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Mili Review: मिली जो आपको थ्रिल, इमोशन और बांधकर रखती है, लेकिन फिर भी बनकर रह जाती है “कागज की नाव”

Mili Review: मिली जो आपको थ्रिल, इमोशन और बांधकर रखती है, लेकिन फिर भी बनकर रह जाती है “कागज की नाव” तो चलिए फिल्म की समीक्षा (Mili Moview Review) शुरू करते हैं और फिल्म की कहानी और फिल्म की बातों पर बिंदुवार चर्चा करते हैं।

नई दिल्ली। “जीना होगा” ये शब्द हर किसी को प्रेरणा देते हैं। जो मिली (Mili) फिल्म में जान्हवी कपूर (Janhvi Kapoor) को प्रेरणा दे रहे हैं। इस शुक्रवार सिनेमाघर में रिलीज़ होने वाली है फिल्म – मिली (Mili)। हमेशा की तरह हम आज भी यहां आपको बताएंगे की आपको फिल्म देखने जाना चाहिए या नहीं। क्या क्या खास बातें हैं जो फिल्म में अच्छी या फिर बुरी हैं। यहां हम आपको फिल्म से जुड़ी सभी जानकारी देने की कोशिश करते हैं। यहां हम फिल्म की कहानी तो बताएंगे साथ ही बिंदुवार में फिल्म के बारे में भी बताएंगे जिससे आप तय कर सके हैं की आखिर आपके लायक ये फिल्म है, या नहीं। मिली फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं जान्हवी कपूर। उनके साथ हैं मनोज पाहवा (Manoj Pahwa), सनी कौशल (Sunny Kaushal), हसलीन कौर (Haleen Kaur), राजेश जैश (Rajesh Jais), और संजय शूरी (Sanjay Suri)। इस फिल्म का निर्देशन मलयालम फिल्म के निर्देशक मटुकुट्टी ज़ेवियर (Mathukutty Xavier) ने किया है। मटुकुट्टी ने इससे पहले हेलेन (Helen) नाम की फिल्म बनाई है और मिली उसी फिल्म का रीमेक है। मिली फिल्म को लिखा रितेश शाह (Ritesh Shah) ने है। फिल्म का छायांकन (Cinematography) किया है सुनील कार्तिकेयन (Sunil Karthikeyan) ने। फिल्म का म्यूसिक ए आर रहमान (A R Rehman) ने दिया है इसके अलावा फिल्म के निर्माता बोनी कपूर (Boney Kapoor) जी हैं। तो चलिए फिल्म की समीक्षा (Mili Moview Review) शुरू करते हैं और फिल्म की कहानी और फिल्म की बातों पर बिंदुवार चर्चा करते हैं।

कलाकारों की भूमिका

जान्हवी कपूर ने मिली नौडियाल का किरदार निभाया है। मनोज पाहवा ने मिली के पिता मिस्टर नौडियाल का किरदार निभाया है। सनी कौशल फिल्म में समीर की भूमिका में हैं। राजेश जैश फिल्म में मिली नौडियाल के चाचा का किरदार निभाया है। अनुराग अरोड़ा ने सब इंस्पेक्टर सतीश रावत का और संजय सूरी ने फिल्म में इस्पेक्टर रवि प्रसाद का किरदार निभाया है।

क्या है कहानी

मिली नौडियाल अपने पिता यानी मिस्टर नौडियाल के साथ रहती है। मिली नौडियाल और मिस्टर नौडियाल का बाप-बेटी का बेहद करीबी रिश्ता है। ऐसा रिश्ता जहां न मिस्टर नौडियाल, मिली के बगैर रह सकते हैं और न ही मिली अपने पिता की फिक्र किये बगैर। मिली अपने पिता से बहुत प्यार करती है। उन्हें सिगरेट पीने से रोकती है जिसके कारण मिस्टर नौडियाल को छुप-छुपकर सिगरेट पीना पड़ता है।

मिली अपने पिता के स्वास्थ्य और उनके दवाई के समय का ख्याल रखती है। इतना सब होने के अलावा मिली कोचिंग भी जाती है, और एक मॉल के रेस्टॉरेंट में ग्राहकों के खाने के आर्डर लेती है। उसने बीएससी नर्सिंग की पढाई की है। उसे लगता है देहरादून में नर्स को कम पैसा मिलता है इसलिए वो कनाडा जाकर जॉब करना चाहती है। लेकिन पिता अपनी बेटी से दूर नहीं होना चाहते हैं तो उसे ताने मारते रहते हैं, उसपर व्यंग्य करते रहते हैं। इसके अलावा समीर और मिली एक दूसरे से प्यार करते हैं। जिसके बारे में मिस्टर नौडियाल को कुछ पता नहीं है।

लेकिन बाद में मिस्टर नौडियाल को पता चलता है, कब ? ये आप फिल्म देखकर ही जाने तो अच्छा होगा। जब मिस्टर नौडियाल को पता चलता है तो वो, मिली से बात करना बंद कर देते हैं। वो मिली को जल्द से जल्द कनाडा भेज देना चाहते हैं। मिली का दुःख बढ़ता जाता है और एक दिन मिली काफी रात होने के बाद भी घर नहीं पहुंचती है। अब जो मिस्टर नौडियाल मिली से बात नहीं कर रहे थे वो लगातार उसे कॉल करते हैं, लेकिन मिली मिलती नहीं है। मामला पुलिस स्टेशन चला जाता है। हर तरफ मिली को ढूंढा जाता है। क्या मिली, मिल पाएगी ? अगर मिलेगी तो कहां ? आखिर अचानक से मिली कहां गायब हो गई ? इन सभी सवालों के जवाब के लिए आपको फिल्म देखना होगा।

कैसी है कहानी

फिल्म की कहानी अच्छी है लेकिन जो आपको बांध ले, जकड़ ले, वैसी नहीं है। फिल्म थ्रिल करके रखती है लेकिन इमोशनल (आंशू नहीं ला पाती) नहीं कर पाती है। कहानी से दर्शक को जिस हिसाब से जुड़ना चाहिए था, वो नहीं हो पाता है। फिल्म में अंत क्या होगा ये सभी को पता होता है लेकिन वो कैसे होगा इसके लिए सब इंतज़ार कर रहे होते हैं। अंत में जैसे ही लग रहा होता है बॉलीवुड एक बार फिर से वही पुराना ढर्रे वाला सस्पेंस दिखाने वाला है तभी फिल्म लोगों के दिमाग से खेल जाती है। ऐसा भी नहीं है कि कुछ अलग ही गजब सस्पेंस देकर जाती है लेकिन हां ये है कि औसत दर्ज़े का सस्पेंस जरूर देती है। यहां हम बिंदुवार फिल्म के बारे में बताएंगे जिससे आप तय कर सकें आपके लिए ये फिल्म देखने लायक है या नहीं।

  • फिल्म की अच्छी बात ये है कि ये छोटी छोटी चीज़ों को लेकर चलती है। जैसे चीटीं के साथ कैमरावर्क करना। सैमसंग का पुराना फोन होना। चूहे के कई सीन होना या फिर जान्हवी का टैम्पो से कोचिंग जाना। पटकथा उन महीन चीज़ों का ध्यान रखती है और फिल्म में वो देखने को मिलता है।
  • मिली और मिस्टर नौडियाल के बाप-बेटी के रिश्ते शुरुआत से ही आपको एहसास करा देते हैं। उनकी कॉमेडी और उनके रिलेशन आपका ध्यान और दिल दोनों अपनी ओर खींच लेते हैं।
  • जान्हवी कपूर, मिली की भूमिका में, मिस्टर नौडियाल पिता की भूमिका में और सनी कौशल समीर की भूमिका में इन तीनों ने लाजवाब काम किया है। जब भी जो भी इमोशन डालने हुए फिल्म में डाला है। मनोज पाहवा और जान्हवी की अच्छी एक्टिंग की वजह से आपको ये फिल्म देखनी चाहिए।
  • जिस तरह से किरदारों का निर्माण और पटकथा का ट्रीटमेंट किया गया है वो फिल्म से जोड़ लेता है।
  • फिल्म के संवाद भी नए लगते हैं, कुछ टच करते हैं कुछ कॉमेडी करते हैं।
  • मिली और उनके पिता का संबंध अच्छा है लेकिन कभी कभी ये लगता है कि अब फिल्म आगे बढ़नी चाहिए। इस हिसाब से हल्की धीरी भी फिल्म शुरुआत में लगती है लेकिन आपको व्याकुल और उबाने का काम नहीं करती है।
  • पटकथा की एक बात अच्छी है कि इसमें मिली को फिक्र है कि उसके बॉयफ्रेंड, समीर की नौकरी लग जाए जिसके बाद वो समीर के बारे में मिस्टर नौडियाल से बात कर सके। ये बातें कुछ मीठे अवसर देकर जाते हैं।
  • एक सीन है जहां मिली और उसके पिता के बीच संबंध खट्टे हो जाते हैं। ये वो समय होता है, जो आपको कुर्सी से उठने को मजबूर कर सकता है। क्योंकि यहां मनोज पाहवा ने कमाल की एक्टिंग की है। एक बाप, जो अपनी बेटी से इतना प्यार करता है, वो जब अपनी बेटी से बात करना बंद कर दे, तब मिली के साथ, आपको भी दुःख होने लगता है।
  • जैसे-जैसे फिल्म में थ्रिल मोमेंट आता है और मिली, मुश्किलों में फंस जाती है वैसे वैसे मिली के साथ आपके भी रोएं खड़े होने लगते हैं। मिली के साथ ही साथ आप भी अपने हाथ बांध लेते हैं और कांपने लगते हैं।
  • फिल्म थ्रिलर के उस पैमाने तक भी पहुंचती है जहां टेंशन भी बनता है। लेकिन फिल्म दो से तीन दफा थोड़ी धीमी पड़ जाती है।
  • फिल्म के डायरेक्शन और सिनेमाटोग्राफी की भी तारीफ बनती है क्योंकि ऐसे कई सीन हैं जहां डायरेक्शन और सिनेमेटोग्राफी ने अच्छा काम किया है।
  • फिल्म में बारीकी का ध्यान रखा गया है। जैसे मिली जब मुश्किल में होती है तब सिनेमाघर से मूवी देखकर लोग घर निकल रहे होते हैं और तभी मिली, उनसे मदद मांगती है यहां मेकर्स ने अच्छा प्रयोग किया है
  • मिली को अपनी परेशानियों से जिस तरह से लड़ना पड़ता है एक समय पर आकर ये सब देखकर आपको भी कष्ट होता है।
  • मिली क्योंकि सबका ख्याल रखना जानती है इसलिए जब वह मुश्किल में है, तब भी वह चूहे का भी ख्याल रखती है। इस तरह के सीन इमोशनल मोमेंट पैदा करते हैं।
  • एक जगह कहानी आपको इतना थ्रिल कर देती है कि आप कॉमेडी पर भी हंस नहीं पाते हो।
  • मिली को ऐसी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है कि जिसके कारण उसे अपने सपने तक जलाने पड़ते हैं।
  • धीरे धीरे आपको मिली की फिक्र होने लगती है और आप ये सोचते हैं कि जल्दी अब कोई मदद करे और आपको ये भी ख्याल आता है, आखिर कोई कैसे मिली की मदद करेगा।
  • फिल्म के लास्ट के 15 मिनट में आपको एक तरफ थ्रिल होता है एक तरफ गुस्सा और एक तरफ आपको दर्द होता है। इसके अलावा लास्ट का 1 मिनट का अस्पताल का सीन आपको फिल्म की गहराई से जोड़ लेता है।

फिल्म का सस्पेंस उतना अच्छा नहीं है| कहानी आपको थ्रिल देती है, लेकिन कहानी आप में उतरती नहीं है। ये एक सर्वाइवल थ्रिलर मूवी है| सिनेमा के शौकीन या इस शैली के शौकीन लोगों को फिल्म पसंद आ सकती है लेकिन सामान्य दर्शक को ये औसत दर्ज़े की ही फिल्म लग सकती है। इस हिसाब से मिली आपको थ्रिल, इमोशन और बांधकर रखती है, लेकिन फिर भी बनकर रह जाती है “कागज की नाव”| कागज की नाव इसलिए क्यूंकि फिल्म में सबकुछ है, लेकिन फिल्म देखने के बाद आपके पास कुछ नहीं है। न फिल्म को याद रखने की वजह और न ही कोई दिल को छूकर जाने वाले संवाद। ये बात जरूर है कि फिल्म देखने के बाद आपका अनुभव बुरा नहीं होगा| इसलिए अगर आप चाहें तो इस फिल्म को एक मौका दिया जा सकता है। मेरी तरफ से फिल्म को 3 स्टार।

फिल्म के कुछ संवाद आपके हवाले करके जाते हैं

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