नई दिल्ली। अफगानिस्तान के काबुल पर तालिबानी लड़ाकों के कब्जे के बाद अब अमेरिका भी अपने सारे सैनिकों को वापस स्वदेश बुला चुका है। लेकिन आतंक के दमपर सत्ता की कुर्सी पर बैठने वाले तालिबान की सरकार को मान्यता देने को लेकर दुनिया के तमाम देशों में मंथन चल रहा है। ऐेसे में भारत पर भी सबकी निगाहें बनी हुई है। दरअसल तालिबान इस बार खुद को बदला हुआ बता रहा है। वो दुनियाभर से लगातार कह रहा है कि इस बार का तालिबान हर मायने में अलग है। वहीं भारत के साथ उसके कैसे रिश्ते होंगे इस पर दुनिया निगाहें जमाए बैठी है। दरअसल अफगानिस्तान की पूर्व सरकार को भारत की तरफ से काफी मदद दी जा चुकी है। और इतना ही नहीं तालिबान को मान्यता ना देने पर भी भारत सख्त रूप अख्तियार करता रहा है। लेकिन अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद अब भारत का रुख नरम होता दिखाई दे रहा है।
गौरतलब है कि तालिबान को अफगानिस्तान में स्थापित करने के लिए खुद उसे भारत जैसे दुनिया के बड़े लोकतांत्रिक देश का साथ चाहिए। ऐसे में जब तालिबान ने भारत से बातचीत के लिए संपर्क साधा तो भारत ने तालिबान के इस आवेदन पर मंगलवार को कतर में स्थित भारतीय राजदूत दीपक मित्तल (Deepak Mittal) ने तालिबान के प्रतिनिधि शेर मोहम्मद स्टैनिकजई (Sher Mohammad Abbas Stanekzai) के साथ मुलाकात की।
अभी 140 भारतीय फंसे हुए हैं अफगानिस्तान में
हालांकि भारत की इस नरमी को लेकर भले ही दुनिया के तमाम देश आश्चर्यचकित हों, लेकिन ऐसा करने के पीछे माना जा रहा है कि भारत के कुछ अपने हित हैं, जिसे मोदी सरकार साधने में लगी है। दरअसल अफगानिस्तान में अमेरिका की दखलअंदाजी के रहते भारत काबुल में बदले हालात के बीच भारत 565 लोगों को वतन वापस ला चुका है लेकिन 140 भारतीय और सिख समुदाय के लोग अभी भी वहां फंसे हुए हैं। इन्हें वापस लाना भारत सरकार की प्राथमिकताओं में है। वो भी तब जब अमेरिका पूरी तरह से जा चुका है।
इस तरह के हालात को देखते हुए माना जा रहा है कि तालिबान को लेकर केंद्र सरकार कोई बड़ा फैसला नहीं लेने के मूड है, जिससे नागरिकों पर खतरा आए। ऐसे में तालिबान पर नरमी रखकर, वहां फंसे नागरिकों को प्राथमिकता दी जा रही है। बता दें कि वापस लाने वाले नागरिकों में 112 अफ़ग़ान नागरिक भी शामिल हैं। हालांकि देखने वाली बात यह भी है कि अफगानिस्तान में बने हालात को देखते हुए तालिबान को भारत का साथ हर हाल में चाहिए।
तालिबान को चाहिए भारत का साथ
ऐसा इसलिए भी क्योंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैं, और अगर भारत से उसके रिश्ते बेहतर होते हैं, तो पूरी दुनिया में तालिबान को लेकर अच्छा संदेश जाएगा। इसके अलावा एक और वजह से तालिबान भारत का साथ चाहता है। वो ये कि भारत अफगानिस्तान में काफी इनवेस्ट कर चुका है, कुछ प्रोजेक्ट अभी भी पूरे होने हैं, ऐसे में तालिबान चाहता है कि भारत अपने सारे प्रोजेक्ट पूरा करे। इसलिए भी तालिबान ने भारत से बातचीत के लिए उत्सुक दिखाई दे रहा है। तालिबान का कहना है कि भारत को अफ़ग़ानिस्तान से राजनीतिक और कारोबारी संबंध बनाए रखना चाहिए। वहीं द हिन्दू की एक रिपोर्ट का कहना है कि तालिबान के आने के बाद भी काबुल से भारत ने राजनयिक संबंध तोड़ा नहीं है।
एक ये भी हो सकती है वजह
दरअसल अफगानिस्तान में जब राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी का शासन था तो भारत से उनके काफी गहरे रिश्ते थे। जो पाकिस्तान को असहज करता था। इतना ही नहीं भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में तीन अरब डॉलर अलग-अलग परियोजनाओं में इनवेस्ट किए हैं। इसके साथ ही अफ़ग़ानिस्तान के संसद भवन का भी भारत ने नौ करोड़ डॉलर में निर्माण किया है। इससे साफ है कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत की काफ़ी प्रतिष्ठा रही है। हालांकि अब समय बदल चुका है, राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी अब देश छोड़ चुके हैं। जहां अफगानिस्तान एक समय भारत के साथ खड़ा रहता था, वहीं अब वहां सत्ता परिवर्तन के बाद तालिबान का आना, पाकिस्तान को मौका मिलने जैसा है। भारत भी चाहता है कि इतने निवेश के बाद पाकिस्तान को खुले तौर पर अफगानिस्तान में मौका देना किसी भी परिस्थिति में सही नहीं है। इसलिए भी केंद्र सरकार बड़े ध्यान से हर चाल चल रही है।
मंगलवार को हुई बातचीत
वहीं मंगलवार को हुई तालिबान से बातचीत को लेकर कतर में स्थित भारतीय राजदूत दीपक मित्तल (Deepak Mittal) ने तालिबान के प्रतिनिधि शेर मोहम्मद स्टैनिकजई (Sher Mohammad Abbas Stanekzai) के साथ मुलाकात की। इसकी जानकारी विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को प्रेस रिलीज करके दी है। बता दें कि अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद यह पहला मौका है जब भारत और तालिबान के किसी प्रतिनिधि के बीच आधिकारिक तौर पर मुलाकात हुई है।
इस बातचीत में भारत ने तालिबानियों के सामने अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों की सुरक्षित वतन वापसी का मसला उठाया गया। इसके अलावा अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय की भारत यात्रा और उनकी सुरक्षा का मुद्दा भी सामने रखा। राजदूत मित्तल ने भारत की चिंता जताई कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी तरह से भारत विरोधी गतिविधियों और आतंकवाद के लिए नहीं किया जाना चाहिए। वहीं तालिबान के प्रतिनिधि ने भी भारतीय राजदूत को पूरा भरोसा दिलाया है कि भारत की तरफ से रखे गए मुद्दों पर सकारात्मक नजरिए के साथ विचार किया जाएगा।