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Double XL Review: डबल एक्स एल फिल्म है “ऊंची दुकान फीका पकवान”, कहानी का विषय गंभीर है लेकिन कहानी विषय से कोसों दूर

Double XL Review: डबल एक्स एल फिल्म है “ऊंची दुकान फीका पकवान”, कहानी का विषय गंभीर है लेकिन कहानी विषय से कोसों दूर इस फिल्म की समीक्षा शुरू करते हैं और फिल्म की कहानी और फिल्म की बातों पर बिंदुवार बात करते हैं।

नई दिल्ली। इस शुक्रवार को बॉलीवुड (Bollywood) की दबंग गर्ल सोनाक्षी सिन्हा (Sonakshi Sinha) और हुमा कुरैशी (Huma Qureshi) की फिल्म डबल एक्स एल (Double XL) सिनेमाघर में रिलीज़ हो रही है। ऐसे में आपके दिल में ये प्रश्न होगा कि आपको ये फिल्म देखनी चाहिए या नहीं तो हम आपके लिए यहां पर डबल एक्स एल फिल्म की समीक्षा (Double XL Movie Review) करेंगे। डबल एक्स एल फिल्म की कहानी और उसके बारे में, बिंदुवार बताएंगे। इस समीक्षा में आपको फिल्म के बारे में पता चलेगा और आपको अंदाज़ा होगा की आखिर, आपको ये फिल्म सिनेमाघर में देखनी चाहिए या नहीं। खैर इस फिल्म को 4 नवंबर को रिलीज़ किया जाएगा। डबल एक्स एल फिल्म को सतराम रमानी (Satram Ramani) ने निर्देशित किया है। फिल्म की पटकथा को मुदस्सर अज़ीज़ (Muassar Aziz) और साशा सिंह (Sasha Singh) ने लिखा है। सोनाक्षी सिन्हा और हुमा कुरैशी के साथ इस फिल्म में ज़हीर इक़बाल, डॉली सिंह,महत राघवेंद्र , सोभा खोटे, और कंवलजीत सिंह जी ने काम किया है। तो चलिए इस फिल्म की समीक्षा शुरू करते हैं और फिल्म की कहानी और फिल्म की बातों पर बिंदुवार बात करते हैं।

किरदारों की भूमिका

सोनाक्षी सिन्हा इस फिल्म में फैशन डिज़ाइनर की भूमिका में हैं जिन्होंने सायरा खन्ना का किरदार निभाया है। हुमा कुरैशी फिल्म में राजश्री त्रिवेदी का किरदार निभा रही हैं जिन्होंने मास कम्युनिकेशन की पढाई की है और एक स्पोर्ट प्रेसेंटर बनना चाहती हैं। अलका कौशल जी ने फिल्म में हुमा की मां का और कंवलजीत सिंह ने हुमा के पिता का किरदार निभाया है। इसके अलावा सोभा खोटे ने फिल्म में हुमा की दादी का किरदार निभाया है। महत राघवेंद्र फिल्म में एक सिनेमाटोग्राफर हैं जो श्रीकांत श्रीवर्धन के किरदार में हैं। इसके अलावा ज़हीर इक़बाल, लंदन में लाइन प्रोड्यूसर की भूमिका निभा रहे हैं फिल्म में उनका नाम ज़ोरावर है।

क्या है कहानी

राजश्री, उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में रहती है जहां रहते हुए उन्होंने कानपुर यूनिवर्सिटी से मास कम्युनिकेशन की पढाई पूरी की है। वो सोशल मीडिया पर स्पोर्ट बीट की वीडियो बनाने का काम करती हैं और किसी बड़े से चैनल में ब्रेक ढूंढ रही हैं। लेकिन उनके सपनों के बीच में जहां जमाने का कम्पटीशन है वहीं उनकी एक मां भी हैं जो हमेशा अपनी बेटी की शादी के लिए चिंतित रहती हैं। राजश्री की मां को लगता है, क्योंकि राजश्री का वजन सामान्य लोगों से कुछ ज्यादा है इसलिए जैसे-जैसे राजश्री की उम्र बढ़ेगी लोग उससे शादी नहीं करेंगे।

दूसरी ओर सायरा एक फैशन डिज़ाइनर है जिसका वजन भी सामान्य व्यक्तियों से कुछ अधिक है और वो अपने शरीर के कारण लोगों से ट्रोल होती रहती है। उसका बॉयफ्रेंड भी उसको धोखा दे देता है।

राजश्री अपने सपनों को पूरा करने के लिए सभी बंधनों को तोड़कर नौकरी की तलाश में दिल्ली आती हैं। लेकिन वहां राजश्री को उनके शारीरिक वजन के कारण नौकरी नहीं मिलती है और उसे भी निराशा हाथ लगती है। राजश्री और सायरा दोनों के पास दुःख है आंसू हैं और दोनों की मुलाक़ात एक वाशरूम में होती है। जहां दोनों एक-दूसरे से अपना दुःख साझा करती हैं और ये तय करती हैं कि वो अपनी शारीरिक मुश्किलों को दरकिनार करते हुए, वो दोनों अपने सपने को साकार करेंगी। उनके सपनों को साकार करने के लिए सायरा और राजश्री का साथ देते हैं श्रीकांत श्रीवर्धन और जोरावर। अब क्या सायरा और राजश्री अपने सपनों को साकार कर पाएंगी, अगर कर पाएंगी तो कैसे ? इसी जर्नी/यात्रा की कहानी है फिल्म – डबल एक्स एल।

कैसी है कहानी

इस फिल्म की कहानी अपने शीर्षक और विषय के हिसाब से, न्याय नहीं कर पाती है। फिल्म की पटकथा काफी कमजोर है। इसके अलावा कलाकारों की कलाकारी भी उतना असर डाल, नहीं पाती है। जितना गंभीर ये विषय है, कहानी उस विषय से हटकर, “सपनों को साकार करने” जैसे विषय पर केंद्रित हो जाती है। लेकिन “सपनों को साकार करने” वाले विषय पर भी कहानी न्याय नहीं कर पाती है। सपनों को साकार करने के लिए काफी लोगों को परिश्रम करना पड़ता है और लोगों ने परिश्रम किया है, लेकिन ये फिल्म वो बात भी बेहद हल्के तरीके से कहकर चली जाती है। अब हम बिंदुवार फिल्म के बारे में बताएंगे, जिससे आप तय कर सकें कि आपको ये फिल्म देखने जाना चाहिए या फिर नहीं |

  • फिल्म के संवाद शुरुआत से ही हल्के हैं। राजश्री की मां के संवाद भले जुड़ाव महसूस करते हों। लेकिन ऐसे किरदार और संवाद आपको कई फिल्मों में देखे हुए लगते हैं। संवाद के माध्यम से कुछ जगह पर आपको हंसी आती है पर बहुत हल्की सी। आप ठहाका मारकर हंसते भी नहीं हैं।
  • फिल्म शुरुआत में धीरे-धीरे बॉडी शेमिंग के मुद्दे को छूने का प्रयास करती है, लेकिन छू कर फिर वापस  लौट जाती है।
  • एक जगह राजश्री और उनकी मां का भावनात्मक सीन भी है, लेकिन वो सिर्फ कुछ देर के लिए असर करता है और फिर उसमें कॉमेडी जोड़कर उस सीन को, खराब कर दिया जाता है।
  • कई फिल्मों की तरह इसमें भी दिखाया है कि कैसे पिता आजकल के ख्याल के हैं और मां पुराने ख्यालों वाली, रूढ़िवादी। ये सब कई फिल्मों में देख चुके हैं इसलिए इसमें कुछ नया/ताज़ा देखने को नहीं मिलता है।     
  • कई जगह पर भावनाएं जैसे- गुस्सा, रोना, हंसना ये सब नकली लगते हैं और स्क्रीन से आप पर असर नहीं छोड़ पाते हैं। जैसे दो से तीन जगह पर सायरा फिल्म में रोती है और उस समय सायरा की कलाकारी बिल्कुल नकली सी लगती है।
  • हां फिल्म में कपिल देव और शिखर धवन की एंट्री काफी अच्छी है।
  • इसके अलावा एक्टिंग के मामले में एक बार फिर साउथ बाजी मारता है और श्रीकांत का काम, प्रभाव डालता है। हालांकि कुछ जगह पर उनका भी काम अच्छा नहीं है।
  • फिल्म कहीं कहीं पर कुछ देर के लिए अच्छी होती है, आपसे जुड़ती है। लेकिन तभी एक पल में आपसे दूर चली जाती है। कई ऐसे सीन जहां आप जुड़ते हो लेकिन उसी सीन में कुछ ऐसा होता है कि आपका ध्यान तुरंत हट जाता है।
  • इस फिल्म को देखने पर उन लड़कियों का दर्द तो बिल्कुल ज़ाहिर नहीं होता है जिनका वजन कुछ ज्यादा है। जिन्हें वजन ज्यादा होने के कारण, तमाम मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। लेकिन उन लड़कियों की कहानी जरूर कहती है जिन्हे सब कुछ थाली में मिलता है पर फिर भी वो रोते हैं कि उनके जीवन में परिश्रम बहुत है।
  • एक जगह भोजन को “साला” कहकर सम्बोधित किया गया है। भले ही ये दृश्य मजाक में फिल्माया गया हो। लेकिन यहां लेखक को लिखते वक़्त ध्यान रखना चाहिए कि वो क्या लिख रहे हैं | क्योंकि वो व्यक्तिगत दुनिया में नहीं हैं, एक वैश्विक दुनिया में हैं।
  • फिल्म में रोने और हंसने के संवाद और दृश्य हैं लेकिन इन संवाद और दृश्य में सिर्फ सायरा और राजश्री ही हंसती और रोती हैं। दर्शको पर उसका कोई असर नहीं पड़ता है।
  • जिस तरह की एक्टिंग ज़ोरावर ने की है, अगर ऐसे ही आगे भी उन्होंने किया तो उनका भविष्य काफी कमजोर रहने वाला है।
  • फिल्म में मजा, इमोशन, कॉमेडी और बढ़िया एक्टिंग, इनमें से कुछ भी नहीं है।
  • फिल्म ज्यादा वजन जैसे गंभीर विषय को छूती नहीं है बल्कि ये जरूर बताती है कि जब आपका वजन ज्यादा हो तब आपको कौन से कपड़े पहनने चाहिए। इस कारण से ये फिल्म, एक फैशन शो की कहानी लगने लगती है।
  • राजश्री और सायरा का बड़े से बड़ा सपना आसानी से पूरा हो जाता है, जो यथार्थ से परे है।
  • फिल्म में जो कुछ भी हो रहा होता है, वो मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग के परिवार के लोगों को जोड़ने में असफल होता है। बहुत आसानी से बड़ी से बड़ी फिल्म में हो जाती हैं। इसके अलावा एक वक़्त के बाद फिल्म काफी बड़ी भी लगने लगती है।

“जब भी कोई फिल्म बनती है तो वो किसी विषय को कहने का प्रयास करती है, उससे लोगों को जोड़ती है। विषय की भावना से लोगों को जोड़ती है। जिसके बाद कहानी दर्शकों को, साथ लेकर चलती है। कहानी के साथ-साथ दर्शक सुख-दुःख सभी भावनाओं को महसूस करते हैं। अंत में जब कहानी जीतती है दर्शक को लगता है वो जीत गए हैं। लेकिन इस फिल्म को देखने के बाद दर्शकों को लगेगा, कि वो हार गए हैं क्योंकि कहानी कहीं भी उन्हें खुद से जोड़ नहीं पाती है।”

जाते जाते फिल्म के चंद संवाद आपके हवाले करके जाते हैं –

“जिसको जो लाइफ मिलती है जीनी पड़ती है हमें जो मिली है जी रहे हैं।”
“मोटे हैं तो हैं तुम्हारे घर का थोड़ी न खाते हैं”
“वो जो आप बनना चाहते हैं उसके लिए थोड़ा वजन घटा लीजिए क्योंकि दुनिया भी बेवकूफ है”