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आम आदमी पार्टी के लिए इस बार दिल्ली में बहुमत पाना दूर की कौड़ी लग रही है !

बहुत कठिन है राह पनघट की संभल—संभलकर चलना होगा। ये पंक्तियां इस वक्त पिछले दस सालों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लिए बेहद सटीक बैठ रही हैं।

आम आदमी पार्टी दस सालों से दिल्ली की सत्ता में है। जाहिर है एंटी इनकंबेंसी भी होगी और है भी। अब ऐसे में सत्ता पाने के लिए वादे तो होंगे ही। वादा करने में माहिर अरविंद केजरीवाल ने फिर तमाम वादे करने में जुटे हैं। मसलन महिलाओं को हर माह 2100 रुपए देने की घोषणा करना, बच्चों को पढ़ाई के लिए विदेश जाने पर खर्चा उठाने की बात करना, आदि। ऐसे ही कुछ वादे कांग्रेस ने भी किए हैं। कर्नाटक की तर्ज पर कांग्रेस ने भी हर महीने महिलाओं को 2500 रुपए देने की घोषणा की है लेकिन सत्ता में आने पर।

बहरहाल, दिल्ली में चुनावी शंखनाद हो चुका है। आगामी 5 फरवरी को चुनाव हैं और 8 फरवरी को परिणाम आएंगे। पिछले दस सालों से केजरीवाल की पार्टी सत्ता में है। इस बार दिल्ली की जनता किसको चुनेगी यह कहना तो अभी जल्दबाजी होगी लेकिन एक बात तय है कि पिछले दस सालों से दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी के लिए इस बार सत्ता के गलियारों तक पहुंचना आसान तो कतई नहीं होगा। हरियाणा चुनावों में भी केजरीवाल ने वादे कर, खुद को हरियाणा का बेटा बताकर वोट मांगे थे लेकिन वहां की जनता ने उन्हें नकार दिया, संभवत: लोग समझ चुके हैं कि उनकी राजनीति सिर्फ वोट पाने तक की है। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने चुनाव जीतने के बाद हर महीने महिलाओं को 1000 रुपए देने की बात कही थी लेकिन अभी तक यह योजना वहां पर परवान नहीं चढ़ पाई है।

आंदोलन कर और भ्रष्टाचार के मुद्दे को तूल देकर राजनीति में अपनी पहचान वाले अरविंद केजरीवाल पर और प्रमुख नेताओं पर भी भ्रष्टाचार के गहरे आरोप पिछले दस सालों में लग चुके हैं। वह खुद जमानत पर बाहर हैं। साथ ही आम आदमी पार्टी के बड़े नेता मनीष सिसोदिया, संजय सिंह, सत्येंद्र जैन भी जमानत पर हैं। जब केजरीवाल 2013 में पहली बार राजनीति में आए थे तब परिस्थितियां उनके लिए अनुकूल थी जिसके चलते वह दिल्ली में जगह बनाने में कामयाब भी हो गए थे। इसके बाद 2015 और फिर 2020 में भी दिल्ली की जनता ने उन पर विश्वास जताया और उन्हें सत्ता की चाबी सौंपी, लेकिन इस बार उनकी राह आसान नहीं है।

पिछले दस सालों से कांग्रेस दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत पा रही है। केजरीवाल के दिल्ली में सक्रिय होने से पहले दिल्ली की राजनीति कांग्रेस और भाजपा के इर्द—गिर्द ही घूमती थी। अरविंद केजरीवाल अपनी आंदोलनकारी छवि के साथ मैदान में आए और सत्ता पलट दी, लेकिन यहां गौर करने वाली बात है कि केजरीवाल की तरफ जो वोट बैंक खिसका वह कांग्रेस का वोट बैंक था। भाजपा का वोट बैंक लगभग स्थिर रहा। 2015 में भाजपा के वोट प्रतिशत में कुछ प्रतिशत की कमी आई थी लेकिन 2020 में भाजपा का वोट प्रतिशत पहले से भी अधिक हो गया।

आंकड़ों के लिहाज से देखें तो 2013 में भाजपा का वोट प्रतिशत 33.3 था। कांग्रेस का 24.7 और आम आदमी पार्टी का 29.3 था। भाजपा ने 31, आम आदमी पार्टी ने 28 और कांग्रेस ने आठ सीटें जीती थीं। 2015 में भाजपा का वोट प्रतिशत 32.78 था। भाजपा को दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में महज 3 सीटें प्राप्त हुई थी। आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत 54.34 था। उसे 67 सीटें मिली थीं। कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी और उसका वोट प्रतिशत 9.70 था। भाजपा के वोट प्रतिशत में एक प्रतिशत की कमी आई और वह तीन सीटों पर सिमट गई। यानी कांग्रेस का सारा वोट प्रतिशत आम आदमी पार्टी की तरफ सिमट गया। कांग्रेस का लगभग 20 प्रतिशत वोट सिमट कर आआपा पर चला गया और नतीजतन आआपा पूर्ण बहुमत से सत्ता में आ गई।

2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की और बुरी दुर्गति हुई। उसका वोट प्रतिशत गिरकर 4.26 प्रतिशत तक पहुंच गया। एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीती। जबकि आम आदमी पार्टी की सीटें कम हो गई। उसका वोट बैंक 2015 के मुकाबले महज एक प्रतिशत कम हुआ और उसे 5 सीटों का नुकसान हो गया। भाजपा के वोट प्रतिशत में 5.72 की बढ़ोतरी हुई और उसकी सीटें 3 से बढ़कर आठ हो गईं। उसका वोट प्रतिशत 38.5 हो गया।

कर्नाटक, हिमाचल और तेलंगाना में जिस तरह कांग्रेस ने अपने दम पर सरकार बनाई। जिन वादों को करके इन राज्यों में कांग्रेस ने सरकार बनाई इस बार दिल्ली में भी कांग्रेस पूरे दमखम से मैदान में है। केजरीवाल की महिलाओं को मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना के तहत 2100 रुपए देने और बिजली पानी—मुफ्त देने के जवाब में कांग्रेस ने भी प्यारी दीदी योजना के तहत हर माह महिलाओं को 2500 रुपए देने का वादा कर तुरुप का पत्ता चला है। वहीं भाजपा ने भी वादा किया है कि जो मुफ्त सुविधाएं दिल्ली में दी जा रही हैं वह बंद नहीं होंगी। ऐसे में केजरीवाल की राह कठिन हो गई है। इसके चलते वह आए दिन नई—नई घोषणाएं कर रहे हैं। आरोपों और प्रत्यारोपों की जो राजनीति वह करते आए हैं वह भी कर रहे हैं। लेकिन इस बार आआपा की दिल्ली में सत्ता पाने की राह आसान तो कतई नहीं दिखाई देती है।

दस साल पहले आम आदमी पार्टी ने घोषणापत्र जारी किया था। जिसमें दिल्ली की जनता से उसने 40 वादे किए थे। उन वादों में दिल्ली के लिए जनलोकपाल बिल की बात थी। यमुना सफाई की बात थी। फास्ट ट्रैक कोर्ट खोलने की बात थी, जहां तीन से छह महीने में अपराधी को सजा दिलाने की बात की गई है। अब आम आदमी पार्टी खुद दिल्ली में कानून व्यवस्था का रोना रो रही है। क्या वादा करते वक्त अच्छे से होमवर्क नहीं किया था? पूरी दिल्ली को फ्री वाईफाई का वादा भी केजरीवाल ने किया था। अब दिल्ली वाले उस वाईफाई का पासवर्ड भी मांग रहे हैं? इसके अलावा बात—बात पर विवाद खड़ा करने की उनकी आदत को दिल्ली की जनता समझ चुकी है। दिल्ली में सरकार किसकी बनेगी यह कहना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन एक बात तय है कि कांग्रेस का जो वोट बैंक केजरीवाल की तरफ छिटककर गया था यदि वह 15 प्रतिशत भी कांग्रेस की तरफ सरक गया तो किसी की भी सरकार बने लेकिन आम आदमी पार्टी का सत्ता से बाहर होने का रास्ता तय हो जाएगा।

 

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।