात है वह नहीं चाहती थी कि जात—पात के आधार पर कांग्रेस वोट मांगे। वहीं राजीव गांधी ने भी मंडल रिपोर्ट को नजरअंदाज कर दिया था। जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे और उन्होंने ओबीसी आरक्षण लागू किया तो राजीव गांधी ने इसे देश को जाति के आधार पर बांटने की कोशिश बताया था। 2010 में जातिगत जनगणना के लिए मंत्रियों का एक समूह बना था। इसमें प्रणब मुखर्जी भी शामिल थे। तब इस पर कोई फैसला नहीं आया था क्योंकि मंत्रिमंडल पर राय इस पर एक जैसी नहीं थी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में इसको लेकर विरोध था।