कुपवाड़ा। जम्मू-कश्मीर संबंधी संविधान के अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने का क्या असर है, ये पिछले दिनों तब सामने आया था जब केंद्र शासित प्रदेश में 33 साल में पहली बार मुहर्रम का जुलूस निकला था। फिर नवरात्रि पर भी कश्मीर में लोगों ने पूजा अर्चना की थी और बीते दिन श्रीनगर के लाल चौक इलाके में घंटाघर पर लोगों ने सामूहिक तौर पर हनुमान चालीसा का पाठ किया था। अब कश्मीर में लोगों ने धूमधाम से दिवाली का त्योहार मनाया है और खास बात ये कि आजादी के 75 साल बाद प्रसिद्ध शारदा देवी मंदिर में भी दीपोत्सव किया गया और पटाखे जलाए गए। रविवार को ये नजारा कुपवाड़ा में दिखा। एलओसी पर दोबारा बनाए गए शारदा देवी मंदिर में पुजारी और भक्त जुटे और उन्होंने दिवाली के मौके पर दीये जलाए और फिर पूजा के बाद आतिशबाजी की। जबकि, 370 के रद्द होने से पहले जब कश्मीर घाटी में आतंकवाद चरम पर था, तब इस तरह त्योहार तक लोग नहीं मना पाते थे।
शारदा बचाओ कमेटी के मुताबिक 1948 के बाद पहली बार एलओसी पर मौजूद शारदा देवी मंदिर में दिवाली का त्योहार मनाया जा सका है और वो भी इतने बड़े स्तर पर। कुपवाड़ा में मौजूद शारदा देवी मंदिर को इसी साल 22 मार्च को पुनरुद्धार के बाद आम लोगों के लिए फिर से खोल दिया गया था। जम्मू-कश्मीर के प्राचीन मंदिरों में शारदा देवी मंदिर भी शामिल है। इसके अलावा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके में शारदा पीठ भी है। नीलम नदी के किनारे शारदा पीठ है और पहले इसे ज्ञान की स्थली के तौर पर जाना जाता था। दक्षिण एशिया में भक्तों के बीच जो 18 मंदिर बहुत पवित्र माने जाते हैं, उनमें से एक शारदा पीठ भी है। हालांकि, अभी पाकिस्तान के कब्जे में होने के कारण भारत से लोग शारदा पीठ नहीं जा सकते। जिस शारदा मंदिर में दिवाली मनाई गई, उसे और पास में स्थित गुरुद्वारा को 1948 में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ के दौरान नष्ट कर दिया गया था। यहां पर एक धर्मशाला भी थी। वो भी घुसपैठियों ने नष्ट कर दी थी।
पीओके यानी कश्मीर के जिस हिस्से पर पाकिस्तान का कब्जा है, वहां शारदा पीठ तक जाने के लिए टीटवाल से ही रास्ता है। इस रास्ते से लोग पहले शारदा पीठ जाते थे, लेकिन 1948 से ये बंद हो गया। शारदा पीठ में दिवाली कब मनेगी, ये तो भविष्य तय करेगा, लेकिन अभी शारदा मंदिर में दिवाली मनाए जाने से लोग काफी खुश हैं। वहीं, जम्मू और कश्मीर घाटी में हिंदू समुदाय की तरफ से जमकर दिवाली मनाए जाने की खबर मिली है। श्रीनगर समेत सभी शहरों में इस मौके पर खूब रोशनी की गई। पर्यटक और स्थानीय लोग भी श्रीनगर के घंटाघर पर जुटे। जबकि, आतंकवाद के दौर में श्रीनगर का घंटाघर दहशतगर्दों के गढ़ के तौर पर पहचाना जाता था।