पिछले सप्ताह कर्नाटक के बेलगावी में कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में सोनिया गांधी ने कहा कि सत्ता में बैठे लोगों से गांधी की विरासत को खतरा है। यहां सवाल उठता है कि गांधी की विरासत है क्या? जिस कांग्रेस पार्टी के कभी महात्मा गांधी अध्यक्ष रहे हों क्या यह वही कांग्रेस है? बता दें कि गांधी जी ने 26 दिसंबर 1924 को कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला था। और जिस गांधी की विरासत की बात सोनिया गांधी कर रही हैं वह कांग्रेस अब कहां बची। तब जो कांग्रेस थी उसमें सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, लाल बहादुर शास्त्री, सुभाष चंद्र बोस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे राष्ट्रवादी लोग थे। बाद में कांग्रेस की कमान पूरी तरह से पंडित नेहरू के हाथ में आ गई। तब तक भी कांग्रेस में काफी हद तक चीजें ठीक थीं, क्योंकि देशहित में सोचने वाले नेता तब भी कांग्रेस में थे और नेहरू जी पर दबाव बना लिया करते थे।
नेहरू जी और लालबहादुर शास्त्री के देहांत के बाद इंदिरा गांधी पूरी तरह से कांग्रेस को अपने अधिपत्य में लेना चाहती थीं। पार्टी के वरिष्ठ नेता इसके विरोध में थे और इंदिरा गांधी की नीतियों से सहमत नहीं थे। 12 नवंबर 1969 को इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया था। इस पर इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को ही तोड़ दिया और और कांग्रेस दो गुटों में बट गई। इंदिरा ने कांग्रेस (आर) नाम से नया संगठन बना लिया। इंदिरा द्वारा कांग्रेस पार्टी के दो फाड़कर बनाई गई कांग्रेस ही आज की कांग्रेस पार्टी है, जिस कांग्रेस में गांधी जी थे वह तो कभी की खत्म हो चुकी है।
गांधी जी ने स्वयं कहा भी था कि कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए। उन्होंने अपनी हत्या के तीन दिन पहले 27 जनवरी 1948 को एक नोट में लिखा था, ”अपने वर्तमान स्वरूप में कांग्रेस अपनी भूमिका पूरी कर चुकी है। इसलिए इसे भंग करके एक लोकसेवक संघ में तब्दील कर देना चाहिए।” यह नोट एक लेख के रूप में 2 फ़रवरी 1948 को ‘उनकी अंतिम इच्छा और वसीयतनामा’ शीर्षक से हरिजन में प्रकाशित भी हुआ था। जाहिर बात है कि गांधी जी ने यह नोट इसलिए लिखा था कि वह उस समय कांग्रेस की भूमिका से खुश नहीं थे। कहीं तो कुछ न कुछ उनके मन में रहा होगा कि उन्होंने ऐसा नोट उस कांग्रेस पार्टी के लिए लिखा जिसके वह कभी अध्यक्ष रह चुके थे।
जब से इंदिरा जी के हाथ में कांग्रेस की कमान गई तब से कांग्रेस वो कांग्रेस नहीं रही जिसे वह गांधी जी की विरासत बताती है। कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ गांधी परिवार की पार्टी हो चुकी है। गांधी परिवार की परिक्रमा करना ही कांग्रेसियों का धर्म हो गया है। ऐसे में सोनिया गांधी कौन सी गांधी जी की विरासत की बात कर रही हैं। 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में वन्दे मातरम् गाया गया था। 1924 में जब महात्मा गांधी ने कांग्रेस का कार्यभार संभाला था तब भी वन्दे मातरम् गाया गया था। अब क्या कांग्रेस की बैठकों और अधिवेशन में वन्दे मातरम् गाया जाता है? मुस्लिम तुष्टीकरण और वोट की राजनीति के चलते ये अब बीते कल की बातें हो गईं।
कांग्रेस के अधिवेशनों और बैठकों में वंदे मातरम् गाया जाता हो या नहीं, लेकिन भाजपा की बैठकों और अधिवेशनों में जरूर गाया जाता है। यहां तक कि जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर कांग्रेसी और गांधी परिवार लगातार सवाल उठाते हैं उसके छोटे से छोटे कार्यक्रम में वन्दे मातरम् गाया जाता है। सच तो यह है कि महात्मा गांधी की असल विरासत को सत्ता पक्ष ही आगे बढ़ा रहा है। कांग्रेस तो सिर्फ गांधी जी विरासत वाली पार्टी होने का दावा ही करती आ रही है। जो गांधी के सिद्धांतों के अनुरूप चलने वाली कांग्रेस थी वह तो कब की खत्म हो चुकी है। अब जो कांग्रेस है वह सिर्फ गांधी परिवार की ही कांग्रेस है। गांधी जी की विरासत पर सिर्फ गांधी उपनाम रखने से ही हक नहीं हो जाता।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।