Ponniyin Selvan Review: पोंनियिन सेलवन 1 फिल्म कैसी है ? क्या सच में इस फिल्म में हिन्दू साम्राज्य के चोल वंश की वीरता को दिखाया गया है

Ponniyin Selvan Review: पोंनियिन सेलवन 1 फिल्म कैसी है ? क्या सच में इस फिल्म में हिन्दू साम्राज्य के चोल वंश की वीरता को दिखाया गया है फिल्म में संस्कृति और कला की झलक देखने को मिलती है। यहां हम इस फिल्म की समीक्षा करेंगे और आपको बताएंगे कि आखिर आपको ये फिल्म देखनी चाहिए या नहीं और अगर देखनी भी चाहिए तो क्यों ?

Avatar Written by: October 1, 2022 1:19 am

नई दिल्ली। पोंनियिन सेलवन (Ponniyin Selvan -1) रिलीज़ हो चुकी है और दर्शकों ने इस फिल्म को सिर आंखो पर बिठा लिया है। इस फिल्म में जाने माने कलाकार विक्रम (Vikram), ऐस्वर्या रॉय बच्चन (Aishwarya Roy Bachchan), कार्ति (Karthi), जयम रवि (Jayam Ravi), तृषा (Trisha) और प्रकाश राज (Prakash Raj) जैसे अन्य कलाकार मुख्य भूमिका में हैं। जितनी निपुण और दक्ष कलाकारों की सूची है उससे कई गुना ज्यादा निपुण इस फिल्म का निर्देशक है। इस फिल्म के निर्देशक का नाम है मणिरत्नम (Mani Ratnam)। सिनेमा जगत में मणिरत्नम एक अलग ही पहचान रखते हैं। हर जगह उनकी फिल्में रोजा, रावण और दिल से आदि फिल्मों की तारीफ होती रहती है। इस बार भी वो एक तारीफ के काबिल फिल्म लेकर आए हैं जिसका नाम है पीएस – 1 यानी पोंनियिन सेलवन। पोंनियिन सेलवन 1 (PS1) का अर्थ है कावेरी का बेटा। जो भी चोल वंश के इतिहास से परिचित होगा वो समझ सकेगा कि आखिर क्यों इस फिल्म का नाम पोंनियिन सेलवन है। ये फिल्म चोल वंश के इतिहास पर केंद्रित है। चोल राजाओं की वीरता और शौर्यता पर केंद्रित है। फिल्म में संस्कृति और कला की झलक देखने को मिलती है। यहां हम इस फिल्म की समीक्षा (Ponniyin Selvan Review In Hindi) करेंगे और आपको बताएंगे कि आखिर आपको ये फिल्म देखनी चाहिए या नहीं और अगर देखनी भी चाहिए तो क्यों ?

कहानी क्या है

पहले इस फिल्म की कहानी के बारे में बता देते हैं वैसे कहा तो जाता है कि एक समीक्षक को फिल्म की कहानी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बताना चाहिए। इसीलिए मैं उस दायित्व को ध्यान में रखते हुए उतना ही बताऊंगा जितना मेरे अधिकार में है। ये फिल्म चोल वंश के साम्राज्य की कहानी कहती है। आज से कई हज़ार पहले चोल साम्राज्य था। एक ऐसा हिन्दू साम्राज्य जिसने करीब 1000 वर्ष तक शासन किया। जिसने अपनी आर्मी, कला, संस्कृति, वाणिज्य बनाया। जिसने अब तक का सबसे पुराना विशाल मंदिर बनाया। जिसने भारत में ही नहीं अपितु बाहर के देशों में हिंदुत्व और बौद्ध धर्म को मजबूत किया।

फिल्म की कहानी एक उपन्यास पर आधारित है। इस उपन्यास का नाम है पोंनियिन सेलवन। जिसे तमिल भाषा में लिखा गया है। पांच भागों और करीब 2000 पन्नों से अधिक में लिखा गया उपन्यास आज भी बेस्टसेलर की श्रेणी में आता है। आपको बता दें चोल वंश के इतिहास के बहुत से पन्ने हमारी लाइब्रेरी की किताबों में, नहीं हैं। ऐसे में जो कहानी कही जा रही है वो उपन्यास को केंद्र में रखकर कही जा रही है। जब एक चारो ओर फैला तरक्की करता हुआ साम्राज्य होता है, तो उसके भीतर और बाहर दोनों ओर दुश्मन होते हैं। इस कहानी में भी वैसा है एक फलते-फूलते साम्राज्य पर कई दुश्मन नज़र टिकाए बैठे हैं और सिंघासन को हथिया लेना चाहते हैं। आदित्य करिकलन जो की चोल वंश के महान शासकों में से एक हैं उन्हें इस बात की भनक लग जाती है और फिर वो इस बात की पुष्टि के लिए अपने वीर सेनानी वंदीदेवन को सारा खेल समझाने के लिए तंजौर भेजते हैं। फिर कहानी आगे चलती है और हम किरदारों के साथ साथ चोल वंश के साथ होने वाली अंदरूनी और बाहरी राजनीति से रूबरू होते हैं।

कैसी है फिल्म

फिल्म अच्छी है। अगर आप एक शांत, सरल, शीतल और शालीन युद्ध कौशल वाली फिल्म देखना चाहते हैं तो आप इसे देख सकते हैं। इस फिल्म की कहानी और निर्देशन कमाल के हैं। इसके अलावा इस फिल्म का संगीत और छायांकन उसे भी कमाल का है। जिस हिसाब से कहानी को कहने का प्रयास किया गया है वो बहुत शांत है जबरदस्ती का शोर नहीं मचाता है। क्योंकि इस फिल्म का अभी एक पार्ट और आना बाकी है इसलिए इस फिल्म के माध्यम से पोंनियिन सेलवन की रूपरेखा तैयार कर दी गई है। मेरा मानना है इस फिल्म का दूसरा भाग जबरदस्त होगा लेकिन आप उसे तभी समझ सकेंगे जब आप पोंनियिन सेलवन के पहले भाग को देखेंगे। इस फिल्म में सभी किरदारों ने कमाल का काम किया है। जहां विक्रम का कुछ रोल आपको विक्रम के ओहदे की याद दिलाता है वहीं कार्ति फिल्म की शुरुआत से ही आपका ध्यान आकर्षण कर लेते हैं। फिल्म का ज्यादातर हिस्सा कार्ति को मिला है और उन्होंने हर हिस्से में जरूरत के हिसाब से मनोभावों को डाला है। ऐस्वर्या रॉय, तृषा, जयम रवि सभी ने बेहतरीन काम किया है। ए आर रेहमान ने जो संगीत दिया है वो भी हमेशा की तरह आपके दिलों में बस जाने वाला है। यहां हम आपको इस फिल्म से जुड़ी कुछ ख़ास बात बता रहे हैं –

  • फिल्म में जब विक्रम, कार्ति को तंजौर जाकर सारा मामला पता करने को भेजते हैं उस सीन के बाद अचानक से पहाड़, समुद्र और झरनों के दृश्य दिखाकर फिल्म का और दर्शक का मूड सेट कर दिया जाता है।
  • मणिरत्नम की हर फिल्म की तरह इस फिल्म में भी सिनेमा का एक अलग टच देखने को मिलता है। मणिरत्नम जितने शांत हैं उनका सिनेमा वैसे ही शांत, शीतल और रहस्यों से भरा हुआ है।
  • इस फिल्म के माध्यम से आपको उस वक़्त राज्यों और सम्राज्यों के बीच होने वाली राजनीति और राजनीतिक रस्साकसी का अंदाजा होता है।
  • ये अलग बात है कि शायद हिंदी भाषी दर्शक फिल्म से ज्यादा जुड़ न सकें क्योंकि ये फिल्म ज्यादातर दक्षिण भाषा के प्रांत तक सीमित रखकर दिखाई गई है। कहानी में पूरे भारत को केंद्र में, नहीं रखा गया है।
  • इस फिल्म को बनाते वक़्त मणिरत्नम ने बहुत सी चीज़ों का ध्यान दिया है जो फिल्म में दिखता है। जिसे नंदनी और उनका महल। दोनों ही बहुत खूबसूरत लगते हैं। इसके अलावा कपड़ों से लेकर संस्कृति तक, कला से लेकर तलवार बाजी और किरदारों तक, संगीत और उसकी लिरिक्स, ये सभी आपको उस दौर के बारे में जानकारी देती हैं कि उस दौर में ये संस्कृति थी, ये पहनावा था, ऐसे किरदार थे, ऐसे संगीत थे। इन सभी चीज़ों में मणिरत्नम और उनकी टीम ने अच्छा काम किया है।
  • इस फिल्म में ऐस्वर्या जितनी खूबसूरत और चालाक लगती हैं उससे कहीं अधिक चालाक, चापाल और रणनीतिज्ञ तृषा भी लगती हैं। उनका स्क्रीन पर एंट्री करना इतना शानदार होता है कि वो दिल मोह लेती हैं।
  • कार्ति भी जिस तरह से हर मनोभावों को कहते हैं, शानदार है। कभी वो रोमांटिक होते हैं तो कभी हंसाने लगते हैं। फिर कभी वो अपनी वीरता का परिचय देते हैं तो कभी अपनी बुद्धि कौशल का।
  • फिल्म के एक्शन सीन भी बेहतरीन हैं और फिल्म का क्लाईमैक्सस आखिरी के कुछ देर के लिए आपका ध्यान खींच लेता है। 
  • मणिरत्नम की मेहनत उनके कहानी और किरदारों के निर्माण में दिखती है। जिस तरह से उन्होंने पूरी पटकथा को लिखा है ऐसा लगता है कि कोई कहानी सामने घटित हो रही है और आप उस कहानी का हिस्सा हैं| जिस कारण  से आपको कहानी और किरदार दोनों की चिंताएं लगी रहती हैं।
  • एक सीन हैं जहां जयम रवि और कार्ति की पहली मुलाक़ात होती है उसके बाद दोनों में तलवारबाजी का खेल होता है। ये सीन जितना मनमोहक है उससे ज्यादा रोमांचक आखरी का क्लाइमैक्स दृश्य है जहां समुद्र में तूफ़ान आ जाता है और बड़े से जहाज में जयम रवि और कार्ति एक दूसरे को बचाने का काम करते हैं।

उपरोक्त बिंदुओं से आपको अंदाजा लग गया होगा कि फिल्म कैसी है। फिल्म आराम से बैठकर देखकर समझने वाली फिल्म है। इतिहास को जानने वाली फिल्म है। प्रत्येक सीन पर गौर करने वाली फिल्म है। सुंदर फिल्म है जिसमें सभी इमोशन हैं| इस लिहाज़ से ये दर्शकों के लिए देखी जाने वाली फिल्म बन सकती है। हालंकि संवाद लेखन में इस फिल्म को और मजबूत करने की जरूरत है क्योंकि हिंदी में फिल्म के संवाद उतने अच्छे नहीं है। यहां आपके लिए फिल्म का सबसे प्यारा संवाद ये रहा – (जब विक्रम और तृषा एक दूसरे से मिलते हैं तब तृषा, विक्रम से ये कहती हैं।)

“चोल प्रजा का दायित्व मेरे लिए सर्वोपरि है। चोल प्रजा के ऊपर न तुम, न मैं, न सम्राट हैं और न कोई है”