नई दिल्ली। सीरियल की शुरुआत में दिखाया गया कि अनुज और अनुपमा एक दूसरे का हाथ पकड़े चल रहे होते हैं और अनुज एक लकड़ी से लाइन बना रहा था जिसे देख अनुपमा कहती हैं इतनी बड़ी लाइन, जिस पर अनुज कहता हैं कि जब मैं छोटा था तो मैं ऐसे ही करता था अनु, मन करता था पूरी दुनिया पर लकीर खींच दूं। जिस पर अनुपमा कहती हैं कि बचपन भी कितना मासूम होता हैं ऐसा लगता हैं कि हम सब कर सकते हैं, उस वक्त हमें कुछ भी नामुमकिन नहीं लगता हैं। फिर अनुज कहता हैं कि बचपन बहुत अच्छा होता हैं लकीरें भले ही लंबी होती हैं लेकिन झगड़े छोटे होते हैं, अनु हम बड़े होकर झगड़े ज्यादा खिचते हैं। जिसके बाद अनुज कहता हैं कि मुझसे गलती हो गई अनु मुझे इस झगड़े को इतना खिंचना नहीं चाहिए, मुझे माफ कर दो जिसको सुनने के बाद अनु कहती हैं कि अरे आप आप क्यों ये पुरानी बात लेकर बैठ जा रहे हैं फिर अनु, अनुज का हाथ पकड़ कर ले जाती हैं और कहती हैं मैं भी सॉरी, अब मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी जिससे हमारे बीच कुछ भी गलत हो। अनुज कहता हैं मेरे अंदर आज बहुत गिल्ट हैं जिस पर अनुपमा कहती हैं जो हो गया सो हो गया बात खत्म, फिर अनुपमा-अनुज एक दूसरे के साथ कुछ पल बिताते हैं।
काव्या ने खुद पर किया बड़ा बदलाव
वहीं दूसरी तरफ काव्या को काफी बुरा लगता हैं कि वह वनराज की मदद नहीं कर पा रही हैं लेकिन फिर काव्या खुद को समझाती हैं कि बस करो काव्या इसमें बुरा मानने की कोई बात नहीं हैं हम औरतों की सबसे बड़ी गलती ही यही हैं कि हम अपने लिए कुछ करने जाएं फिर भी अफसोस का टोकरा अपने सर पर रखें ही रहते हैं। काव्या खुद को समझाते हुए कहती हैं कि बापू जी अनुपमा से यही कहते थे कि अगर अपने लिए कुछ कर रहे हो तो खुश रहो ना कि अफसोस करो। काव्या आगे बोलती हैं कि मुझे पता हैं कि यह बहुत बड़ा चेंज हैं और मुश्किल भी हैं वो भी तब जब घर पर इतनी दिक्कतें हैं लेकिन कितनी भी दिक्कतें क्यों ना हो तुम्हें ये करना ही होगा काव्या। खुद के लिए करना होगा तुम्हें। अगर आगे बढ़ना हैं तो सबसे पहले इस गिल्ट को मारना होगा।
वनराज हुआ परेशान
वहीं वनराज तोशू को बचाने के लिए पैसे का इंतजाम करता हैं, लेकिन फिर भी उसे पैसे नहीं मिल पाते हैं जिसके बाद पड़ोस के जयेशभाई के पास जाकर वनराज कहता हैं कि कुछ पैसों का इंतजाम हो सकता हैं क्या मैं आपको तुरंत लौटा दूंगा। जिस पर जयेशभाई कहते हैं कि आप कैसे लौटाओगे क्योंकि आपके पास तो कोई सोर्स भी नहीं हैं इनकम की। जिस पर वनराज कहता हैं कि लोन लेकर दे दूंगा लेकिन वापस जरूर कर दूंगा जिस पर जयेशभाई कहते हैं कि अरे लोन भी उसे देते हैं जिसके पास इनकम का सोर्स हो। जिसके बाद वनराज कहता हैं कोई बात नहीं आपको समझता हूं। परिवार वाले इंसान को सब सोच समझकर चलना पड़ता हैं शायद मैं आपकी जगह होता तो मैं भी यही करता। उसके बाद वनराज वहां से चला जाता हैं और कहता हैं कि तोशू को कैसे बचाऊं एक जयेशभाई से ही उम्मीद थी उन्होंने भी मना कर दिया। जिसके बाद उसकी ये हालत बा देखकर परेशान हो जाती हैं और अपने गहने निकालने लगती हैं और कहती हैं कि भगवान ये दिन किसी और को ना दिखाए।