
दिल्ली में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। शराब घोटाले में जमानत पर बाहर आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल इस बार फिर से खुद को आम आदमी का सबसे बड़ा हितैषी बताते हुए प्रचार कर रहे हैं। लोगों से जिताने की अपील कर रहे है, आरोप लगा रहे हैं। कुछ ही महीनों पहले कांग्रेस के साथ गठबंधन कर दिल्ली में चुनाव लड़ने वाले अरविंद केजरीवाल अब कांग्रेस विरोधी हो गए हैं। वह बोल रहे हैं कि यदि आपने कांग्रेस को वोट दिया तो इसका फायदा भाजपा को मिलेगा। भाजपा और कांग्रेस मिलकर दिल्ली में चुनाव लड़ रहे हैं ताकि आम आदमी पार्टी को हराया जा सके। यदि ऐसा हुआ तो दिल्ली में लोगों को मुफ्त मिल रही सारी सुविधाएं बंद हो जाएंगी। राजनीति में सबसे तेजी से पलटी मारने वाले नेताओं की सूची में यदि अरविंद केजरीवाल का नाम पहली सूची में रखा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
शायद ही कोई ऐसी पार्टी रही हो जिस पर अरविंद केजरीवाल ने कीचड़ न उछाली हो। उन्होंने बार-बार सपा, राष्ट्रवादी कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों को भ्रष्ट कहा और खुद को इन सबसे अलग बताया। अब दिल्ली में दस साल की सत्ता के बाद आम आदमी पार्टी के दामन पर भी दाग हैं। खुद अरविंद केजरीवाल और उनके सबसे खासमखास मनीष सिसोदिया दिल्ली शराब घोटाले में जमानत पर हैं। खुद को आम आदमी और कट्टर ईमानदार बताने वाले अरविंद केजरीवाल अब उन नेताओं के साथ भी प्रचार कर रहे हैं जिनको वह भ्रष्ट बताते थे। अरविंद केजरीवाल अखिलेश यादव को साथ में लेकर दिल्ली में रोड शो कर रहे हैं। सपा नेता इकरा हसन मनीष सिसोदिया का प्रचार करने जंगपुरा पहुंची थीं। तृणमूल में शामिल होकर सांसद बने शत्रुघन सिन्हा भी आआपा का प्रचार कर रहे हैं।
तमाम ऐसी चीजें अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं जिनके खिलाफ रहने का वह दावा करते आए हैं। मसलन वह बार—बार कहते हैं कि हम तुष्टीकरण की राजनीति नहीं करते। ऐसे में स्पष्ट तौर पर यादव—मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाली सपा के मुखिया का अरविंद केजरीवाल के पक्ष में प्रचार करना तुष्टीकरण नहीं तो और क्या है। ममता बनर्जी का मुस्लिम प्रेम किसी से छिपा नहीं है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को एक तरफा मुस्लिम वोट मिलता है। केजरीवाल की मंशा भी यही है भाजपा के विरोध के नाम पर मुस्लिम वोट बैंक उनके खाते में ही रहे, क्योंकि दिल्ली का अधिकांश मुस्लिम पहले कांग्रेस को वोट देता था और अब पिछले दस सालों से आम आदमी पार्टी को वोट कर रहा है। ऐसे में यदि कांग्रेस के पास वोट गया तो आआपा को नुकसान होना तय है। इसे तुष्टीकरण की राजनीति नहीं कहा जाएगा और क्या कहा जाएगा।
दरअसल अरविंद केजरीवाल किसी भी सूरत में दिल्ली में अपनी सत्ता बचाना चाहते हैं। बौखलाहट में वह कुछ भी बोल रहे हैं। हरियाणा द्वारा यमुना के पानी में जहर मिलाने का बयान भी इसी बौखलाहट का ही नतीजा है। इस बयान पर उन्हें चुनाव आयोग की नाराजगी भी झेलनी पड़ रही है। खुद को कट्टर ईमानदार बताने वाले अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुई थी, और उनका मुख्य नारा था ईमानदार राजनीति। 2015 से लेकर अभी तक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता से न जाने कितने वादे किए। जब पूरा करने की बारी आई तो वह मुद्दा बदलते रहे या फिर कन्नी काटते रहे। पारदर्शिता और शुचिता के जो दावे केजरीवाल करते थे, दिल्ली की जनता भी अब समझ चुकी है कि वे सिर्फ कोरे दावे ही थे। केजरीवाल भी यह समझ चुके हैं कि खुद को सबसे आला, भोला दिखाने—बताने की राजनीति से अब काम नहीं चलने वाला है। ऐसे में उनके पास दूसरों का सहारा लेने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा है। इसलिए केजरीवाल अब उन राजनीतिक दलों से खुद के लिए मदद मांग रहे हैं जिनको वह ब्लैक लिस्ट यानी भ्रष्टाचारी दलों की सूची में रखते थे।
केजरीवाल यह जान चुके हैं कि इस बार उनके लिए दिल्ली का चुनावी दंगल जीतना आसान नहीं होगा। राजनीतिक असुरक्षा और सत्ता छिन जाने का डर उन पर हावी है। इसलिए वह सपा और तृणमूल जैसी पार्टियों के साथ नजदीकियां बढ़ा रहे हैं ताकि भाजपा के विरोध के नाम पर जरूरत पड़ने पर इन पार्टियों से मदद ली जा सके। एक बात तो स्पष्ट हो चुकी है कि तुष्टिकरण की राजनीति के इस खेल में केजरीवाल भी अब पूरी तरह शामिल हो गए हैं। सत्ता में बने रहने के किसी भी हद तक जा सकते हैं। किसी से भी समझौता कर सकते हैं। कैसे भी आरोप लगा सकते हैं। कैसा भी झूठ बोल सकते हैं। कितना भी नीचे गिर सकते हैं।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।