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Shehzada Movie Review: शहज़ादा रिव्यू। गाड़ी, बंगला और पैसे से शहज़ादा सब बनते हैं लेकिन दिलों के शहज़ादा बनते हैं कार्तिक आर्यन

Shehzada Movie Review: एक बात यहां पर रखनी जरूर होगी कि कार्तिक आर्यन ने प्रमोशन के दौरान इंटरव्यू में फिल्म को लेकर जो वादे किए, फिल्म उस पर खरी उतरती है। कार्तिक आर्यन लगातार इंटरव्यू में कहते आ रहे थे कि वो इस फिल्म के माध्यम से बहुत कुछ नहीं लेकिन दर्शकों को एंटरटेन करना चाहते हैं और उन्होंने किया है। बतौर प्रोड्यूसर ये कदम अच्छा है आशा करते हैं फिल्म की कमाई भी अच्छी हो।

नई दिल्ली। कार्तिक आर्यन की फिल्म शहज़ादा रिलीज़ हो गई है और शहज़ादा फिल्म देखने के बाद उस फिल्म में क्या खास है और कहां पर फिल्म मात खा गई है यहां हम इसी बारे में आपको बताएंगे। कार्तिक आर्यन की फिल्म शहज़ादा आज से एक सप्ताह पहले 10 फरवरी को रिलीज़ होनी थी, लेकिन शाहरुख खान की फिल्म पठान की अपार सफलता के कारण इस फिल्म की रिलीज़ डेट को आगे बढ़ाना पड़ा। पठान फिल्म की अपार सफलता से सभी खुश हैं लेकिन क्या शहज़ादा फिल्म भी दर्शकों को उतना खुश कर सकती है ये संशय का विषय है! क्योंकि दर्शकों के सिर से अभी भी पठान का सुरूर उतरा नहीं है। ऐसे में शहज़ादा फिल्म भले ही अपनी काबिलियत का अधिक से अधिक देकर भी जाए फिर भी अधिक संख्या में दर्शक शायद ही उतना प्रेम फिल्म को दें! कार्तिक आर्यन ने इस फिल्म के प्रमोशन में अपनी मेहनत और जेब को खर्च करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है लेकिन क्या कहानी उस हिसाब से है जो दर्शकों को सिनेमाघर बुला सके ? क्या इस फिल्म की स्टारकास्ट में वो दम है जो अपने फैंस के भरोसे फिल्म को ब्लॉकबस्टर बना सके ? यहां हम फिल्म की कहानी, पटकथा और संवादों को जांचते हुए कलाकारों और फिल्म की ओवरऑल परफॉर्मेंस के बारे में आपसे अपने विचार साझा करने वाले हैं।

एक बात तो तय है कि कार्तिक आर्यन और शाहरुख खान की स्टारडम में जमीन आसमान का अंतर है ऐसे में इस फिल्म को अगर चला सकता है तो सिर्फ फिल्म का कंटेंट। वहीं अगर फिल्म के कंटेंट के बारे में बात करें तो यह एक सामान्य फिल्म है, हालांकि कार्तिक आर्यन की डॉयलॉग डिलीवरी आपको आकर्षित करती है। फिल्म एंटरटेनमेंट के नाम पर हंसा-हंसाकर लोट-पोट तो नहीं करती है लेकिन उबाऊ भी नहीं लगती है। फिल्म में कुछ नया और कहानी में कोई विशिष्टपन यानी यूनीकनेस भी नहीं है लेकिन फिर भी फिल्म को देखा जा सकता है क्योंकि कार्तिक आर्यन, कृति सेनन, परेश रावल, रोनित रॉय, मनीषा कोइराला, सचिन खेड़ेकर, अंकुर राठी, सनी हिंदुजा, और स्पेशल अपीरियंस के तौर पर राजपाल यादव आपको निराश नहीं करते हैं।

आप सबको पता होगा कि ये फिल्म दक्षिण भाषा की अला वैंकुंठपुरामलो का रीमेक है। हिंदी भाषा में बनी फिल्म शहज़ादा का निर्देशन डेविड धवन के बेटे रोहित धवन ने किया है। यही कारण है कि फिल्म में डेविड धवन का टच देखने को मिलता है। फिल्म के संवादों को हुसैन दलाल ने लिखा है ऐसे में संवाद कुछ जगह पर अच्छे और कुछ जगह पर घिसे-पिटे भी लगते हैं। फिल्म की पटकथा की बात करें तो, बेहद सिम्पल और प्रेडिक्टेबल है।

आदित्य जिंदल के किरदार में सचिन खेड़ेकर दिल्ली के रईस खानदान में से एक हैं। जो अपनी बेटी याशु यानी मनीषा कोइराला की शादी रणदीप नंदा यानी रोनित रॉय से कराते हैं। वाल्मीकि का किरदार निभा रहे परेश रावल और रणदीप नंदा दोनों जिगरी दोस्त थे और आदित्य जिंदल की कम्पनी में क्लर्क का काम करते थे। लेकिन आदित्य जिंदल और उनकी बेटी, रणदीप नंदा से प्रभावित हो जाते हैं और जिंदल साहब अपनी बेटी की शादी रणदीप नंदा से करा देते हैं।

अब रणदीप नंदा यानी रोनित रॉय,  जिंदल खानदान के दामाद बनकर कामयाबी के शिखर पर पहुंच जाते हैं लेकिन उनके दोस्त वाल्मीकि यानी परेश रावल उसी महल में, जिंदल खानदान के क्लर्क बनकर रह जाते हैं। वाल्मीकि खुद तो क्लर्क की जिंदगी जीते हैं लेकिन वो अपने बेटे को ऐश-ओ-आराम की जिंदगी देना चाहते हैं। इसके लिए वो रास्ता अपनाते हैं- जन्म के समय ही बच्चों की अदला-बदली का। वो अदला-बदली कैसे होती है ये तो फिल्म का पार्ट है जिसे बताने से फिल्म का मज़ा खराब हो जाएगा। तो होता ये है कि बच्चे की अदला-बदली के बाद, वाल्मीकि का बेटा रईस खानदान में पलता-बढ़ता है। वहीं रणदीप और याशु का बच्चा वाल्मीकि के यहां जिल्लत भरी जिंदगी जीता है। वाल्मीकि जिसका लालन-पालन करते हैं उसका नाम है बंटू| जिसका किरदार कार्तिक आर्यन ने निभाया है और यही है इस फिल्म का शहज़ादा। अब क्या ये शहज़ादा अपने जन्म देने वाले माता-पिता से मिल पाएगा ? क्या ये वापस अपने खून के रिश्ते से जुड़ पाएगा और जुड़ेगा तो कैसे ? पूरी कहानी इसी कौतूहल पर दर्शकों को घुमाती रहती है।

अगर निर्देशन की बात करें तो रोहित धवन के निर्देशन में ख़ास कमियां तो नहीं हैं लेकिन मेरे ख्याल से उन्हें निर्देशन को दिन-पे-दिन और मजबूत करते रहना चाहिए। इसके अलावा अगर वो पूरी तरह से एंटरटेनमेंट पर आधारित फिल्म लाना चाहते हैं तो स्क्रीनप्ले में सिर्फ थोड़े से ही खुश नहीं होना चाहिए बल्कि उसकी गहराई में जाकर, उसकी पटकथा पर ज्यादा से ज्यादा मेहनत करनी चाहिए। इस फिल्म की पटकथा कमजोर लगती है और उसमें कुछ नया देखने को नहीं मिलता है फिर भी ये कहना जरूरी है कि कार्तिक आर्यन और परेश रावल अपनी संवाद वितरण शैली से कुछ जगह आपको हंसाते हैं। और फिर वही बात पटकथा कमजोर होने के कारण  हंसा-हंसाकर लोट-पोट कर दें, ऐसा नहीं होता है। जबकि एक एंटरटेनमेंट फिल्म, फुल ऑन एंटरटेनर फिल्म तभी साबित होती है, जब दर्शकों के सिर से हंसी का डोज़ उतरे ही नहीं और वो थिएटर से बाहर आकर हंसते रहें।

रोहित धवन के निर्देशन में बनी इस फिल्म में, डेविड धवन की छाप खूब देखने को मिलती है। एक ऐसा लड़का जो मिडिल क्लास फैमिली का है लेकिन उसकी रगों में खून अमीरों का दौड़ता है। मिडिल क्लास लड़का अपने संस्कारों और करतब से रईस घर में सभी को इम्प्रेस कर लेता है। इस खेल में उसका साथ देते हैं रईस फैमिली के सबसे बुजुर्ग और अमीर नानू। वो लड़का अपने परिवार को मनाने के लिए किसी भी हद तक जाता है। और फिर एक दिन वही लड़का उस घर का शहज़ादा बन जाता है। कुछ इसी प्रकार की समानता पिता-पुत्र (डेविड-रोहित) के निर्देशन में देखने को मिलती है।

इस फिल्म के गानों का का संगीत, लिरिक्स और उनका निर्देशन अच्छा है, आकर्षित करता है लेकिन गाना फिल्म पर असर छोड़े या फिल्म को प्रभावित करे ऐसा नहीं है। राजामौली ने हाल ही में एक बात कही थी कि “संगीत का फिल्मों में होना बुरी बात नहीं है लेकिन अक्सर हिंदी फिल्मों में संगीत उस जगह होता है जहां पर संगीत और फिल्म का कोई मेल-जोल नहीं होता है, जहां संगीत फिल्म को आगे नहीं बढ़ाता बल्कि ठूसा हुआ लगता है। यहां भी “छेड़खानियां गाने” के अलावा कोई और संगीत सही जगह पर प्रयोग किया हुआ नहीं लगता है।

कलाकारों की परफॉर्मेंस की बात करें तो कार्तिक आर्यन ने कई फिल्मों से खुद को प्रूफ किया है और उनकी इस फिल्म में भी वो जंचे हैं। उन्होंने अपने कंधों पर फिल्म को अच्छे से संभाला है। ओवर-एक्टिंग करते हुए नहीं दिखे हैं। और पूरी कोशिश की है कि कैसे फिल्म दर्शक को आकर्षित कर सके। वो जिस तरह से कलाकार हैं, जिस तरीके की मस्तियां करते हैं फिल्म में आप उसे पसंद करते हैं। वो अपनी मस्तियों से निराश नहीं करते बल्कि आपको एंटरटेन करते हैं। ऐसे में जब भी आप उन्हें देखते हो आपको निराशा हासिल नहीं होती है| इस कारण से वो जिंदल परिवार और दर्शकों के दिल के शहज़ादा बन जाते हैं। फिल्म में कृति सेनन का काम बहुत नहीं  है लेकिन जितना है, ठीक है। परेश रावल, रोनित रॉय, मनीषा कोइराला, सचिन खेड़ेकर ने हमेशा की तरह अच्छा काम किया है। छोटी सी गेस्ट अपीरियंस की भूमिका में राजपाल यादव कुछ देर के लिए समां बांध देते हैं और तब समझ आता है कि राजपाल यादव क्यों हमेशा डेविड धवन की तारीफ करते रहते हैं। क्योंकि डेविड धवन को पता है कि राजपाल को कहां इस्तेमाल करना है, और वो क्या चीज़ हैं। विलेन के रूप में सारंग विलेन की भूमिका में कुछ खास नहीं जोड़ते हैं। सारंग का किरदार सनी हिंदुजा ने निभाया है।

ओवरआल कॉमेडी के मामले में फिल्म सामान्य है जिसे सामान्य नहीं बल्कि बेहतरीन होना चाहिए था। इमोशनल के मामले में पारिवारिक कहानी होने के बावजूद सिर्फ लास्ट में नाममात्र का इमोशन है। वहीं परफॉर्मेंस में कार्तिक आर्यन ने फिल्म को संभाला है। पटकथा बेहद सामान्य है जिसमें गहराई और एंटरटेनमेंट की आवश्यकता थी। निर्देशन अच्छा है लेकिन पटकथा जब कमजोर हो तो निर्देशन भी कमजोर हो जाता है। हां फिल्म दर्शकों से कनेक्ट होगी, उन्हें उबाएगी नहीं और परिवार के साथ एक अच्छा समय बिताने में मदद करेगी| तो आप सिनेमाघर में जाकर इसे परिवार के साथ एन्जॉय कर सकते हैं। एक बात यहां पर लिखनी जरूरी है कि कार्तिक आर्यन ने प्रमोशन के दौरान इंटरव्यू में फिल्म को लेकर जो वादे किए, फिल्म उस पर खरी उतरती है। कार्तिक आर्यन लगातार इंटरव्यू में कहते आ रहे थे कि वो इस फिल्म के माध्यम से बहुत कुछ नहीं लेकिन दर्शकों को एंटरटेन करना चाहते हैं और उन्होंने किया है। बतौर प्रोड्यूसर ये कदम अच्छा है आशा करते हैं फिल्म की कमाई भी अच्छी हो। फिल्म को मेरी तरफ से 3 स्टार |

हालांकि इस फिल्म में अच्छे संवाद होंगे ऐसी कोई आशा नहीं थी, लेकिन फिर भी कुछ संवाद आपके लिए –

“परेश रावल- मिडिल क्लास में लोगों में थोड़ा बहुत झूठ बोलना चलता है। कार्तिक आर्यन- सच बोलूंगा तो उस टाइम ही डरूंगा लेकिन अगर झूठ बोला तो जब तक पकड़ा नहीं जाऊंगा तब तक डरूंगा।”

“एक वेटर को “नो” बोलना आसान है, लेकिन एक पॉवरफुल आदमी को “नो” बोलना बहुत कठिन”

“गरीबों के पास एक ही चीज़ थी अमीरों ने वो भी ले लिया-“दुःख”