
नई दिल्ली। अपने अदम्य शौर्य का परिचय देते हुए अजमल कसाब और अबू इस्माइल सरीखे घातक दहशतगर्दों से लोहा लेने वाले मां भारती के वीर सपूत सेवानिवृत्त आरपीएफ सब-इंस्पेक्टर जिल्लू यादव हमारे बीच नहीं रहे। 65 वर्षीय यादव ने कार्डिक अरेस्ट की वजह से मोहाव स्थित अपने पैतृक आवास में अंतिम सांस ली। पांच वर्ष पूर्व आरपीएफ से सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी पत्ती और चार बेटों संग गांव में रहने लगे थे। जिल्लू यादव के भाई महेंद्र यादव बताते हैं कि 26/11 हमले के दौरान उनके भाई द्वारा किए गए कारनामों की वजह से रातों-रात उनका परिवार मशहूर हो गया था। चौतरफा उनके भाई के अदमस्य साहय की ही चर्चा हो रही थी।
विदित हो कि जब कसाब और इस्माइल छत्रपति शिवाजी टर्मिनल में यात्रियों पर हमला करने पहुंचे तो उस वक्त जिल्लू यादव ड्यूटी पर थे। उनकी आंखों के सामने ही दोनों आतंकी यात्रियों पर अंधाधुंध फायरिंग कर रहे थे। वहीं पलक झपकते हुए लहुलूहान मंजर में तब्दील हो चुके रेलवे स्टेशन को देखकर जिल्लू यादव को कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने फौरन जीआरपी के हाथों में मौजूद राइफल्स 303 बंदूक छीनकर दोनों ही आतंकियों पर जवाबी कार्रवाई की। जिल्लू यादव के हाथों से चली गोलियों ने दोनों ही आतंकियों को विचलित कर दिया। जिसके बाद दोनों ने खुद को बचाने के लिए केमा अस्पताल की तरफ भागे, लेकिन अफसोस तब तक दोनों ही आतंकवादी स्टेशन पर मौजूद 50 यात्रियों को अपनी गोलियों का शिकार बना चुके थे।
महेंद्र अपने भाई जिल्लू की शौर्य गाथा याद करते हुए कहते हैं कि उनके भाई के जेहन में अभी-भी इस बात को लेकर पछतावा है कि अगर उन्होंने उन दोनों ही आतंकियों को मार दिया होता, तो कई यात्रियों की जान बचाई जा सकती थी। लेकिन, अफसोस वो ऐसा करने में नाकाम रहे। बता दें कि यादव को उनके अदम्स साहस के लिए राष्ट्रपति पुलिस मेडल और 10 लाख रुपए के पुरुस्कार से पुरुस्कृत किया गया था। यही नहीं, यादव उन लोगों में भी शामिल थे, जो साल 2010 में मुंबई में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिले थे। यादव के पार्थिव देर को बीते मंगलावर को मणिकार्णिका घाट भेजा गया। जहां उनके छोटे बेटे राकेश यादव ने अपने पिता को मुखाग्नि दी। इस अंतिम संस्कार में सैकड़ों लोग शामिल हुए।