नई दिल्ली। रीमेक का सीजन है और ज्यादातर फिल्म अब रीमेक बनकर आने लगी हैं। ऐसा लगता है फिल्म बनाने के ओरिजिनल विचार गायब हो गए हैं। ऐसे में एक और फिल्म का रीमेक आ गया है जिसका नाम है विक्रम वेधा (Vikram Vedha)। विक्रम वेधा दक्षिण भाषा फिल्म का रीमेक है जिसे पुष्कर गायत्री ने बनाया है। हिंदी वर्ज़न को भी इन्होने ही बनाया है। विक्रम वेधा की हर चीज़ दक्षिण भाषा वाली विक्रम वेधा से लगभग लगभग मेल खाती है। बस बदले हुए हैं तो केवल कलाकार। हिंदी वाली विक्रम वेधा में ऋतिक रोशन और सैफ अली खान दोनों परस्पर विक्रम और वेधा का किरदार निभा रहे हैं। इस फिल्म की कहानी और निर्देशन पुरानी से मिलते जुलता है फिर भी इस फिल्म ने कितना कमाल किया है अपने नए कलेवर में आकर के यहां हम इसी बात को जानने का प्रयास करेंगे
क्या है कहानी
विक्रम एक पुलिस अफसर है जो वेधा को पकड़ना चाहते हैं। वेधा एक शातिर क्रिमिनल है जिसने कुल 16 लोगों को मारा है और ऐसे मारा है कि आप देखकर दंग रह जाएंगे। ऐसे में जब विक्रम वेधा को पकड़ना चाहते हैं तब विक्रम के द्वारा एक निर्दोष लड़के की मौत हो जाती है। जिसके बाद वेधा खुद चलकर पुलिस डिपार्टमेंट आता है वहां वो आकर विक्रम से मिलता है और उसे कहानी सुनाता है। कहानी सेनानी के बाद उसकी जमानत की अर्जी आ जाती है। जमानत कराने के लिए जो वकील होती हैं वो विक्रम की ही पत्नी होती है। वेधा छूट जाता है। इसके बाद जितनी बार वेधा पकड़ा जाता है वो छूट जाता या भाग जाता और विक्रम को एक कहानी सुनाकर जाता है। ये कहानियां विक्रम को कुछ समझाती हैं। सच का पता लगाने में मदद करती हैं। इसके बाद विक्रम को कुछ ऐसा पता चलता है जैसा उसने सोचा भी न था। अब विक्रम को ऐसा क्या पता चलता है और वेधा पकड़ा जाता है या नहीं इसीको लेकर पूरी कहानी केंद्रित है
कैसी है कहानी
जिसने भी दक्षिण भाषा में रिलीज़ हुई फिल्म देखी होगी उसके लिए कहानी और निर्देशन दोनों में कुछ नया नहीं होगा सिवाय ऋतिक और सैफ के किरदार के। हां जो पहली बार इस फिल्म को देख रहे हैं उनके लिए कहानी एक अच्छी सस्पेंस थ्रिलर हो सकती है। फिल्म में अच्छे ट्विस्ट एंड टर्न हैं जो फिल्म में मन लगाए रखते हैं। ये फिल्म अपने ट्वीस्ट/टर्न और सस्पेंस की वजह से ही जानी जाती है। हालांकि ये फिल्म काफी बड़ी है और शुरू से लेकर अंत तक सिर्फ गोलीबारी का इस्तेमाल कभी कभी आपको ऊबा भी देता है। फिल्म के संवाद बिल्कुल भी ख़ास नहीं हैं जो याद रहते हों। फिल्म की कहानी एक बार देखी जा सकती है। फिल्म में शुरुआत में संजय मिश्रा की आवाज में वाइस ओवर सुनने को मिलता है जिसे सुनकर मज़ा आता है। इस फिल्म को बनाते वक़्त ऐसा लगता है कि फिल्मकार समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भूल गए हैं। एक फिल्मकार का कर्तव्य होता है कि वो विचार करे जो कहानी वो कहने जा रहा है वो मौजूदा समाज के लिए कितनी जरूरी है उस हिसाब से ये कहानी मौजूदा समय में बिलकुल उपयोगी नहीं लगती है। ऐसा लगता है संवादों को मसाला देने के लिए जबरदस्ती थोपा गया है।
फिल्म में एक जगह पर राजकपूर के बेहतरीन इमोशनल संगीत का इस्तेमाल इतने गलत जगह पर किया गया है कि लगता है आखिर कोई कैसे इतने प्यारे इमोशनल संगीत का इस्तेमाल ऐसी जगह कर सकता है। फिल्म में इमोशनल लेवल पर कुछ नहीं है। हां एक्शन और ठीकठाक परफॉर्मेंस दी गई है। फिल्म की सबसे ज्यादा बात खटकती है कि आखिर कैसे कुछ फिल्में क्रिमिनल की छवि को साफ़ करने का काम करती हैं। कैसे ये फिल्म एक क्रिमिनल को हीरो और सारे पुलिस वालों को भ्र्ष्ट बता देती है। पुलिसवाले जिन पर जनता विश्वाश करती है उन्हीं पर अंत में जाकर ये फिल्म आरोप साबित कर देती है। कायदे से इस फिल्म में विक्रम और वेधा की लड़ाई दिखनी चाहिए थी और विक्रम को वेधा को मारना चाहिए था लेकिन ऐसा होता नहीं है। विक्रम और वेधा दोनों साथ मिलकर पुलिसवालों को मारते हैं। वेधा ज़िंदा रहता है। विक्रम के साथ उसकी मदद करता है। पुलिसवाले मर जाते हैं लेकिन एक खूंखार क्रिमिनल वेधा जिसको पकड़ने के लिए पूरी कहानी रची गई वो बच जाता हैं। अंत में ये वेधा जनता की नज़र में हीरो भी बन जाता है। इस फिल्म के माध्यम से ये कहने का प्रयास किया गया है। बाकी फिल्म ठीकठाक एक बार देख सकते हैं। हालाँकि कहानी और संवाद में उतना दम नहीं है। हां सस्पेंस ठीक है और किरदारों का काम भी अच्छा है। फिल्म में एक जगह ऋतिक रोशन खुद को भोले बाबा भी बताते हैं जहां पर उस सीन और संवाद की जरूरत ही नहीं थी। इसके अलावा एक संवाद है जहां ऋतिक कहते हैं कि राम को राम रावण न बनाया था। जबकि सच तो ये है राम अपने आदर्शों अपने विचारों के कारण राम बने थे।