
नई दिल्ली। प्रेम दुनिया का सबसे खूबसूरत भाव है। ये प्यार चाहें किसी से भी हो सुकून का एहसास ही देता है। अगर आपके पास भी ऐसे लोग, प्रेमी, दोस्त या परिजन हैं, तो आप बेहद लकी हैं। लेकिन इंसान की छलपूर्वक प्रवृत्ति के चलते आजकल लोगों का एक-दूसरे से भरोसा उठ गया है। लेकिन प्यार की जरूरत तो उतनी ही बनी हुई है। इसी वजह से लोग आजकल अपने पालतू जानवरों पर बेइंतहा प्यार लुटाने लगे हैं। अभी हाल ही में एक खबर आई थी कि एक व्यक्ति ने 12 लाख रुपए खर्च कर खुद को कुत्ते के रंग-रूप में ढ़ालने की कोशिश की थी। अब उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले से भी ऐसी ही एक अजीबोगरीब खबर आ रही है कि मनासर बाबा शिव मंदिर सौंखर के महंत द्वारिका दास और बजरंगबली मंदिर परछछ के महंत अर्जुन दास ने कुत्ता-प्रेम के चलते अपने पालतू कुत्ते कल्लू और कुतिया भूरी की बड़े धूम-धाम से शादी करवाई। इतना ही नहीं, उन्होंने खुद को एक-दूसरे का समधी भी बताया। उनकी शादी पूरे हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार की गई, साथ ही शादी की सारी रस्में भी निभाई गईं, जिसमें बरात से लेकर निकासी, द्वारचार, भांवरे, कलेवा और विदाई भी शामिल थे।
गौरतलब है कि, सौंखर एवं सिमनौड़ी गांव के बीहड़ में मनासर बाबा शिव मंदिर स्थित है। स्वामी द्वारिका दास महाराज यहां के महंत हैं और उन्होंने अपने पालतू कुत्ते कल्लू का विवाह मौदहा क्षेत्र के परछछ गांव स्थित बजरंगबली मंदिर के महंत स्वामी अर्जुन दास महाराज की पालतू कुतिया भूरी के संग तय किया था। तय तारीख को शुभ मुहूर्त पर रविवार के दिन शादी संपन्न हुई। इतना ही नहीं, दोनों महंतों ने कार्ड भी छपवाया और अपने शिष्यों, शुभचिंतकों को बाकायदा कार्ड भेजकर विवाह में आमंत्रित भी किया। ये अनोखी बरात मनासर बाबा शिव मंदिर से गाजे-बाजे के साथ बड़े धूमधाम से निकाली गई। इसके बाद सौंखर गांव की गलियों में भ्रमण करते हुए धूमधाम से बारात की निकासी कराई गई। इसके बाद मौदहा क्षेत्र के परछछ गांव में बजरंगबली मंदिर के महंत ने बरात की अगवानी कर द्वारचार, चढ़ावा, भांवरों, कलेवा आदि की सभी रस्में पूरी कराकर बरात को सम्मानपूर्वक विदा किया। यही नहीं, वर-वधु को चांदी के जेवर भी पहनाए गए। इस शादी में बरातियों के लिए कई प्रकार के व्यंजन भी बनवाए गए। इस शादी में दोनों पक्षों से तकरीबन 500 लोग शामिल हुए थे।
महंत द्वारिका दास ने इस विचित्र शादी के बारे में बात करते हुए बताया, कि ‘कल्लू कुत्ते को बचपन से पाला है और अब वो हमारे परिवार का एक सदस्य है। ये शादी समाज के लिए एक संदेश भी है कि वो सभी जीव महत्वपूर्ण हैं, जिनसे हमारे आत्मीय संबंध बन जाते हैं।’ वहीं दूसरी ओर, महंत अर्जुन दास ने बताया कि ‘द्वारिका दास से उनकी काफी पुरानी और गहरी मित्रता है और इस मित्रता को रिश्तेदारी में बदलने के लिए हमारा परिवार तो है नहीं। हमने इन जीवों को बचपन से पाला है, ये हमारे बच्चों के जैसे ही हैं, इसलिए हमने दोनों जीवों का विवाह कराने का फैसला लिया और अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलकर समधी बन गए।’