नई दिल्ली। साइना के बाद परिणीति चोपड़ा (Parineeti Chopra) की एक और फिल्म आई है जिसका नाम है कोड नेम : तिरंगा (Code Name: Tiranga)। जिस हिसाब से इस फिल्म का नाम है उस हिसाब से न ही तिरंगे का जिक्र है और न किसी कोड को मुख्य केंद्र में रखकर फिल्म को बनाया गया है। फिल्म में परिणीति चोपड़ा के साथ, पंजाब के जाने माने एक्टर, सिंगर हार्डी संधू (Harrdy Sandhu) ने भी काम किया है। लेकिन स्क्रीन पर ज्यादातर मौजूदगी परिणीति चोपड़ा की रही है। परिणीति के साथ एक और एक्टर फिल्म में ज्यादा दिखे हैं जिनका नाम है रजित कपूर (Rajit Kapur)। इसके अलावा फिल्म में शरद केलकर (Sharad Kelkar) को ठीक-ठाक वक़्त, स्क्रीन पर मिला है। दिब्येंदु भट्टाचार्या (Dibyendu Bhattacharya) भी फिल्म में कभी कभी के तौर पर दिख जाते हैं। इस फिल्म को की कहानी और पटकथा को रिभु दास गुप्ता ने लिखा है। रिभु ने ही फिल्म को डायरेक्ट भी किया है। भूषण कुमार ने फिल्म को प्रोड्यूस किया है। कोड नेम तिरंगा इस फिल्म का नाम है और फिल्म के नाम से ही ऐसा लगता है कि ये कोई देशभक्ति से जुड़ी हुई फिल्म है लेकिन अब इस फिल्म में देशभक्ति का तड़का कितना है और तड़का लगने पर ये फिल्म स्वादिष्ट बनी है या स्वादहीन। यहां यही जानने का प्रयास करेंगे।
कहानी क्या है
अगर फिल्म की कहानी की बात करें तो उसके सिर और पैर नहीं हैं। हां कहानी का धड़ है। अब आप कंफ्यूस हो गए होंगे कि सिर पैर नहीं हैं लेकिन धड़ है। आखिर कहना क्या चाहते हो। इस कहानी के मेकर्स से भी पूछने का दिल करता है कि आखिर कहना क्या चाहते हो ? क्योंकि फिल्म की कहानी से सिर्फ इतना पता चलता है कि लड़की यानी दुर्गा जिसका किरदार परिणीति ने निभाया है। दुर्गा भारत की जासूस है और वो जख्मी हालत में पहाड़ों के बीच में किसी रेगिस्तान को पार कर रही है। वो अपनी कहानी सुनाती है जिसमें वो अफगानिस्तान और तुर्की में जाकर बहुत सारे आतंकियों को मारती है। आतंकियों से जंग के वक़्त वो अपने उस ख़ास आदमी को भी खो देती है जिससे वो प्यार करती है, किसे खोती है ये आप फिल्म देखकर ही जाने तो बेहतर है। वो जंग में आंतकियों के साथ आतंकियों के सरगना यानी ओमेर को भी खत्म कर देती है। ओमेर का किरदार शरद केलकर ने निभाया है। इसी कहानी में वो अपनी टीम के साथ ये भी खुलासा कर देती है कि कैसे उसी की टीम के हेड, आतंकियों के साथ मिलकर काम करते थे। फिल्म ओमर नाम के एक आतंकी को पकड़ने से शुरू होती है और उसकी जान लेकर खत्म होती है। अब संक्षेप में कहूं तो एक आतंकी को पकड़ने की कहानी है जो पहले तो देश का मसला था लेकिन कहानी के बढ़ते बढ़ते व्यक्तिगत मसला बन जाता है।
कैसी है कहानी
फिल्म की कहानी दोहराई हुई लगती है। फिल्म के पहले ही सीन में जब आप दुर्गा को देखते हैं, उनका लुक आपको प्रभावित नहीं करता है। हां एक बात आपको प्रभावित करती है और वो है एक्शन। दुर्गा ने फिल्म में जो भी एक्शन किये हैं चाहे वो फाइटिंग सीन हों, गन सीन हों, या फिर गाड़ी/बाइक के सीन हों ये सभी ध्यान बटोरते हैं। जितनी भी जगह एक्शन सीन होते हैं आप वहां पर फिल्म के एक्शन को आप एकटक होते देखते हो। एक्शन सीन में ये खूबी होती है कि वो अगर बेकार से भी बेकार हों फिर भी लोग ध्यान देकर देखते हैं। कहानी में फिल्म एक जगह और थ्रिल का अनुभव देती है जहां दुर्गा, ओमर के किले में उर्दू टीचर के रूप में जाती है। वो किला चारो और से आतंकवादियों की सेक्युरिटी से लैश है। कैसे भी करके दुर्गा उन सिक्योरिटी से बचती हुई निकलती है लेकिन अपने मिशन के बिलकुल नज़दीक वो फंस जाती है वो मोमेंट आपको कहानी से एकदम जोड़ लेता है और उस दौरान का एक्शन देखकर आपकी आंख खुली रह जाती है।
फिल्म में कुछ जगहों पर दिखाया है कि जब दुर्गा गोली चलाती है उस वक़्त एक शंख की ध्वनि बजती है जो दुर्गा की शक्ति और विजय का प्रतीक बनती है। परिणीति का एक्शन अच्छा है। दिब्येंदु जब भी स्क्रीन पर दिखें हैं उन्होंने अपना काम ईमानदारी से कर दिया है।
अच्छाइयां हो गयीं कुछ खराबियां की चर्चा करते हैं। मैंने आपको पहले कहा कहानी से सिर और पैर गायब है। सीधे एक्शन पर कहानी उतारू हो जाती है एक्शन की वजह से ध्यान तो खींचती है लेकिन बेहतरीन कहानी देखने को नहीं मिलती है। कहानी में अगर ढूंढेगे तो केवल एक और कुछ ही संवाद ढंग का मिलेंगे। दुर्गा के एक्शन सीन अच्छे हैं पर एक्टिंग उतना असर नहीं छोड़ती है। हार्डी संधू जैसे कलाकार को लेने के बाद और परिणीति और उनके बीच लव एंगल बनाने के बाद भी फिल्म से वो रोमांस वो प्यार की सुगंध नहीं मिलती है और न ही फिल्म उतना देशभक्ति से भर पाती है।
ऐसा लगता है एक मिशन है और उस मिशन के अंदर और मिशन हैं। बस उसी को कैसे भी करके पेपर पर सुलझाना है। पेपर पर वो सुलझ जाता है। इसलिए इस फिल्म की कहानी यथार्थवाद से दूर दिखाई देती है क्योंकि जो कुछ आसानी से पेपर हो रहा है वो असल में आसान नहीं है। परिणीति सब कुछ आसानी से कर लेती हैं पर असल में सबकुछ आसानी से नहीं होता है। फिल्म के एक्शन सीन अच्छे से शूट हुए हैं लेकिन क्लाइमैक्स सबकुछ खराब कर देता है।
क्लाईमैक्स के अंत में गेमिंग सीक्वेंस रखकर फिल्म को बच्चों वाली फिल्म बना दिया है। इसके अलावा ओमेर और दुर्गा के बीच क्लाइमैक्स के फाइटिंग सीन को भी बहुत जल्दी खत्म कर दिया है। ओवरआल अगर आप कुछ देर बैठकर टाइमपास के लिए कोई हलकी फुलकी एक्शन मूवी देखना चाहते हैं देख सकते हैं। फिल्म में याद रखने वाला और कमाल का, कुछ नहीं है। कहानी भी बहुत सादी और घिसी पिटी है। कहानी के स्तर पर अगर तौलें तो फिल्म कई जगह कहानी के मामले में वजनहीन दिखाई देती है। फिल्म से जुड़ा एक संवाद आपके हवाले है –
“दुर्गा से अपनी हिफाजत तो पूरा हिंदुस्तान मांगता है तुम भी तो दुर्गा हो”