नई दिल्ली। देश में इन दिनों कर्मचारियों के काम के घंटों को लेकर नई बहस छिड़ी हुई है। दो दिन पहले एलएंडटी कंपनी के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन ने सप्ताह में 90 घंटे काम करने की बात कही थी। अब देश के एक और बड़े कारोबारी ने भी इस बारे में अपनी राय रखी है। कैपिटल माइंड के सीईओ दीपक शेनॉय ने कहा है कि वो अक्सर सप्ताह में 100 घंटे काम करते हैं लेकिन असल काम ज्यादातर दिन के 4 से 5 घंटों में ही होता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि काम के घंटे लागू करने की जरूरत नहीं है, बल्कि जो लोग काम के प्रति प्रेरित होंगे वो खुशी से काम करेंगे।
I’ve probably worked 100 hours a week for nearly all my working life, but most of that was as an entrepreneur. You don’t have to enforce working hours. People who are motivated will work happily. In any case most real work happens in 4-5 hours a day, but you don’t know when that…
— Deepak Shenoy (@deepakshenoy) January 10, 2025
दीपक शेनॉय ने सोशल मीडिया पोस्ट पर लिखा, हफ्ते में 100 घंटे काम में से अधिकांश काम मैंने एक कारोबारी के तौर पर किया है। मुझे अभी भी बैठकों को काम कहना मुश्किल लगता है, लेकिन मैं जिसे काम कहता हूं, उसमें उससे कहीं अधिक ऊर्जा लगती है। कामकाज के घंटों का तर्क मेरे लिए समझ से परे है। जब मैं खेलूंगा तो जमकर खेलूंगा। जब मैं काम करूंगा तो कड़ी मेहनत करूंगा। मेरा सुझाव है कि आप अपनी लय खोजें, और मुझे आशा है कि आपको इसमें सफलता मिलेगी।
Totally agree – it’s not the number of hours but the productive hours which count… else it is only to satisfy the ego of the bosses or just show off. there are only 3 reasons for a person to consistently sit late. 1. He doesn’t get the required info/data on time to do his part…
— Krish Murthy (@vcfacilitator) January 11, 2025
वहीं, सोशल मीडिया यूजर्स भी शेनॉय की इस पोस्ट पर पॉजिटिव प्रतिक्रिया दे रहे हैं। एक यूजर ने कमेंट में लिखा, पूरी तरह से सहमत हूँ-काम के घंटों नहीं बल्कि उत्पादका मायने रखती है अन्यथा यह केवल मालिकों के अहंकार को संतुष्ट करने या सिर्फ दिखावा करने के लिए है। किसी व्यक्ति के लगातार देर तक बैठने के केवल 3 कारण हैं। 1. उसे अपने हिस्से का काम करने के लिए आवश्यक जानकारी/डेटा समय पर नहीं मिलता है, 2. उस पर काम का बोझ है। ये 2 प्रबंधन मुद्दे हैं जिन्हें प्रबंधकों को संबोधित करना होगा। यदि इन्हें सुलझाया जाए तो तीसरा कारण है- साफ तौर पर अकुशलता। उसे बाहर निकालो।
I fully agree with you
I also believe in quality hours
Extra hours should never be enforced
Motivated workers always meet their targets and create productivity be it 48 hours or 90 hours.— Divakar Nagpal (@divakarnagpal) January 11, 2025
एक अन्य यूजर ने भी शेनॉय की बात से सहमति जताते हुए लिखा, मैं भी गुणवत्तापूर्ण घंटों में विश्वास करता हूं। अतिरिक्त घंटे कभी भी लागू नहीं किये जाने चाहिए। प्रेरित कर्मचारी हमेशा अपने लक्ष्य को पूरा करते हैं और उत्पादकता को बढ़ाते हैं, चाहे वह 48 घंटे हो या 90 घंटे।