सुब्रमण्यम स्वामी की ‘वफादारी’ पर दाग, राज्यसभा सीट मिलने के आसार नहीं; कोर्ट केसेज भी साबित हुए बेदम

Subrahmanya Swamy: अगले साल अप्रैल में सुब्रमण्यम स्वामी का राज्यसभा का टर्म पूरा हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक बीजेपी उन्हें अगला टर्म देने को तैयार नही है। सुब्रह्मण्यम स्वामी को भी इस बात का अंदाज़ा है। यही वजह है कि उन्होंने दबाव बढ़ाने की खातिर अनाप शनाप बयान देने और शीर्ष नेतृत्व को नुकसान पहु्ंचाने की पुरानी राह पर फिर से चलना शुरू कर दिया।

Avatar Written by: October 8, 2021 6:54 pm
subramanian swamy

सुब्रमण्यम स्वामी की कलई खुल चुकी है। उनकी छवि एक ग़ैर विश्वसनीय नेता की बन चुकी है। सुब्रमण्यम स्वामी की पूरी राजनीति सिर्फ अपने स्वार्थों की पूर्ति करने और खुद की छवि चमकाने के इर्द गिर्द घू्मती रही है। अपनी इसी आदत के चलते वे राजनीति का ऐसा चिमटा बन चुके हैं जिसे कोई भी छूना नही चाहता। अगले साल अप्रैल में सुब्रमण्यम स्वामी का राज्यसभा का टर्म पूरा हो रहा है। सूत्रों के मुताबिक बीजेपी उन्हें अगला टर्म देने को तैयार नही है। सुब्रह्मण्यम स्वामी को भी इस बात का अंदाज़ा है। यही वजह है कि उन्होंने दबाव बढ़ाने की खातिर अनाप शनाप बयान देने और शीर्ष नेतृत्व को नुकसान पहु्ंचाने की पुरानी राह पर फिर से चलना शुरू कर दिया।

सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी ब्रांडिंग एक ऐसे हीरो के तौर पर की है जो कोर्ट में एक के बाद दूसरी बड़ी कानूनी और सैद्धांतिक लड़ाइयाँ लड़ता रहा है। मगर हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। स्वामी ने कोर्ट का इस्तेमाल भी केवल अपनी छवि चमकाने के लिए किया है। वे आज तक कोई भी ठोस परिणाम हासिल नही कर सके हैं। इसी बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने एनपीए को लेकर एक्सपर्ट कमेटी गठित करने का अनुरोध किया था। शीर्ष अदालत ने इसे कोर पॉलिसी का इश्यू बताया। स्वामी इस तरह की याचिकाओं के आदि हैं। इनकी कोई मंज़िल नही होती है। ये सिर्फ मीडिया में सुर्ख़ियाँ बटोरने के लिए होती हैं।

अभी कुछ दिनों पहले ही बीजेपी नेता तेजिंदर पाल बग्गा ने उन्हें बुरी तरह एक्सपोज़ किया। स्वामी ने ट्विटर पर लिखा था कि बग्गा बीजेपी ज्वाइन करने से पहले कई छोटे मोटे अपराधों में जेल जा चुके हैं। इस पर बग्गा ने उन्हें इन आरोपों को साबित करने के लिए 48 घंटे का वक्त दिया। मगर स्वामी के पास इसका कोई सबूत नही था। नतीजे में बग्गा ने उन्हें मानहानि की लीगल नोटिस थमा दी। खास बात यह भी है कि स्वामी जिन चंद बड़े मामलों को लेकर अपनी मार्केटिंग करते नही थकते, वे भी किसी अंजाम तक नही पहुंचते हैं। नेशनल हेराल्ड का केस ऐसा ही एक केस है। राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ दायर किए गए इस मामले में स्वामी केवल सुर्ख़ियाँ बटोरने में जुटे हुए हैं। यह केस कहीं भी अंजाम तक पहुँचता दिखाई नही दे रहा है।

हाल ही में स्वामी ने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करके ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। स्वामी सोनिया गांधी और राहुल गांधी को प्राजीक्यूट करने के लिए सबूतों को लीड करना चाहते थे। ट्रायल कोर्ट ने इसके लिए मना कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसा तभी मुमकिन है जब इस मामले में उनका एक्जामिनेशन पूरा हो जाए। अब स्वामी ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। वह इसी तरह से अपने दायर किए गए हर मामले को खींचते हैं ताकि वह अंजाम तक न पहुंचने पाए और स्वामी को सुर्खियों की जो आदत है, वह भी पूरी होती रहे।

हाल ही में सुब्रह्मण्यम स्वामी को कोर्ट ने एक और झटका दिया। स्वामी लगातार सुनंदा पुष्कर केस में कांग्रेस सांसद शशि थरूर के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे। मगर कोर्ट ने थरूर को इस मामले से बरी कर दिया। स्वामी की आदत बिना सबूतों के इल्जाम लगाने की है। वे अपने निजी एजेंडे को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। उन्होंने हाल ही में रतन टाटा को रॉटेन टाटा करार दिया। सिर्फ इसलिए कि स्वामी को एयर इंडिया के टाटा के हाथों में जाने से एतराज था। ये स्वामी के कार्पोरेट एजेंडे में फ़िट नही होता था।

स्वामी की राजनीतिक समझ कितनी कच्ची है इसका एहसास कर्नाटक प्रकरण में हो गया। उन्होंने यहां भी टांग अड़ाने की कोशिश की। स्वामी ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री रहे बीएस येदुरप्पा को हटाने के मामले में बीजेपी आलाकमान को चुनौती दी। उन्होंने यहां तक कहा कि येदुरप्पा को इसलिए हटाया जा रहा है क्योंकि वे किसी के चमचा नही हैं। स्वामी को लगा था कि येदुरप्पा बगावत कर जाएंगे और उनके एजेंडे की दुकान चलती रहेगी। मगर येदुरप्पा ने स्वामी के एजेंडे को पलीता लगा दिया। कर्नाटक में बेहद ही शांति से सत्ता परिवर्तन हो गया।

स्वामी के व्यक्तिगत एजेंडे और खोखले दृष्टिकोण का एक और सबूत सुशांत सिंह राजपूत केस में दिखाई दिया। स्वामी इस मामले में भी घुस गए। पीएम मोदी को चिट्टी लिख दी। मगर यहां भी वे कोई सबूत नही दे सके। सुशांत सिंह राजपूत की मौत को हत्या साबित कर मीडिया में सुर्ख़ियाँ बटोरने का उनका दांव बुरी तरह फेल हो गया। मोदी विरोध की आँच में झुलस रहे स्वामी ने हाल ही में श्रीलंका और भारत की अर्थव्यवस्था की तुलना कर दी। उन्होंने लिखा कि राम के भारत में पेट्रोल 93 रुपए में बिक रहा है जबकि रावण की लंका में 51  रुपए में। स्वामी बताना चाह रहे थे कि भारत की अर्थव्यवस्था बदहाल हो चुकी है जबकि श्रीलंका की चमचमा रही है। कुछ ही दिनो बाद स्वामी को यहां भी अपनी जमीन दिखाई पड़ गई और यह साबित हो गया कि व्यक्तिगत एजेंडे की तपिश में जलकर उनकी राजनैतिक और आर्थिक दोनो ही समझ स्वाहा हो चुकी है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का आज ये हाल है कि वहां पेट्रोल की भारी किल्लत है। विदेशी मुद्रा खत्म हो चली है। राशन की दुकानों पर लूट की स्थिति है। सेना राशन की व्यवस्था सँभाल रही है जबकि भारत 5 ट्रिलियन इकोनॉमी के सपने को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

अब स्वामी ने नया शिगूफ़ा काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर छोड़ा है। उन्होंने ट्विटर पर लिखा है कि वे इसे मुक्त कराके रहेंगे। इससे पहले अयोध्या के मामले में भी उन्होंने इसी तरह से श्रेय लेने की कोशिश की थी। अयोध्या के पक्षकारों के त्याग और समर्पण पर डाका डालने की कवायद की थी। ये उनकी आदत में शुमार है। स्वामी अपने एजेंडे की आग में ऐसे मशगूल रहते हैं कि वे उसकी खातिर राष्ट्रहित को भी दांव पर लगा सकते हैं।

उन्होंने कोवीशील्ड के मामले में ऐसा ही किया। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनका की बनाई इस वैक्सीन को उन्होंने मौत की वैक्सीन करार देकर देश को गुमराह करने की कोशिश की। उन्होंने दावा किया कि कोरोना की वैक्सीन लेने के बाद जिन 71 लोगों की मौत हुई है उनमें 70 क़ी मौत कोविशील्ड लेने के चलते हुई है। स्वामी ये दावा तब कर रहे थे जब देश कोरोना की लहर से बुरी तरह जूझ रहा था। देश मे मौतें हो रहीं थीं और वैक्सीन ही इकलौता कवच मानी जा रही थी। इस बेहद नाज़ुक समय में स्वामी देश को गुमराह करने में जुटे हुए थे। सूत्रों के मुताबिक इसके पीछे स्वामी का अपना कार्पोरेट एजेंडा था। एक कंपनी को उठाना और दूसरे को गिराना उनके कार्पोरेट शग़ल में शामिल है। इसके पीछे का स्वार्थ जांच का विषय है।

स्वामी किसी के भी स्वामी भक्त नही हैं। वे अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता के खिलाफ भी ज़हर उगल चुके हैं। उनकी सरकार गिराने की कोशिशें कर चुके हैं। वे आरएसएस के खिलाफ आग उगल चुके हैं जबकि सबसे पहले उन्हें नानाजी देशमुख के कहने पर ही राज्यसभा भेजा गया था। यानि जिन्होंने उन्हें पद और सम्मान से नवाज़ा, स्वामी ने उनकी भी पीठ में छुरा घोंपा। स्वामी एक जमाने में राजीव गांधी के बेहद नज़दीकी  ग्रुप का हिस्सा थे। आलम यह है कि वे सदन में ये सार्वजनिक तौर पर ये कह चुके थे कि राजीव गांधी ने बोफ़ोर्स में कोई पैसा नहीं लिया है।

स्वामी भारतीय राजनीति के सबसे बड़े पदलोलुप नेताओं में एक हैं। वे वित्त मंत्रालय पाने के लिए बुरी तरह लालायित रहे हैं। जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे तो सुब्रमण्यम स्वामी ने वित्त मंत्री बनने की इच्छा व्यक्त की थी। पत्रकार विजय त्रिवेदी ने वाजपेयी के ऊपर लिखी अपनी पुस्तक इस बात का जिक्र किया है। मगर वाजपेयी ने उनकी जगह यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्री बना दिया था। इसी बात से स्वामी बीजेपी और आरएसएस पर इस कदर भड़क गए कि उन्हें फासिस्ट करार दे दिया और आरएसएस के विस्तार को अंग्रेजी साम्राज्यवाद और इंदिरा गांधी की इमरजेंसी से भी बुरा बताया। सुब्रमण्यम स्वामी भारतीय राजनीति की एक ऐसी हस्ती हैं जिनका पूरा राजनीतिक जीवन अपने निजी एजेंडे और कार्पोरेट एजेंडे की खेती करते बीता है और इसीलिए उनकी विश्वसनीयता और वफादारी को शक की निगाह से देखा जाता रहा है।