नई दिल्ली। कई दिनों से चल रहे बॉयकॉट (#Boycottlaalsinghchaddha) के बाद आज आखिर फिल्म लाल सिंह चड्ढा (Laal Singh Chaddha) रिलीज़ हो गयी। आमिर खान (Aamir Khan) और करीना कपूर (Kareena Kapoor) अभिनयकृत फिल्म दर्शकों को सिनेमा तक बुलाने में नाकाम रही क्योंकि ज्यादातर सिनेमाघरों में कुर्सियां खाली दिखीं। मुश्किल से कुछ लोग ही फिल्म को देख रहे थे। फिल्म को डायरेक्टर अद्वैत चंदन ने बनाया है और अतुल कुलकर्णी ने इस फिल्म के स्क्रीनप्ले को लिखा है। फिल्म लाल सिंह चड्ढा हॉलीवुड फिल्म फारेस्ट गम्प (Forest Gump) का रीमेक है। लेकिन क्या ये फिल्म फॉरेस्ट गम्प के स्तर को छू पाती है ? क्या यह फिल्म दर्शकों को पसंद आने वाली है, यहां हम इसी सिलसिले में बात करेंगे।
फिल्म लाल सिंह चड्ढा, लाल नाम के एक व्यक्ति की कहानी है। जो शारीरिक रूप (Physical Disable) से समर्थ नहीं है लेकिन वह जहां भी जाता है, सफल होकर आता है। कभी वो दौड़ में आगे हो जाता है तो कभी वो सबसे जल्दी बन्दूक की साफ़ सफाई करके, उसे (बन्दूक) सेट कर लेता है। एक सैनिक के रूप में वो एक युद्ध का हिस्सा भी बनता है लेकिन उसी युद्ध से वो तब भाग जाता है| जब दुश्मन, उसके सैनिकों को मार रहे होते हैं। उसके बाद जब वो जख्मी सैनिकों को उठाकर लाता है, तब साथ ही में वो उस दुश्मन को भी उठाकर लाता है, जिसने न जाने कितने सैनिकों को गोलियों से भूना है। इसके अलावा फिल्म में कहानी के माध्यम से बहुत सारे कंट्रोवर्सिअल मुद्दे भी दिखाए गए हैं। जैसे भारत में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दिया जाना, महिला हिंसा, बाबरी विवाद, बेतुके मुद्दों पर प्रोटेस्ट होना। फिल्म के माध्यम से ये सब दिखाने की कोशिश करी गयी है। इसके अलावा जब एक सैनिक आर्मी से निकलता है तो वो अंडरवेयर के बिजनेस से जुड़ जाता है। जिसमें वो भारत में रह रहे उस दुश्मन को भी शामिल करता है जिसने कई सैनिकों की हत्या की है। अंत में कहानी एक निश्चित विषय पर न रुककर, इधर-उधर उलझन में घूमती रहती है और अंत में लाल की छवि को एक मासूम, सच्चा, ईमानदार छवि बनाकर खत्म हो जाती है।
कहानी कैसी है।
अगर एक शब्द में कहें तो यह एक डिसास्टर (Disaster) फिल्म है। जिसने उचित ढंग से नकल भी नहीं किया है। फिल्म की कहानी में कभी भी, कुछ भी हो जाता है| कहानी में बिल्कुल भी गहराई नहीं है। फिल्म के रिव्यू को बिंदुओं में जानने का प्रयास करते हैं।
उबाऊ कहानी
फिल्म की कहानी, क्योंकि अपने से जोड़ती नहीं है इसलिए आप इस फिल्म को देखते वक़्त ऊब जाते हैं। कभी कभी तो आपको लगता है आप बीच फिल्म से उठकर चल दें| इसके अलावा फिल्म में एक भी ऐसा मोमेंट है जहां आपको फिल्म की बात दिल को छूती हो। कहते हैं जब तक थिएटर में बैठकर आप खुलकर हंसे न और आपकी आत्मा तड़प न जाये, तो वो फिल्म एक अच्छी फिल्म नहीं है। इससे इतर यह 2 घंटे 45 मिनट की फिल्म आपके ऊपर-ऊपर से ही निकल जाती है।
View this post on Instagram
कंट्रोवर्सिअल मुद्दे को दिखाना
फिल्म में भारत में होने वाले दंगों को दिखाया है जैसे भारत में हर वक़्त दंगे ही होता रहता है। उस दंगे को भी या तो सिख कर रहे होते हैं या बाबरी विवाद होता है जिसमें हिन्दू दिख रहे होते हैं। यह भी दिखाने की कोशिश की गयी है की कैसे भारत में स्त्रियों पर हिंसा की जाती है। ज्यादातर फिल्मकार जहां ये दिखाने की करते हैं, भारतीय सेना एक मजबूत सेना है| वहीं इस फिल्म में भारतीय सेना को हारते हुए दिखाया है। इसके अलावा फिल्म के मुख्य किरदार के रूप में आमिर उसी दुश्मन की जान बचाते हैं जिसने कई सैनिको को गोलियों से भूना है।
#LaalSinghChaddha ⭐️⭐️ #LSC is a poor adaptation of #ForrestGump ,it lacks soul & emotions of the original classic..There are few feel good moments but the overall impact is unsatisfactory.. #AamirKhan repeats his character samar from D3, he over acted throughout. EPIC LET DOWN pic.twitter.com/ApPOcYq0vJ
— Sumit Kadel (@SumitkadeI) August 11, 2022
इमोशनल कहानी नहीं है
इस फिल्म में कुछ जगह आपको हंसी तो आ सकती है पर आप इमोशनल हो जाएं ऐसा हो ही नहीं सकता। न ही दृश्य और न ही संवाद कोई भी ऐसे नहीं हैं। जो फिल्म देखने के बाद आपके साथ जाएं। शुरुआत से लेकर अंत तक फिल्म इतने सपाट तरीके से चलती है की कोई भी संवाद आप पर इमोशनल मार करने में असफल हो जाता है।
सैनिकों की छवि को गिराना
फिल्म में सबसे बड़ी कमी है सैनिकों की छवि को धूमिल करना। ये फिल्म अगर आप ध्यान से देखेंगे तो पूर्णतः सैनिकों की छवि को नीचे गिराती है। पहली बात तो यह- एक शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति सेना में भर्ती हो जाता है। फिर उसे एक महत्वपूर्ण जंग के लिए भी भेजा जाता है। जहां से वो अपने सैनिक साथियों को बीच युद्ध में मरता छोड़कर भाग आता है। इसके अलावा जो सैनिक शहीद होते हैं उनकी छवि को इतने मजाकिया अंदाज़ में दिखाया है जैसे उनकी जान की कोई कीमत नहीं है। फिर आर्मी में होने वाली कठोर ट्रेनिंग को, ऐसे मजाकिया अंदाज़ में दिखाने का काम किया है। जैसे आर्मी में काम करना और देश की सेवा करना आसान बात है। इसके अलावा फिल्म में एक सैनिक की जिंदगी को दिखाया है लेकिन फिर भी देशभक्ति से जुड़ा एक संगीत नहीं है। जबकि रोमांस, रोना गाना, प्यार इनसे जुड़े कई गाने हैं।
फारेस्ट गम्प की तुलना में कैसी है
हम सब जानते हैं यह फिल्म फारेस्ट गम्प का रीमेक है, लेकिन नकल करने के बाद भी यह फिल्म फॉरेस्ट गम्प वाला असर छोड़ कर नहीं जाती है। बल्कि फॉरेस्ट गम्प के सामने यह फिल्म कुछ भी नहीं है। उसमें वॉर (War Scene) के दृश्यों को इस तरह से शूट किया गया है की आकर्षक लगता है इमोशनल लगता है। ये फिल्म वहां भी असफल होती है।
मैं यहां बार बार इमोशनल शब्द को इसलिए जोड़ रहा हूं क्योंकि फिल्में वही याद रखी जाती हैं जो दिल को छूती हैं, दिल में बसती हैं। यह फिल्म इस कतार में है ही नहीं जो कहीं से भी आपको इमोशनल करके जाए। इसके अलावा फिल्म इतनी लम्बी है की कुछ दृश्यों को आपको देखने का मन नहीं करता है।
शाहरुख़ और आमिर दोनों की बेकार एंट्री
फिल्म का क्राफ्ट कहता है की जब भी आप अपने मुख्य किरदार को स्क्रीन पर लाएं तो ऐसे लाएं की थिएटर में तालियां बजने लगे। पर जब भी आमिर का किरदार स्क्रीन पर उतरता है, सिनेमाघर में चंद बैठे हुए दर्शकों में भी, सन्नाटा छा जाता है। वो समझ ही नहीं पाते हैं की आखिर कब आमिर की फिल्म में एंट्री हो गयी ।
अगर एक्टिंग परफॉरमेंस की बात करें तो पहले तो इस फिल्म की पटकथा इतनी कमजोर है की किरदार को काम करने के लिए कुछ नहीं है। फिर आमिर ने इस तरह से एक्टिंग करी है जो आपको कभी पीके की याद दिलाती है तो कभी धूम सीरीज के किरदार की याद दिलाती है। करीना कपूर के किरदार को ऐसा दिखाया है की उसे सिर्फ पैसे कमाना है और उसके चक्कर में वो कुछ भी करने को तैयार है। किसी के भी सामने झुकने को तैयार है। जबकि भारत की सभ्य लड़कियां ऐसी नहीं होती हैं।
दुश्मनों की छवि सुधारने की कोशिश
हमने पहले ही आपको बताया फिल्म में आमिर खान उस दुश्मन को बचाते हैं जिसने कई सैनिकों को मारा है। उसके बाद आमिर उसको अपना बिजनेस पार्टनर भी बनाते हैं। उसके बाद वो दुश्मन कहता है की आप लोग तो बहुत अच्छे हैं। अब मैं अपने मुल्क पहुंचकर लोगों को बताना चाहता हूं की आप कितने अच्छे हैं। जबकि हम यह जानते हैं की कोई भी दुश्मन चाहे हम उसके साथ कितना भी भला कर लें उसकी मानसिकता में कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। वो भारत को अपना दुश्मन मानता है और मानता रहेगा। अगर ऐसा न होता तो आय दिन सैनिकों को दुश्मनों से लड़ाई न करना पड़ता। आय दिन देश में आंतकियों को पकड़ा नहीं जाता या फिर आतंकियों से जुड़े व्यक्तियों को पकड़ा नहीं जाता।
कुल मिलाकर लाल सिंह चड्ढा कंट्रोवर्सिल मुद्दों की बेवजह प्रस्तुति, अस्पष्ट और बिखरी हुई कहानी है जो न आपको जोड़ती है न ही एंटरटेन करती है और न इमोशनल करती है। शुरुआत से लेकर अंत तक कुछ सीन को छोड़कर फिल्म जुड़ाव बनाने में असफल रहती है। फिल्म में बहुत कुछ हो रहा है पर क्यों हो रहा है ? वजह क्या है ? इसका जवाब फिल्म में नहीं है। इसके अलावा फिल्म में जो भी दिखाया गया उसको लेकर शुरुआत में लगभग 15 मिनट के लिए डिस्क्लेमर देकर, सभी से माफ़ी भी मांग ली गयी है। ये तो वैसा ही है, “शरारत करके दिल दुखा दिया और फिर सॉरी कह दिया।