
नई दिल्ली। ऑपरेशन ब्लू स्टार की आज 39वीं बरसी है। आज से ठीक 39 साल पहले 6 जून 1984 को भारतीय सेना के द्वारा अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर को दमदमी टकसाल के नेता और खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उसके साथियों से मुक्त कराने के लिए एक विशेष अभियान चलाया गया था। इस अभियान को ऑपरेशन ब्लू स्टार का नाम दिया गया। इस ऑपरेशन को तात्कालिक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मंजूरी दी थी, क्योंकि उस वक़्त पंजाब में भिंडरावाले के नेतृत्व में अलगाववादी समूह सशक्त हो रहे थे।
किसे दी गई थी ऑपरेशन ब्लू स्टार की कमान
ऑपरेशन ब्लू स्टार की जिम्मेदारी लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बरार को सौंपी गई थी। लेफ्टिनेंट जनरल बरार को 31 मई 1984 की शाम को इस ऑपरेशन के बारे में जानकारी दी गई थी। उस वक़्त बरार अपनी पत्नी के साथ छुट्टियां मनाने मनाली निकल रहे थे। बरार ने अपनी छुट्टियां कैंसल कर दी। ये वो समय था जब पंजाब नफरत और अलगाव की आग में झुलस रहा था। अमृतसर स्थित हरमिंदर साहिब यानि स्वर्ण मंदिर पर भिंडरावाले और उसके अनुयायियों ने कब्जा कर लिया था। ऐसे हालात को देखते हुए उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए हामी भरी थी।
लेफ्टिनेंट जनरल बरार बताते हैं…
‘मेरे पास शाम को फोन आता है कि मुझे अगले दिन पहली जून की सुबह चंडी मंदिर एक मीटिंग के लिए पहुंचना है। एक जून को ही हमें मनीला निकलना था। मैंने टिकट भी बुक ली थी। हम जहाज पकड़ने के लिए दिल्ली जा रहे थे, लेकिन फोन आने के बाद मैं मेरठ से दिल्ली सड़क मार्ग से गया और फिर वहां से प्लेन से चंडीगढ़ और पश्चिम कमान मुख्यालय पहुंचा। यहां मुझे पता चलता है कि मुझे ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम देना है और जल्द से जल्द अमृतसर पहुंचना है क्योंकि वहां के हालात बेहद खराब हैं। अगर वहां की कानून व्यवस्था को ठीक नहीं किया गया तो पंजाब हाथ से निकल जाएगा।’
ऑपरेशन ब्लू स्टार में 493 लोगों की गई थी जानें
स्वर्ण मंदिर में भारतीय सेना की तरफ से चलाये गए ऑपरेशन ब्लू स्टार में सेना के कुल 83 जवान शहीद हो गए, जबकि 249 घायल हुए। इस पूरे अभियान में 493 अन्य लोगों की भी मौत की पुष्टि हुई। एक हजार 592 लोगों को गिरफ्तार किया गया। जनरैल सिंह भिंडरावाला इस ऑपरेशन में मारा गया। ऑपरेशन ब्लू स्टार से समूचे देश में सिख भावनाएं आहत हो गईं। इस ऑपरेशन को लेकर कई सवाल उठाए गए और अंततः इसकी कीमत इंदिरा गांधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।