नई दिल्ली। भारत और मॉरीशस के बीच दोहरा कराधान बचाव संधि यानी डीटीएए संबंधी एक समझौता हुआ है। डीटीएए में संशोधन के लिए नियमों और दिशानिर्देशों से जुड़ा ये समझौता है। इस समझौते के बाद तय होगा कि कोई विदेशी निवेशक संधि के लाभ का दावा करने का पात्र है या नहीं।
भारत और मॉरीशस के बीच डीटीएए संबंधी समझौता 7 मार्च को हुआ। इसकी जानकारी अब दी गई है। डीटीएए संबंधी समझौते में भारत और मॉरीशस ने पीपीटी यानी प्रिंसिपल पर्पज टेस्ट की व्यवस्था की है। पीपीटी की व्यवस्था से दोहरे कराधान संबंधी संधि का फायदा सिर्फ वास्तविक उद्देश्य वाले लेनदेन को मिलेगा। इसके जरिए कराधान बचाव को कम किया जा सकेगा। इस बीच, इनकम टैक्स विभाग ने कहा है कि भारत और मॉरीशस के बीच दोहरा कराधान बचाव संधि में संशोधन के बाद नियमों और दिशानिर्देशों को अभी मंजूरी देने के अलावा अधिसूचित करना भी बाकी है। भारत और मॉरीशस के बीच दोहरा कराधान बचाव संधि में जो संशोधन हुआ है, उसका मकसद टैक्सेशन और नॉन टैक्सेशन को कम करने के मौकों को नियंत्रित करने के लिए भी हो सकता है।
चर्चा इसकी है कि भारत और मॉरीशस ने जिस संशोधन संबंधी समझौते पर दस्तखत किए हैं, उसके तहत टैक्स संधि का फायदा उन टैक्सपेयर्स को नहीं मिलेगा, जो मॉरीशस से अपना निवेश लेकर भारत आएंगे। इस समझौते के तहत पीपीटी शुरू होने से टैक्स न देने की कोशिश कम की जाएगी। इस तरह भारत और मॉरीशस के बीच ये समझौता अहम माना जा रहा है। इस समझौते के लागू होने के बाद अगर कोई निवेश बेचा जाता है, तो उससे होने वाला कैपिटल गेंस टैक्स ही प्रभावित होगा। बता दें कि 2016 तक भारत में निवेश के लिए मॉरीशस खास देश रहा है। भारत और मॉरीशस ने 2016 में संशोधित टैक्स संधि की थी। इस संधि के तहत मॉरीशस के रास्ते शेयरों में लेनदेन पर भारत को कैपिटल गेंस टैक्स लगाने का अधिकार मिला था।