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Know Why Lord Jagannath Of Puri Becomes Unwell In Hindi: जानिए आखिर पुरी के भगवान जगन्नाथ हर साल क्यों पड़ते हैं बीमार?, भक्तों को दर्शन देना कर देते हैं बंद

Know Why Lord Jagannath Of Puri Becomes Unwell In Hindi: कहा जाता है कि कलियुग में भगवान विष्णु धरती पर तीन जगह निवास करते हैं। इनमें से एक पुरी में भगवान जगन्नाथ, उत्तराखंड के बदरीनाथ में बदरी विशाल और आंध्र प्रदेश की तिरुमला पहाड़ी स्थित भगवान वेंकटेश्वर यानी बालाजी हैं। ये तीनों ही मंदिर अति प्राचीन हैं।

पुरी। ओडिशा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने अगर आप जाना चाहते हैं, तो आपके लिए ये खबर है। भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा तक किसी को दर्शन नहीं देंगे। जगन्नाथ मंदिर में भक्तों का दर्शन इसलिए बंद रहेगा, क्योंकि वो अस्वस्थ हुए हैं। हर साल इसी तरह भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ होने के कारण कई दिन दर्शन नहीं देते।

भगवान जगन्नाथ को ज्येष्ठ की पूर्णिमा पर मंदिर के बाहर लाकर स्नान कराया जाता है। कहा जाता है कि भगवान जगन्नाथ को ज्यादा स्नान कराने के कारण उनकी तबीयत खराब हो जाती है। उनको बुखार आ जाता है। ऐसे मौके पर अस्वस्थ होने के कारण भगवान का शृंगार भी नहीं होता। ऐसे में एक हफ्ते के लिए भगवान जगन्नाथ के दर्शन किसी को भी नहीं होते। सिर्फ डॉक्टरों को गर्भगृह ले जाया जाता है। डॉक्टर गर्भगृह जाकर भगवान जगन्नाथ के स्वास्थ्य की जांच करते हैं। भगवान को अस्वस्थ रहने के दौरान काढ़ा पिलाकर स्वस्थ करने का नियम सदियों से चला आ रहा है और उसका पालन आज भी किया जाता है। भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होने के बाद रथयात्रा पर निकलते हैं और अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। वहां निवास करने के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा फिर अपने मंदिर लौटते हैं। इसे उल्टो रथ कहा जाता है। इस साल 7 जुलाई को रथयात्रा है।

कहा जाता है कि कलियुग में भगवान विष्णु धरती पर तीन जगह निवास करते हैं। इनमें से एक पुरी में भगवान जगन्नाथ, उत्तराखंड के बदरीनाथ में बदरी विशाल और आंध्र प्रदेश की तिरुमला पहाड़ी स्थित भगवान वेंकटेश्वर यानी बालाजी हैं। ये तीनों ही मंदिर अति प्राचीन हैं। भगवान बदरी विशाल और भगवान वेंकटेश्वर की मूर्तियां जहां पत्थर की हैं। वहीं, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा की मूर्तियां लकड़ी की होती हैं। हर 12 साल बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की नई मूर्तियां बनानी होती हैं। इसके लिए ऐसे पेड़ का चयन किया जाता है, जिसमें कोई कोटर नहीं होता और चिड़िया निवास नहीं करतीं। इसके अलावा भी कई और चिन्ह देखकर उन पेड़ों की लकड़ी से भगवान को नया स्वरूप दिया जाता है।