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राहुल गांधी के लचर नेतृत्व और बेवजह के मुद्दों को तूल देने की वजह से क्या बिखर जाएगा इंडिया गठबंधन !

राहुल गांधी के नेतृत्व पर फिर से सवाल उठने लगे हैं। महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी की हार के बाद (यूबीटी) नेता अंबादास दानवे ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि नतीजों के आने से पहले ही कांग्रेस के नेता सूट-टाई पहन कर तैयार थे, यदि उद्धव ठाकरे को चेहरा बनाया होता था तो नतीजा कुछ और होता, कल्याण बनर्जी ने भी इंडिया गठबंधन में राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर सवाल उठाए हैं।

पांच महीने पहले जब लोकसभा चुनावों के नतीजे आए थे कांग्रेस और इंडिया गठबंधन में शामिल तमाम दलों के नेता गदगद थे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी फूले नहीं समा रहे थे। लेकिन इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में पहले हरियाणा और फिर महाराष्ट्र में कांग्रेस की जो दुर्गति हुई उससे राहुल गांधी के नेतृत्व पर फिर से सवाल उठने लगे हैं। हालिया चुनावी नतीजों के बाद तृणमूल कांग्रेस के नेता और सांसद कल्याण बनर्जी ने राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि कांग्रेस हरियाणा या महाराष्ट्र में इच्छानुसार नतीजे पाने में विफल रही है। इंडिया गठबंधन तो अभी भी है लेकिन अभी तक अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो सका है। यह कांग्रेस के लिए बड़ी विफलता है। भाजपा से लड़ने के लिए इंडिया गठबंधन का मजबूत होना जरूरी है और इसलिए एक मजबूत नेता की जरूरत है।

जाहिर सी बात है कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के तौर पर राहुल गांधी भले ही हों पर अभी तक इंडिया गठबंधन के सर्वमान्य नेता नही हैं। सर्वमान्य इसलिए नहीं क्योंकि राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर पहले भी कई बार सवाल उठ चुके हैं। विशेषकर तृणमूल कांग्रेस की तरफ से। बिना किसी ठोस मुद्दे पर बार—बार संसद ठप करने को लेकर भी तृणमूल कांग्रेस खुलकर सामने आ गई है। अदानी मुद्दे पर शीतकालीन सत्र में काकोली घोष दस्तीदार ने कहा कि कांग्रेस के एकतरफा फैसलों को मानने के लिए तृणमूल कांग्रेस बाध्य नहीं है। उनके बयान को कांग्रेस से अलग चलने के फैसले को लेकर भी जोड़ा जा रहा है। तृणमूल के बाकी नेता भी स्पष्ट बोल चुके हैं कि उनकी पार्टी भले ही भाजपा को हराने के लिए इंडिया गठबंधन का हिस्सा है लेकिन वह कांग्रेस की चुनावी सहयोगी पार्टी नहीं है।

बता दें कि तृणमूल कांग्रेस ने इंडिया गठबंधन में शामिल रहने के बावजूद भी पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के साथ साझेदारी कर चुनाव नहीं लड़ा था। कोलकाता में डॉक्टर के साथ हुए दुष्कर्म के बाद कांग्रेस की तरफ से दिए गए बयानों के चलते तृणमूल और कांग्रेस के बीच तल्खी साफ नजर आई थी। कांग्रेस के इस मामले पर बयान दिए जाने के बाद तृणमूल के पूर्व राज्यसभा सांसद कुणाल घोष ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे की भी मांग की थी। कुछ दिनों पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा बुलाई गई इंडिया ब्लॉक की बैठक में भी तृणमूल कांग्रेस शामिल नहीं हुई थी। तब तृणमूल ने बयान जारी किया था कि उसके लोग कोलकाता में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में व्यस्त थे। तब भी कल्याण बनर्जी ने कहा था कि ममता बनर्जी को इंडिया ब्लॉक का नेता बनाया जाना चाहिए।

महाराष्ट्र में सत्ताधारी गठबंधन ने अपना किला बचा लिया। ऐसा ही कुछ समय पहले हरियाणा विधानसभा चुनावों में हुआ था, जब भाजपा यहां पर सत्ता बचाने में ही नहीं बल्कि पहले से ज्यादा सीटें लाने में भी कामयाब रही थी। महाराष्ट्र में हर बार की तरह राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस का मुसलमान, किसान और दलित समीकरण के सहारे चुनावी नैया पार लगाने का सपना संजोए बैठी थी जो विफल रहा। कांग्रेस के मंसूबों पर महायुति ने महाराष्ट्र में पानी फेर दिया और पांच महीने पहले हुए लोकसभा चुनावों का बदला ले लिया। लोकसभा चुनाव में महायुति 17 सीट ही ले पाई थी महाविकास अघाड़ी 30 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। विधानसभा चुनावों में महायुति 235 सीटें जीतने में कामयाब रही और बाकियों को 49 पर समेट दिया। लोकसभा में वोट शेयर एक प्रतिशत कम हुआ तो विधानसभा में 14 प्रतिशत की बढ़त ले ली। जाहिर है जब ऐसे नतीजे आएंगे तो देश की दूसरी सबसे बड़ी और सबसे पुरानी पार्टी के नेतृत्वकर्ता और संसद में नेता विपक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व और काबिलियत पर सवाल तो उठेंगे ही।

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब से भाजपा की सरकार केंद्र में आई है तब से अभी तक लोकसभा चुनाव हों या फिर विधानसभा चुनाव, राहुल गांधी के नेतृत्व पर लगातार सवाल उठते रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों मानें तो वह पार्टी की आपसी गुटबंदी को थामने में भी नाकाम रहे हैं। हरियाणा विधानसभा चुनाव के चुनावी नतीजे आए भी नहीं थे कि उनके यहां कौन बनेगा मुख्यमंत्री के सवाल पर कांग्रेस नेताओं के बीच खींचतान शुरू हो गई थी। इससे पहले 2023 में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में तमाम दावे किए जा रहे थे कि तीनों राज्यों में कांग्रेस की ही सरकार बनेगी। सरकार बनना तो दूर राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जहां कांग्रेस की सरकार थी वहां भी कांग्रेस के हाथ से सत्ता चली गई। राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही खींचतान का भी कोई समाधान राहुल गांधी नहीं निकाल पाए थे। पूर्व में कई वरिष्ठ नेता भी राहुल गांधी बयानों और फैसलों पर सवाल उठाते रहे हैं। अब फिर से आवाजें उठ रही हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी को सबसे बड़ी चुनौती उनकी बहन प्रियंका गांधी से मिलने वाली है, क्योंकि अब वह भी वायनाड से चुनकर संसद में पहुंच चुकी हैं। कांग्रेसियों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो प्रियंका को कांग्रेस की कमान देने की कई बार वकालत कर चुका है। एक तरफ कांग्रेसियों का मौन अंतर्विरोध और दूसरी तरफ गठबंधन में शामिल दलों के नेताओं द्वारा स्पष्ट तौर पर कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल सीधे तौर पर राहुल की काबिलियत पर सवाल उठाना ही है। ऐसे में यह तो स्पष्ट है कि देर—सबेर इंडिया गठबंधन में फूट पड़ेगी ही। जाहिर इसका ठीकरा भी राहुल गांधी के सिर ही फूटेगा।