newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

बहुसंख्यक हिन्दुओं के धार्मिक आयोजनों पर अक्सर विवादास्पद बयान देकर विपक्ष आखिर क्यों उनकी आस्था और विश्वास पर चोट पहुँचाता है !

कुंभ को मृत्यु कुंभ और फालतू कहने वाले नेता क्या किसी और मजहबी आयोजन के लिए ऐसे शब्द बोल सकते हैं? बिलकुल नहीं। क्योंकि वो अपने वोट बैंक को कैसे नाराज कर सकते हैं?

शिवरात्रि पर महाकुंभ का अंतिम स्नान है। इसके बाद कुंभ की समाप्ति हो जाएगी। सनातन के सबसे बड़े आयोजन पर ओछी राजनीति के तहत सवाल उठाने से कथित सेकुलर नेता बाज नहीं आए। उन्होंने कुंभ को लेकर तमाम तरह की टिप्पणी कीं। इसका माकूल जवाब उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में दिया। उन्होंने कहा, ” महाकुंभ में जिसने जो तलाश उसे वह मिला। गिद्धों को केवल लाश मिली, सुअरों को गंदगी, संवेदनशील लोगों को रिश्तों की खूबसूरत तस्वीर। आस्थावान को पुण्य, सज्जनों को सज्जनता मिली। भक्तों को भगवान मिले। यह टिप्पणी कड़ी है और विशेषकर कथित सेकुलर लॉबी के नंबरदारों और कथित सेकुलर नेताओं के लिए तो यह सबक की तरह है।

रामचरित मानस में लिखा है, ‘ जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी’ यानी जो जिस भावना से जैसा देखता है उसे वैसा ही दिखाई देता है। कुंभ दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन है। यहां आने के लिए किसी को कोई निमंत्रण नहीं देता। हजारों वर्षों से सनातनी कुंभ में आ रहे हैं। आज से पहले भी हजारों कुंभ हो चुके हैं। यह आस्था का विषय है। जाहिर है कि कुंभ आयोजन में भीड़ भी होगी। इस बार के कुंभ के आंकड़ों की बात करें तो तकरीबन 63 करोड़ लोगों के कुंभ में जाकर स्नान करने की बात कही जा रही है। यह संख्या ज्यादा भी हो सकती है। कुंभ समाप्ति के बाद विश्लेषण के साथ सारा आंकड़ा सामने आएगा।

पूरे प्रयागराज जनपद की आबादी करीब 24 से 25 लाख है। ऐसे में देश के कोने—कोने से जब 63 करोड़ श्रद्धालु वहां जाएंगे तो भीड़ होना लाजमी है। इतनी बड़ी आबादी के लिए व्यवस्था करना कोई आसान काम तो नहीं है, लेकिन फिर भी ओछी राजनीति के लिए इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कुंभ और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुए हादसे के बाद कहा था, “महाकुंभ अब महाकुंभ नहीं बल्कि मृत्यु कुंभ में बदल गया है”। ममता बनर्जी जो मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करती हैं। क्या ऐसा ही मुसलमानों के लिए और इस्लाम के लिए बोल सकती हैं। कुंभ तो दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन है। हज पर जाने वाले लोगों की संख्या तो आज तक करोड़ों में नहीं पहुंची है। कितनी ही बार हज में हादसे हो चुके हैं। हजारों लोगों की जानें जा चुकी हैं, लेकिन इस पर कोई कुछ बोलता है क्या? कुंभ तो हर साल भी नहीं होता लेकिन हज यात्रा तो हर साल होती है।

अभी पिछले साल 2024 में सिर्फ 18,33,164 लोग हज पर गए थे और गर्मी तथा अन्य कारणों से 1,301 लोगों की मौत हो गई थी। शायद ही ऐसा कोई साल गया हो जिस दौरान हज करने गए लोगों की मौत न हुई हो। यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि हज में दुनियाभर से मक्का मदीना जाने वाले लोगों की संख्या 20 लाख सालाना ही बैठती है बावजूद इसके वहां बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो चुकी है। मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली ममता बनर्जी क्या हज यात्रा को मौत की यात्रा कह सकती हैं? तो इसका जवाब है, नहीं, वह ऐसा कह ही नहीं सकती। सनातन की आस्था पर सवाल उठाकर उन्हें अपना वोट बैंक कायम रखना है। दूसरे सनातनी सहिष्णु हैं यदि उनमें हिम्मत है तो वह हज यात्रा पर और इस्लाम पर सवाल उठाकर दिखाएं उन्हें पता लग जाएगा कि जिन्हें वह अपना मानती हैं वहीं उनका क्या हाल करेंगे।

सपा से गाजीपुर के सांसद अफजाल अंसारी ने महाकुंभ को लेकर संत रविदास जयंती के एक कार्यक्रम में कहा था कि “मान्यता है कि संगम तट पर स्नान करने से बैकुंठ में जाने का रास्ता खुल जाता है। ऐसे में जो भीड़ देखने को मिल रही उससे लगता है कि अब नर्क में कोई बचेगा ही नहीं और उधर स्वर्ग में भी हाउसफुल हो जाएगा।” अफजाल भी यह बयान इसलिए ही दे पाए क्योंकि वह जानते हैं कि हिंदू समाज सहिष्णु है। वह ऐसी ओछी बातों पर प्रतिक्रिया नहीं देगा। क्या सही बात वह अपने समुदाय के किसी मजहबी आयोजन को लेकर बोल सकते हैं। तो इसका जवाब भी है नहीं, वह ऐसा बोल ही नहीं सकते। यदि ऐसा कुछ बोल दिया तो उनके लिए भी फतवा जारी हो जाएगा। याद कीजिए भाजपा नेत्री नुपुर शर्मा के बयान को। उन्होंने वही कहा था जो जाकिर नाइक अपनी तकरीरों में कहता है। उसके कई वीडियो सोशल मीडिया पर हैं, लेकिन वही बात जब एक डिबेट में नुपुर शर्मा ने बोल दी तो उसका सिर कलम करने तक के फतवे दे दिए गए। आज भी वह खुलकर नहीं घूम सकती। उन्हें पुलिस सुरक्षा में चलना पड़ता है।

उत्तर प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भी कुंभ की व्यवस्था पर सवाल उठाए। लेकिन वह यह भूल गए कि 2013 में जब वह खुद मुख्यमंत्री थे तब प्रयागराज में महाकुंभ आयोजन के दौरान भगदड़ में 36 लोग मारे गए थे। सैकड़ों लोग घायल भी हुए थे। यह भगदड़ स्नान के बाद रेलवे स्टेशन पर मची थी। तब गंगा जी के जल में इतना प्रदूषण था कि अनेकों विदेशी मेहमानों ने संगम में स्नान ही नहीं किया था। उन्हीं की तर्ज पर यादवों और मुसलमानों की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव से जब एक पत्रकार ने प्रश्न पूछा तो उन्होंने कहा कि कुंभ का क्या मतलब है, फालतू है कुंभ। ऐसे ही भीम आर्मी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के नगीना से सांसद चंद्रशेखर ने भी कहा था कि ‘कुंभ वे जाए जिन्होंने पाप किए हों’। यहां सवाल उठता है कि कब तक इस तरह से सनातनी आस्था पर ओछी राजनीति के चलते सवाल उठाते जाते रहेंगे। खुद को सेकुलर कहकर कुछ भी बोल कब तक देश के बहुसंख्यक समाज की आस्था पर चोट पहुंचाई जाएगी।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।