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एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों से कट्टरपंथियों को दिक्कत क्यों !

सीएए और एनआरसी को लेकर जिस तरह 2019-20 में भ्रम फैलाकर देशभर में उत्पात मचाया गया। दिल्ली में दंगे कराए गए। इस बार फिर से वक्फ संशोधन बिल को लेकर ऐसा ही भ्रम फैलाने की कोशिश

वैसे तो कट्टरपंथी और कथित सेकुलर जो मुसलमानों के रहनुमा बनते हैं, वह देश में गंगा—जमनी तहजीब की बात करते हैं, लेकिन संविधान के दायरे में रहकर कानूनों से बंधकर नियमों से चलने की बात आती है तो सब भूल जाते हैं। लोगों को भड़काया जाता है। भ्रम फैलाया जाता है। इसके बाद उन्मादी भीड़ सड़कों पर उतर आती है, और शुरू होता है सड़कों पर उत्पात, पथराव और आगजनी। आखिर इस देश का एक तबका देश के कानून को ‘कानून’ क्यों नहीं मानता? संविधान की दुहाई देने वाले ये लोग संविधान को कहीं से भी मानते हैं। ऐसा नजर नहीं आता।

वक्फ संशोधन बिल इस सत्र में 21 मार्च को सदन में प्रस्तुत होने वाला है। 17 मार्च को वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन ‘एआईएमआईएम’ प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी समेत सैकड़ों लोग इसमें शामिल हुए। तृणमूल और कांग्रेस के नेता भी प्रदर्शन में शामिल हुए। यहां पर फिर से एक झूठा विमर्श गढ़ा गया, और अब उस विमर्श के साथ फिर से देश में अशांति फैलाने की कोशिश की जा रही है। ओवैसी ने स्पष्ट कहा कि वक्फ संशोधन बिल से मस्जिदों पर खतरा है। जबकि ऐसा कतई नहीं है। किसी ने भी विधेयक नहीं पढ़ा है, न कोई इसे पढ़ने के लिए तैयार है। ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे सीएए और एनआरसी के प्रावधानों को किसी ने नहीं पढ़ा था, और भ्रम फैलाया गया था कि सीएए के तहत मुसलमानों की जमीनें छीन ली जाएंगी, उन्हें देश से निकाल दिया जाएगा। जबकि ऐसा कुछ नहीं था। एनआरसी केवल अवैध घुसपैठियों पर लगाम लगाने के लिए लाया गया था, और सीएए पड़ोसी देशों में प्रताड़ना के शिकार हिंदू, सिख और बौद्ध अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए लाया गया था।

इसी तरह वक्फ संशोधन बिल को भी मस्जिदें छीनने के लिए नहीं, बल्कि वक्फ की असीमित शक्तियों को नियंत्रित करने के लिए लाया जा रहा है। वक्फ बोर्ड को खत्म नहीं किया जा रहा है बल्कि कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति के चलते वक्फ बोर्ड को जो असीमित अधिकार दिए हैं। जिसके चलते वक्फ बोर्ड आए दिन किसी भी संपत्ति पर अपना दावा ठोकता रहता है। यह संशोधन बिल उस मनमानी को रोकने के लिए लाया जा रहा है। इसके लिए एक तय प्रक्रिया का पालन किया गया है। अब इसे सदन में चर्चा के लिए लाया जाना है। इससे पहले की चर्चा हो, कट्टरपंथी मानसिकता के लोगों ने देश के मुसलमानों को बरगलाने की कोशिश शुरू कर दी है। दिल्ली के जंतर—मंतर पर उनका प्रदर्शन इसकी शुरुआत है। मुसलमानों के मन में यह डर बिठाया जा रहा है कि उनसे मस्जिदें छीन ली जाएंगी। वह यहां पर सुरक्षित नहीं हैं। उनका मजहब खतरे में है?

वक्फ को जितने अधिकार हिंदुस्तान में हैं, उतने किसी मुस्लिम देश में भी नहीं हैं। यहां तक कि जहां से इस्लाम पैदा हुआ, उस सऊदी अरब में भी नहीं। सऊदी अरब, तुर्की, और मलेशिया जैसे देशों में वक्फ संपत्तियों का स्पष्ट और सख्त प्रबंधन किया जाता है, ताकि इन्हें मजहबी उद्देश्यों के लिए सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सके। सऊदी अरब में वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन सरकारी नियंत्रण में होता है। वहां सरकार वक्फ संपत्तियों को मजहबी कार्यों के उद्देश्यों के लिए सुरक्षित रखती है। दुरुपयोग न हो सके इसलिए कड़े कानून बनाए गए हैं। इसी तरह तुर्की और मलेशिया में वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन भी सख्त नियमों के तहत किया जाता है। यहां तक कि भारत से अलग होकर बने मुस्लिमों के देश पाकिस्तान में भी वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए सरकार द्वारा स्थापित बोर्ड और संस्थाएं काम करती हैं। इन पर सख्त नियम और कानून लागू होते हैं। इसके विपरीत भारत में वक्फ बोर्ड अपने अनुसार काम करता है। उस पर कोई नियंत्रण नहीं हैं।

मुस्लिम देशों में वक्फ को लेकर नियम बने हैं, लेकिन यहां यदि नियम बनाने की बात हो रही है तो कट्टरपंथी और कथित सेकुलर बिलबिला गए हैं, क्यों? आखिर क्यों देश का एक तबका नियमों के दायरे में नहीं आना चाहता। इस्लाम सऊदी अरब से आया। भारत में लगभग सारे मुसलमान ऐसे हैं जो कालांतर में हिंदू थे और उन्होंने बाद में इस्लाम अपनाया। ऐसे में उनको बरगलाने वाले कौन हैं? तो इसका जवाब है कि उनको बरगलाने वाले वो कट्टरपंथी और सेकुलर दल हैं जिनको लगता है कि यदि नियम और कायदे लागू हो गए और मुसलमानों को यह बात समझ में आ गई तो फिर उनकी दुकानदारी कैसे चलेगी? उनकी कौन सुनेगा? कथित सेकुलर दलों की राजनीति कैसे चलेगी? दरअसल, ये वो जमात है जो गुजर—बसर कर रहे आम आदमी को, फिर चाहे वह किसी भी धर्म, मजहब और पंथ से हो, उसको भड़काने का काम करती है। ताकि सड़कों पर उत्पात हों, दंगें हों, आगजनी हो पथराव हो और उनकी दुकानदारी और कथित सेकुलरों की राजनीति चलती रही। इस बार फिर से वक्फ के नाम पर अशांति फैलाने की कोशिश की जा रही है। ऐसे चेहरों को पहचानने की जरूरत है ताकि फिर से एक बार 2020 जैसी स्थिति उत्पन्न न हो।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।