newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Gandhi Godse – Ek Yudh Movie Review: गांधी गोड़से – एक युद्ध मूवी रिव्यू में जानिए कि जाने-माने निर्देशक राजकुमार संतोषी का इस फिल्म को बनाने के पीछे क्या प्रयोजन हो सकता है

Gandhi Godse – Ek Yudh Movie Review: आज 26 जनवरी के अहम मौके पर राजकुमार संतोषी की फिल्म गांधी गोड़से एक युद्ध रिलीज़ हुई है। यहां हम इस फिल्म की समीक्षा करेंगे और आपको बताएंगे कि आखिर जाने-माने दिग्गज निर्देशक राजकुमार संतोषी की कलम में अभी भी वही स्याही है या फिर उनके कलम की स्याही हल्की हो गई है।

नई दिल्ली। राजकुमार संतोषी की फिल्म “गांधी गोड़से एक-युद्ध” सिनेमाघर में रिलीज़ हो गई है। शाहरुख खान की पठान फिल्म के आगे ये फिल्म कहीं भी दिख नहीं रही है। मुश्किल से कुछ ही शो फिल्म को लेकर लगे हैं, वहीं कुछ शो में भी दर्शक की संख्या औसत से भी नीचे है। राजकुमार संतोषी की फिल्म “गांधी गोड़से एक-युद्ध” के बारे में बहुत कम लोगों को ही जानकारी है। मुश्किल से सिनेमाप्रेमियों तक ही शायद ये फिल्म पहुंच पाई है। राजकुमार संतोषी ने भी इस फिल्म का प्रमोशन सिर्फ सिनेमा के बाजार के कहे जाने वाले मुंबई तक सीमित रखी है। आज 26 जनवरी के अहम मौके पर राजकुमार संतोषी की फिल्म गांधी गोड़से एक युद्ध रिलीज़ हुई है। यहां हम इस फिल्म की समीक्षा करेंगे और आपको बताएंगे कि आखिर जाने-माने दिग्गज निर्देशक राजकुमार संतोषी की कलम में अभी भी वही स्याही है या फिर उनके कलम की स्याही हल्की हो गई है।

इस फिल्म की समीक्षा अगर एक शब्द में करूं और दर्शकों से लिया गया मंतव्य बताऊं, तो इस फिल्म ने और राजकुमार संतोषी ने, दर्शकों के साथ न्याय नहीं किया है। इस फिल्म को देखने के बाद जब मैंने दर्शकों से फिल्म के बारे में पूछा तो एक ने इस फिल्म को “कॉमेडियन-फिल्म” बताया है। वहीं एक दर्शक ने इस फिल्म को पूरी तरह से नकार दिया और एक ने कहा कि ये फिल्म में वो नहीं है जैसा वो सोचकर आए थे या फिर जैसा फिल्म के शीर्षक ने दिखाया है।

इस फिल्म के रिलीज़ से पहले राजकुमार संतोषी ने मुंबई में हुई कुछ प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये कहा था कि वो इस फिल्म के माध्यम से मोहनदास करमचंद गांधी और नाथूराम गोड़से दोनों के विचारों को जनता के सामने रखना चाहते हैं और फिर जनता तय करेगी कि दोनों में से कौन सही है और कौन गलत। लेकिन फिल्म देखने पर राजकुमार संतोषी द्वारा की गईं सभी बातें झूठी साबित होती हैं क्योंकि फिल्म में कहीं पर भी दोनों के विचार को स्वतंत्र रूप से सम्मलिति नहीं किया गया है।

हालांकि गांधी जी के विचारों को व्यवस्थित ढंग से दिखाने की कोशिश जरूर की गई है। गांधी जी पर जो पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपये देने के आरोप लगते हैं। गांधी जी पर जो हिन्दू-विरोधी होने के आरोप लगते हैं। गांधी जी पर जो देश के बंटवारे में अहम योगदान होने वाले जैसे आरोप लगते हैं। इन सभी पर बात की गई है। पकिस्तान को 55 करोड़ रूपये देने वाली बात पर गांधी जी ने फिल्म में सफाई भी दी है। लेकिन बाकी आरोपों को कहीं से, कहीं और घुमा दिया गया है या फिर उत्तर नहीं दिया गया है।

गांधी जी संत थे, महात्मा थे, सब जानते हैं। जनता कुछ नया कुछ विशिष्ट देखना चाहती है। लेकिन राजकुमार संतोषी जनता को वही दिखाने का प्रयास कर रहे हैं जिसके बारे में दर्शकों को सब पता है। ऐसे में दर्शक को इस फिल्म से कुछ नया जानने को नहीं मिलता है। अगर दर्शक सिर्फ गांधी जी को ध्यान में रखते हुए भी ये फिल्म देखने के लिए जाएं, तब भी उन्हें इस फिल्म से कुछ भी मूल्यवान/वैचारिक और विमर्श करने हेतु बातें प्राप्त नहीं होती है। अमूमन होता ये है कि जब भी कोई ऐतिहासिक, कंट्रोवर्सियल कंटेंट रिलीज़ होता है तो वो विमर्श का विषय बन जाता है, लेकिन इस फिल्म में कुछ ऐसा खास नहीं है।

अचरज की बात ये है कि ये फिल्म जाने-माने लेखक असग़र वजाहत के नाटक से प्रेरित है और कहीं न कहीं असग़र वजाहत भी इस फिल्म से जुड़े हुए हैं लेकिन फिर भी इस फिल्म के स्क्रीनप्ले और संवाद शैली में विशिष्ट गुण देखने को नहीं मिलते हैं। फिल्म की पटकथा बहुत खराब है। शुरू में फिल्म कुछ देर के लिए अच्छी होती है लेकिन अंत तक आते-आते चौपट हो जाती है। हम इंतज़ार कर रहे होते हैं कि कब फिल्म अपने मुख्य प्लॉट पर आएगी लेकिन इंतज़ार करते-करते फिल्म खत्म हो जाती है और फिल्म ऐसा कुछ कह ही नहीं पाती है जैसा इसने वादा किया है।

फिल्म में गांधी का किरदार जाने माने रंगकर्मी दीपक अंतानी ने किया है। जिन्होंने अपना काम बखूबी निभाया है और उनके द्वारा निभाए गए किरदार की स्मृति अभी भी दिमाग में बनी हुई है। वहीं नाथूराम गोड़से के किरदार की बात करें तो उसे बेहद गुस्सैल, कट्टर, ईर्ष्यालु और जिद्दी बनाया गया है जिनका काम ठीक-ठाक कहा जा सकता है। नाथूराम गोड़से के किरदार को चिन्मय मंडलेकर ने निभाया है। इसके अलावा जवाहर लाल नेहरू के रूप में पवन चोपड़ा ने भी अपना काम बखूबी किया है। घनश्याम श्रीवास्तव ने सरदार वल्ल्भभाई पटेल का किरदार अच्छा निभाया है। लेकिन जवाहर और सरदार दोनों की ही फिल्म में उपस्थिति कम है।

फिल्म में गांधी और गोड़से के बाद जिन्हें सबसे अधिक समय स्क्रीन पर मिला है वो हैं राजकुमार संतोषी की बेटी “तनीषा संतोषी”। तनीषा संतोषी ने फिल्म में सुषमा का किरदार निभाया है जो कि गांधी जी के साथ रहकर देशसेवा करना चाहती है। राजकुमार संतोषी ने गांधी और गोड़से के बीच होने वाली फिल्म में तनीषा को सिर्फ इसलिए डाला है जिससे कि वो अपनी बेटी को लांच कर सकें। ऐसे में ये फिल्म भी इस उद्देश्य से बनाई हुई लगती है और लगता है कि राजकुमार संतोषी अपने विषय से विमुख होकर गांधी और गोड़से की बात करना भूल गए और अपनी बेटी को लांच करने में ज्यादा व्यस्त हो गए।

फिल्म की पटकथा साधारण है। शुरुआत में कुछ संवाद अच्छे हैं। लेकिन अंत तक आते-आते पटकथा बिखरी हुई लगती है। पटकथा गांधी के आदर्शों और उन्होंने जो देश के लिए किया, उसे कुछ हद तक दर्शक के सामने रखती है लेकिन गोड़से के विचार और गोड़से ने गांधी को क्यों मारा ये बताने में असफल हो जाती है। जिस हिसाब से फिल्म की पटकथा ट्रीटमेंट है वो उलझा हुआ है अंत तक अपने मुख्य विषय पर नहीं आता है और फिल्म खत्म हो जाती है। ए आर रेहमान का संगीतबद्ध किया एक गाना फिल्म में है जिसे दर्शक ने कई बार पहले भी सुन रखा है। “वैष्णव जन”

ओवरआल फिल्म में एक्टिंग ठीक है फिल्म की कहानी और पटकथा बिल्कुल खराब है। जब मैं खराब लिख रहा हूं तो इसका मतलब ये है कि मैं इस कहानी से बेहद नाराज़ हूं क्योंकि ये फिल्म दर्शकों का पैसा और समय दोनों बर्बाद करती है। हालांकि फिल्म शुरुआत में अच्छी दिखती है और आजादी के बदसूरत और खूबसूरत चेहरे को दर्शकों से रूबरू कराती है। लेकिन वो भी बेहद सूक्ष्म समय के लिए। फिल्म गांधी के आमरण अनसन का दृश्य दिखाकर आपको कुछ समय के लिए इमोशनल भी करती है लेकिन ये सब शुरुआत के सिर्फ 20 मिनट में होता है। इंटरवल के बाद फिल्म पूरी तरह से बिखर जाती है हालांकि इंटरवल के पहले भी फिल्म में कुछ खास नहीं रहता है। बाकी अगर आप ये सोचते हैं कि पठान को छोड़कर आप इस फिल्म को देखने जाएं क्योंकि इसमें कुछ बुद्धिजीवी वाली बात होगी तो आपको बता दें आप नादानी कर रहे हैं। ऐसा कुछ नहीं है। अगर आप गोड़से के पक्ष को जानना चाहते हैं तो आप यूट्यूब पर डायरेक्टर अशोक त्यागी की फिल्म व्हाई आई किल्ड गांधी देख सकते हैं जिसे उत्कृष्ट तरीके से बनाया गया है। जिसका लिंक भी मैं ऊपर देख रहा हूं।