
नई दिल्ली: कुछ लोग अपने जीवन में इतना कुछ कर जाते हैं कि उसे शब्दों में कहना पाना मुश्किल हो जाता है। वो अपने जीवन में ऐसा कुछ करते हैं जिसे कर पाना किसी दूसरे व्यक्ति के लिए असम्भव ही मालूम पड़ता है। ऐसे ही एक व्यक्ति थे, आनंद दिघे। आनंद दिघे इनके बारे में बहुत कम लोग, बहुत कम ही जानते हैं। कुछ लोगों के लिए मसीहा और कुछ लोगों के लिए भगवान थे आनंद दिघे। अभी कुछ दिन पहले मराठी में एक फिल्म रिलीज़ हुई जिसका नाम है “धर्मवीर”। फिल्म एक बायोग्राफिकल पॉलिटिक्ल ड्रामा है जिसे प्रवीण टरडे ने लिखा और डायरेक्ट किया है। फिल्म शिवसैनिक लीडर, आनंद दिघे के जीवन पर आधारित है। जिसमें प्रसाद ओक ने, आनंद दिघे की भूमिका निभायी है। फिल्म धर्मवीर, को दर्शकों ने खूब पसंद किया और एक रीजनल फिल्म ने 30 करोड़ रुपये की कमाई कर ली है। फिल्म में बहुत सारे ऐसे दृश्य हैं, जो हिन्दू संस्कृति को उजागर करते हैं। इसके अलावा आनंद दिघे साहब का वो किरदार है जो हिन्दूत्व की रक्षा करने के लिए कुछ भी कर सकता है। जो सभी को अपना शत्रु नहीं समझता पर उन्हें जरूर अपना शत्रु समझता है, जिनके दिमाग में “जिहाद” जैसा जहर पनप रहा है।
आनद दीघे कौन हैं
आनंद दीघे एक सच्चे वारियर हैं और शिवसैनिक हैं, जिन्होंने जाति धर्म बिना सोचे, लोगों की मदद की है। जो अपने लोगों के लिए हमेशा खड़े दिखे हैं और जिन्होंने हमेशा हिंदुत्व को खत्म करने वाली मंशा को खत्म करने में विश्वाश रखा है। आनंद दिघे को उनके क्षेत्र के लोग, धर्मवीर कहकर भी बुलाते थे क्योंकि वो अकेले ऐसे थे जो किसी से भी लड़ने से पीछे हटने वालों में से नहीं थे। अगर कोई जेहादी सोच का व्यक्ति, हिन्दुओं के एक आदमी को मारता था तो आनंद दिघे उनके जैसे दस आदमी को मारने में विश्वाश रखते थे। रोज मीटिंग करने वाले आनंद दिघे, सभी लोगों की समस्याओं को सुनते थे और उन्हें हल करते थे। आनंद दिघे, बालासाहब ठाकरे के नज़दीकी थे और बालासाहेब ठाकरे जी को गुरु की तरह पूजते थे।
फिल्म में क्या है
एक महिला पत्रकार जिसे आनंद दिघे के पुण्यतिथि के दिन, खबर को कवर करने के लिए भेजा जाता है पर वो पत्रकार इस स्टोरी को लेकर उतना खुश नहीं होती है। वो जिस ऑटो से जा रही होती है वो ऑटो ड्राइवर मुस्लिम होता है और वो ड्राइवर महिला पत्रकार को बताता है कि किसी के भी जिंदगी को हम सिर्फ गूगल के माध्यम से पता नहीं लगा सकते हैं जिसके बाद महिला पत्रकार उस स्थान पर पहुँचती है जहाँ आनंद दिघे साहब की पुण्यतिथि मनाई जा रही है। वहां पर पहुंचकर जब वो लोगों से रूबरू होती हैं तब वो आनंद दिघे, धर्मवीर के बारे में, वहां मौजूद लोगों से जानती हैं और तब हमें भी पूरी फिल्म के दौरान आनंद दिघे जैसे महान व्यक्तित्व के बारे में पता चलता है। फिल्म में आनद दिघे जी की युवावस्था से लेकर उनके मृत्यु तक के सफर को दिखाया है। फिल्म में दिखाया है कि जब महाराष्ट्र में कट्टरवाद चरम पर था तब कैसे आनंद दिघे वहां पर अकेले खड़े हुए थे। फिल्म में आनंद दिघे जी की मृत्यु पर भी सवाल उठाये गए हैं। हालांकि सीधे तौर पर किसी पर प्रश्नचिन्ह लगाया नहीं गया है लेकिन दृश्यों के माध्यम से जानकारी देने की कोशिश की गयी है।
फिल्म कैसी है
फिल्म में परवीन तरडे जी का डायरेक्शन इतना उम्दा है कि लगभग 3 घंटे की फिल्म होने के बावजूद भी फिल्म आपको अपने से बांधे रखती है। इसके अलावा फिल्म का प्रोडक्शन वर्क भी बहुत अच्छा है जिससे फिल्म एक हाई लेवल की, बड़े परदे वाली फिल्म लगती है। फिल्म की एक्टिंग परफॉर्मन्स की बात करें तो प्रसाद ओक जी ने वो काम बेहद सूक्ष्मता से किया है और उनकी एक्टिंग परफॉरमेंस, पूरी तरह से आपको भावुक करके जाती है। एक्टिंग परफॉरमेंस देखकर आपको ऐसा लगता है कि आप प्रसाद ओक जी को नहीं बल्कि आप आनंद दिघे जी को देख रहे हैं। फिल्म के गाने भी काफी अच्छे हैं जिनको आप बार बार सुन सकते हैं। फिल्म को आप परिवार के साथ भी देख सकते हैं। इसके अलावा फिल्म में कुछ सीन इतने इमोशनल हैं जो पक्का आपकी आँखों में आँसू ला देंगे। फिल्म को जिस तरह से बनाया गया है उसे देखकर आपको हिन्दू होने पर गर्व होगा और आपको ये समझ आएगा की आपसे पहले कितने ऐसे हिन्दू लीडर्स हुए, जिन्होंने हिंदुत्व की रक्षा के लिए कितना कुछ बलिदान किया है।
फिल्म को 17 जून को ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज़ किया गया है। जिसे आप अमेज़ॉन प्राइम पर देख सकते हैं। इसके अलावा ज़ी5 पर भी आप इसे देख सकते हैं।