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तथाकथित किसान नेता बने बहरूपियों पर कठोर कार्रवाई वक्त की जरूरत

कश्मीर की घाटी में खून बहाने वाले और देश के भीतर जहर घोलने वाले दोनों में फर्क क्या है? इस तरह की मानसिकता रखने वाले लोगों को पहचानना और उन्हें बेनकाब करना वर्तमान समय की सबसे बड़ी मांग है।

देश जब किसी घाव से कराह रहा हो, तब यह अपेक्षा रहती है कि हर नागरिक उसके मरहम में सहभागी बने, लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने आम पर्यटकों पर हमला कर, निर्दोषों के प्राण लिए, तब किसानों के मसीहा बनने वाले टिकैत बंधुओं, राकेश टिकैत और नरेश टिकैत ने एक के बाद एक विवादस्पद बयान देकर इन घावों को कुरेदने का काम किया है।

पहलगाम में आम नागरिकों को निशाना बनाकर जिस कायरता का परिचय दिया गया, वह इस्लामिक आतंकवाद की नृशंसता का एक और प्रमाण था। इस हमले को लेकर जहां पूरे देश में गुस्से की लहर है। देश का हर नागरिक यही चाह रहा है कि पाकिस्तान को इसको मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। वहीं किसानों के मसीहा बनने वाले टिकैत बंधु राकेश टिकैत और नरेश टिकैत इस मामले पर भी ओछी राजनीति कर रहे हैं। ऐसे समय में जब उन्हें एक भारतीय नागरिक की तरह अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी लेकिन उन्होंने ऐसा करने की बजाए इस तरह के विवादस्पद बयान दिए जिसके लिए उन्हें क्षमा तो कतई नहीं किया जाना चाहिए।

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का बयान कि ‘चोर पाकिस्तान में नहीं, यहीं है’ न केवल संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है, बल्कि एक सुनियोजित राष्ट्रविरोधी विमर्श का हिस्सा प्रतीत होता है। ऐसे समय में जब पूरा देश आतंकवाद और उसके आका पाकिस्तान के खिलाफ एकजुट है, तब टिकैत ऐसे बयान देकर क्या साबित करना चाह रहे हैं। आखिर किसके कहने पर आतंकवाद का दोष भारत की आंतरिक राजनीति पर मढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।

जांच एजेंसियों ने स्पष्ट कहा कि इसमें सीमा पार से आए जिहादी तत्व लिप्त हैं, तब भी वह ‘चोर यहीं है’ कहकर किसके एजेंडे पर काम कर रहे थे? क्या उन्हें इतनी भी समझ नहीं है कि इस वक्तव्य से देश विरोधी कलमकारों, वामपंथियों और पाकिस्तान के मनोबल को संबल मिलेगा।

यह कोई पहली चूक नहीं थी। किसान आंदोलन के समय भी राकेश टिकैत ने जातिवादी जहर घोलने का काम किया था। किसान आंदोलन को उन्होंने राजनीतिक चौपाल बना दिया था। तब उन्होंने ब्राह्मणों और मंदिर के पुजारियों को लेकर विवादित टिप्पणी की थी। किसान नेता ऐसे होते हैं ? उनका यह बयान तो ओछी राजनीति करने वाले उन्हीं नेताओं जैसा है जो हर चीज में राजनीति देखते हैं। क्या उनका यह बयान उसी मानसिकता की तरफ इशारा नहीं करता तो ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे लगाने वाले लोगों की होती है।

भारत सरकार ने पाकिस्तान से हुआ सिंधु जल समझौता रद्द किया तो नरेश टिकैत को पाकिस्तान के किसानों की चिंता सताने लगी। वे भारतीय किसान यूनियन के नेता हैं, या पाकिस्तान किसान यूनियन के? उनकी जैसी कितनी ही किसान यूनियन विभिन्न नामों से भारत में हैं। वह तो इस तरह का बयान दे रहे हैं मानों वह पूरे विश्व के किसानों के नेता हैं। अपने ही गढ़ में विधानसभा तक चुनाव हार जाने वाले टिकैत बंधु क्या खाकर बयान देते हैं? नरेश टिकैत ने कहा कि पाकिस्तान का पानी रोकना ठीक नहीं, किसान तो किसान है। क्या यह उनका बेतुका बयान नहीं है?

बता दें कि इस समझौते को रद्द कर देने से अभी से पाकिस्तान बौखला उठा है, हालांकि इसका तात्कालिक कोई खास प्रभाव पर उस पर नहीं पड़ेगा, लेकिन पाकिस्तान यह भली—भांति जानता है कि भविष्य में भी यदि भारत इस पर अड़ा रहा तो पहले से बदहाली के कगार पर खड़ा पाकिस्तान बर्बाद हो जाएगा। यह एक पाकिस्तानी किसान ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत के दौरान स्वीकार भी किया है। उसने एजेंसी से कहा है कि यदि भारत पानी रोक देगा, तो पूरा देश थार रेगिस्तान में बदल जाएगा। हम भूख से मर जाएंगे।

जब भारत बिना युद्ध किए आतंकवाद को पूरी तरह से खत्म करने के लिए जल कूटनीति के माध्यम से पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है तो इस तरह का बयान देकर नरेश टिकैत कौन सा किसान धर्म निभा रहे हैं? जब पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग पड़ता जा रहा है। कोई उसके साथ खड़े होने को तैयार नहीं है। ऐसे में टिकैत बंधु ऐसी भाषा बोल रहे हैं जो भारत विरोधी ताकतें चाहती हैं। इस तरह के बयानों को राष्ट्रद्रोह न कहा जाए तो और क्या कहा जाए?

अपने पिता महेंद्र सिंह टिकैत के नाम के बल पर किसान नेता बने बैठे दोनों भाई सुख भोग रहे हैं। बड़ी—बड़ी गाड़ियों में चलते हैं। चैनलों पर आकर बयानबाजी करते हैं। किसान हितैषी होने का दावा करने वाले इन भाइयों ने किसान आंदोलन की प्रतिष्ठा को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसानों के हित के लिए संघर्ष करते थे, राजनीतिक मंचों से हमेशा दूर रहते थे, कोई राजनैतिक बयानबाजी नहीं करते थे। वहीं उनके दोनों पुत्र सुर्खियों में बने रहने के लिए कुछ भी बोले जा रहे हैं।

किसानों की बात करने वाले दोनों भाई किसान नहीं बल्कि राष्ट्र की एकता के विरुद्ध खड़े राजनीतिक बहरूपिए ज्यादा नजर आते हैं। क्या किसानों के नाम पर देश के भीतर जहर बोने की छूट दी जा सकती है? क्या राष्ट्र की अस्मिता पर प्रहार करने वालों को किसान नेता माना जा सकता है। क्या किसानों के भेष में छुपे इन ओछी सोच वाले टिकैत बंधुओं को खुली छूट देना उचित है ? तो इसका उत्तर है नहीं, अब सहनशीलता की सीमा समाप्त हो चुकी है।

इस तरह के बयान आतंकवादियों के लिए ढाल बनने का कार्य करते हैं। पाकिस्तान के पक्ष में हवा बनाते हैं। कल को पाकिस्तान इन्हीं बयानों का हवाला देकर क्या वैश्विक मंच पर बोलेगा। इस तरह का बयान जो भी दे उसके साथ वैसा ही व्यवहार होना चाहिए जैसा किसी दुर्जन, किसी राष्ट्रद्रोही के साथ होता है। राकेश टिकैत और नरेश टिकैत जैसे तथाकथित किसान नेताओं ने जिस तरह के बयान दिए हैं, इसके लिए इन पर कठोर कानूनी कार्रवाई किए जाने की जरूरत है। देश से बड़ा कुछ नहीं हो सकता। देश बड़ा है ना कि कोई किसान या नेता।

कश्मीर की घाटी में खून बहाने वाले और देश के भीतर जहर घोलने वाले दोनों में फर्क क्या है? इस तरह की मानसिकता रखने वाले लोगों को पहचानना और उन्हें बेनकाब करना वर्तमान समय की सबसे बड़ी मांग है। यदि आज हम ऐसे बहरूपियों का चेहरा सबके सामने बेनकाब नहीं करेंगे तो कल को इसका मूल्य हमें ही चुकाना पड़ेगा। राष्ट्र सर्वप्रथम है। जो इस सिद्धांत के विरुद्ध है वह फिर चाहे किसी भी भेष में हो उसे राष्ट्रद्रोही ही कहा जाएगा। इस तरह के बयान देने वालों को मंच प्रदान करने की नहीं बल्कि जेल का रास्ता दिखाए जाने की जरूरत है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।