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Ravindra Jain B’Day: जानिए आंखों में रोशनी न होते हुए भी रवींद्र जैन ने अपने संगीत से कैसे किया म्यूजिक इंडस्ट्री को रोशन?

Ravindra Jain B’Day: रवींद्र जैन ने अपनी पढ़ाई अलीगढ़ विश्वविद्यालय के ब्लाइंड स्कूल से पूरी की। महज 4 साल की उम्र में ही उन्होंने संगीत की तालीम लेनी शुरू कर दी थी। इसके बाद उन्होंने कोलकाता में कई दिनों तक शिक्षक के रूप में काम किया।

नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा के मशहूर संगीतकार और गायक रविंद्र जैन ने म्यूजिक इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक कई यादगार गीत दिए। जन्म से नेत्रहीन रवींद्र जैन का जन्म 28 फरवरी 1944 को उत्तर प्रदेश के ‘अलीगढ़’ जिले में हुआ था। रविंद्र जैन अपने सात भाई-बहनों में तीसरे नंबर के थे। रवींद्र जैन ने अपनी पढ़ाई अलीगढ़ विश्वविद्यालय के ब्लाइंड स्कूल से पूरी की। महज 4 साल की उम्र में ही उन्होंने संगीत की तालीम लेनी शुरू कर दी थी। इसके बाद उन्होंने कोलकाता में कई दिनों तक शिक्षक के रूप में काम किया। इसी दौरान उनकी मुलाकात मशहूर फिल्मकार ‘राधेश्याम झुनझुनवाला’ से हुई। झुनझुनवाला ने रविंद्र को मुंबई जाने की सलाह दी। इसके बाद साल 1969 में रविंद्र जैन मुंबई पहुंच गए। दो साल बाद 1971 में रविंद्र जैन के संगीत निर्देशन में झुनझुनवाला की पहली फिल्म के लिए पांच गाने रिकॉर्ड किए गए, जिसे मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर और आशा भोसले ने अपनी आवाज दी। हालांकि ये फिल्म रिलीज नहीं हो पाई।

साल 1972 में फिल्म ‘कांच’ और ‘हीरा’ रिलीज हुई, जिसे रवींद्र जैन के संगीतों से सजाया गया था। इसी फिल्म के साथ संगीतकार के रूप में रवींद्र जैन के फिल्मी करियर की शुरुआत हो गई। हालांकि ये फिल्म असफल साबित हुई, लेकिन रवींद्र जैन ने हार नहीं मानी। इस फिल्म के अगले ही साल राजश्री प्रोडक्शन से उन्हें सुनहरा मौका मिला और फिल्म ‘सौदागर’ से उन्होंने अपनी योग्यता को साबित कर दिया। इसके बाद रवींद्र जैन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और फिल्म ‘चोर मचाए शोर’, ‘चितचोर’,’ तपस्या’, ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए’, ‘अंखियों के झरोखों से’, ‘राम तेरी गंगा मैली’, ‘हिना’, ‘इंसाफ का तराजू’, ‘प्रतिशोध’ जैसी कई फिल्मों में जबरदस्त संगीत दिया। रविंद्र जैन के सबसे मशहूर गानों की बात करें, ‘तो गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल’, ‘घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं’, ‘जब दीप जले आना’, ‘ले जाएंगे ले जाएंगे दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’, ‘ले तो आए हो हमें सपनों के गांव में’, ‘ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए’ जैसे तमाम गाने हैं, जिनकी धुनें लोगों के दिलों में आज भी उतनी ही ताजगी से बसी है।

उन्होंने न केवल फिल्मों में अपना परचम लहराया, बल्कि टीवी पर आने वाले मशहूर पौराणिक सीरियल ‘रामायण’ को भी संगीत दिया था, जिसे आज भी याद किया जाता है। इसके अलावा कई चौपाईयों को उन्होंने अपनी आवाज से सजाया था। रामायण में दिया गया, उनका संगीत आज भी याद किया जाता है। रविंद्र जैन कभी भी अपनी आंखों का इलाज नहीं कराना चाहते थे। हालांकि, उनकी इच्छा थी कि अगर आंखों की रोशनी वापस आ जाए तो वो सबसे पहले अपने पसंदीदा गायक ‘यसुदास’ को देखना चाहेंगे। आखिरी समय तक रवींद्र जैन पास काम की नहीं रही। 9 अक्टूबर 2015  को किडनी की बीमारी के चलते उनका निधन हो गया।