
राहुल गांधी उनकी बहन प्रियंका गांधी जो अल्पसंख्यकों के सबसे बड़े रहनुमा बनते हैं, वक्फ संशोधन बिल पर बिल्कुल चुप्पी साधे रहे। क्या यह साबित नहीं करता कि वह सिर्फ मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए करते हैं। इसी फेहरिस्त में तीसरा बड़ा नाम अखिलेश यादव का है। वह 2 अप्रैल को लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पर बोलने के लिए खड़े तो हुए लेकिन वक्फ से इतर वह सिर्फ इधर—उधर की बातें करते रहे।
राहुल गांधी जो हमेशा यह राग अलापते रहते हैं कि उन्हें सदन में बोलने नहीं दिया जाता। विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश की जाती है। वह वक्फ संशोधन बिल पर चुप्पी साधे रहे। जबकि वह हमेशा से स्वयं को और कांग्रेस की नीतियों को मुस्लिमों के हित की बात करने वाला कहते हैं। वह दावा करते हैं कि वे मोहब्बत की दुकान खोलने वाले हैं, भाजपा पर वह नफरत की राजनीति करने का आरोप लगाते हैं। यहां तक कि सम्भल में पुलिस—प्रशासन पर हमला करने के दौरान दंगाइयों की ही गोलियों से मारे गए लोगों को बिना किसी जांच—पड़ताल के निर्दोष साबित कर देते हैं।
दरअसल राहुल गांधी ऐसा सिर्फ और सिर्फ इसलिए करते हैं ताकि वह खुद को सेकुलर बताकर अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय को वोट हासिल कर सकें। कांग्रेस विपक्ष में है। उनकी पार्टी भी हमेशा से मुस्लिमों के पक्ष में फैसले लेने के लिए प्रसिद्ध है। फिर चाहे शाह—बानो प्रकरण की बात हो या फिर देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का बताने की बात हो, कांग्रेस हमेशा से मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करती आई है, लेकिन वक्फ पर कांग्रेस के दोनों बड़े चेहरे राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका गांधी चुप्पी साधे रहे, क्यों ? क्योंकि वह जानते हैं कि वक्फ बिल मुस्लिमों के हितों को ध्यान में रखते हुए लाया गया है। इससे पारदर्शिता आएगी जो मुस्लिमों के हित में है। ऐसे में विरोध करें तो बोलेंगे क्या ? प्रियंका गांधी भी केरल के वायनाड से सांसद हैं, इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता हैं और कांग्रेस के वोटर हैं। बावजूद इसके प्रियंका गांधी ने भी वक्फ संशोधन बिल—2025 पर हुई बहस में हिस्सा नहीं लिया।
कांग्रेसियों के सर्वमान्य नेता राहुल गांधी ने इससे पहले कितनी ही बार मुस्लिम वोटरों को लुभाने वाले बयान दिए हैं। उदाहरण के तौर पर उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान दिल्ली में एक रैली में कहा था कि देश में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। उनकी आवाज दबाई जा रही है और उनके खिलाफ हिंसा बढ़ रही है। 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भी उन्होंने कहा था कि कांग्रेस पार्टी मुसलमानों और वंचित वर्गों के लिए काम करेगी। 2017 में राहुल गांधी ने कहा था कि मुसलमानों को मॉब लिंचिंग का शिकार बनाया जा रहा है। और भी ऐसे कई बयान हैं जो राहुल गांधी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए दिए हैं। कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते वक्फ बोर्ड को ही इतने अधिकार दिए थे कि वह मनमानी करने लगा था। जब कांग्रेस ने उसे इतने अधिकार दिए थे तो राहुल गांधी को उनकी पार्टी लाइन के अनुसार वक्फ पर बोलना चाहिए थे, लेकिन नहीं बोले। मुस्लिमों का खुश करने के लिए फिलिस्तीन के समर्थन वाला एक बैग लेकर संसद में पहुंचने वाली उनकी बहन प्रियंका भी चुप रहीं।
लोकसभा चुनावों में 37 सीटें जीतकर तीसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनने वाली समाजवादी पार्टी का मुस्लिम प्रेम तो जग जाहिर है। ऐसे में अखिलेश यादव को तो जोरदार तरीके से विरोध करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। वह बोले तो जरूर लेकिन वक्फ संशोधन बिल पर कुछ खास नहीं बोले। इससे इतर उन्होंने बेरोजगारी, महंगाई, नोटबंदी और प्रयागराज कुंभ मेले की भगदड़ जैसे मुद्दे उठाए। यहां तक कि भाजपा के अध्यक्ष पद के चुनाव का मुद्दा उठाया। उनका भाषण कतई अप्रभावी रहा। अखिलेश यादव के कल के भाषण से यह साबित हो गया कि उन्हें राजनीति विरासत में तो मिल गई। वह पार्टी के सर्वेसर्वा भी बन गए। पांच साल तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह लिए, लेकिन वह नेता नहीं बन पाए। उन्होंने यह साबित कर दिया कि नेता बनने की कुवत उनमें नहीं है। वह भी उसी तरह अपने परिवार की विरासत के चलते नेता बने हैं जैसे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी अपनी राजनीतिक विरासत के चलते नेता बने हैं।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।